आईसी-814 पर उठता विवाद 

पाकिस्तानी पोषित कुख्यात आतंकी संगठन 

आईसी-814 पर उठता विवाद 

हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों द्वारा 24 दिसंबर 1999 को की गई इंडियन एयरलाइंस फ्लाइट नं.आईसी- 814 विमान हाईजैक कायरतापूर्ण घटना फिर से एक बार चर्चा में है। इस फ्लाइट ने काठमांडू से नई दिल्ली के लिए उड़ान भरी थी। इस विमान में  कुल 191 लोग सवार थे। जिसमें से 10 पायलट सहित क्रू मेंबर्स थे, 181 यात्री थे। उन यात्रियों में शामिल पाकिस्तान की कुख्यात एजेंसी आईएसआई समर्थित 5 आतंकवादी भी विमान में सवार थे। जो विमान उडाने के लगभग आधा घंटे बाद उसे हाईजैक कर कंधार ले गए। फ्लाइट के यात्रियों और क्रू को सात दिनों तक बंधक बनाकर रखा गया था। अपहर्ताओं ने तीन वहशी कुख्यात आतंकवादियों मसूद अज़हर, अहमद उमर सईद शेख, और मुश्ताक अहमद ज़रगर की रिहाई की मांग की थी। 7 दिन बाद रिहाई की शर्तों पर सहमति बनी और यात्रियों को 31 दिसंबर 1999 को छोड़ा गया था।
 
इस हाईजैक में आतंकवादियों ने एक यात्री को मौत के घाट उतार दिया था। आतंकियों ने सरकार के सामने जो मांगें रखी थी। उनमें 36 आतंकवादियों की रिहाई की मांग के साथ  साथ  200 मिलियन डॉलर (860 करोड़ रुपये) और कुछ महीने पहले जम्मू-कश्मीर में भारतीय फौज के हाथों जहन्नुम पहुंच चुके दफन आतंकवादी की लाश की मांग भी थी। उस समय की वाजपेई सरकार ने यह मांगे पूरी करने से साफ इनकार कर दिया था। बाद में मसूद अजहर समेत तीन आतंकियों को रिहा करने की शर्त पर बंधको को रिहा किया गया। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई आईसी-814 में दिखाई 1999 कंधार हाईजैक की कहानी ने एक बार फिर से देश को उस दिल दहला देने वाली घटना की याद दिला दी है।
 
इस सीरीज का विरोध शुरू हो गया है। उसका कारण है अपहरणकर्ता आतंकवादियों के असली नाम जो कि इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद उर्फ गुलशन इकबाल, सनी अहमद काजी,  मिस्त्री जहूर इब्राहिम और शाकिर थे परन्तु हाईजैक के दौरान उनके नाम कोड नेम डॉक्टर, बर्गर, चीफ, भोला और शंकर थे। मुख्य विरोध भोला और शंकर नाम पर है। हमारे देश के तथाकथित हिन्दू रक्षकों ने हिन्दू नाम इस्तेमाल करने को मूवी मेकर्स की साजिश करार दे दिया है। जबकि यह उनके असली नाम नही दिखाए गए हैं यह तो बस कोडनेम थे। इन कोड नामों की पुष्टि बहुत से उस फ्लाइट के यात्री कर चुके हैं। जिनमें से चंडीगढ की पूजा कटारिया की इंटरव्यू यूट्यूब पर मौजूद है जिसमें वो इन नामों को सच बता रही है।
 
हर मामले को सच या झूठ की बजाए  हिन्दू मुस्लिम बना देना इन तथाकथित हिन्दू रक्षकों की आदत सी बन गई है। असल में इस बेवजह के विवाद को उठाने के पीछे मुख्य कारण यह लगता है कि उस समय देश में बीजेपी की सरकार थी और फिल्म में जिस तरह से सिस्टम कि असफलता को दिखाया गया है वो सीधे सीधे उस समय की सरकार के निर्णयों पर सवाल खड़े करता है। निसंदेह यह पूरे देश की त्रासदी थी। उस समय भी और आज भी सभी देशवासी उस सरकार के लिए निर्णयों के साथ खड़े हो उनका सम्मान करते हैं परन्तु यह विरोध कहीं ना भक्तो की हीनभावना को दर्शाता है क्यों की अब तक देश की हर असफलता को ये भक्त नेहरू, इंदिरा आदि के सिर फोड़ते आए हैं।
 
अब अचानक भक्त पार्टी की सरकार की असफलता सामने आने पर खिसयाहट तो होनी ही थी। जिसका परिणाम ये फिल्म विवाद है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि यदि सरकार ने समय रहते निर्णय लिया होता तो विमान को अमृतसर में ही रोका जा सकता था। अमृतसर के बाद आतंकियों की हर शर्त मानना हमारी मजबूरी थी। विमान के अमृतसर में 50 मिनट ठहरने के बावजूद तत्कालीन सरकार मौके को संभाल नही पाई निसंदेह यह एक बड़ी असफलता थी। खुफिया एजेंसी रॉ के तत्कालीन प्रमुख अमरजीत सिंह दुलत ने इस पर विस्तार से जानकारी दी है । पूर्व रॉ चीफ ने हाइजैक की स्थिति पर पंजाब के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक सरबजीत सिंह के साथ हुई अपनी लंबी बातचीत के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मेरी पंजाब के डीजीपी से लंबी बातचीत हुई।
 
उन्होंने मुझसे कहा- मैं केपीएस गिल नहीं हूं, मैं अपनी नौकरी खतरे में नहीं डालूंगा। उस समय पंजाब के डीजीपी ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल अमृतसर में खून-खराबा नहीं चाहते हैं। यहां तक ​​कि दिल्ली भी यही संकेत दे रही थी। डीजीपी ने कहा कि विमान पर धावा बोला जा सकता है लेकिन हमें नहीं पता था कितनी जानें जाएंगी। खून-खराबे के नाम पर कोई भी फैसला नहीं लेना चाहता था। दुलत ने कहा कि पंजाब पुलिस को यह समझाना जरूरी था कि विमान अमृतसर से बाहर नहीं जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
 
दिलचस्प बात यह है कि डीजीपी सरबजीत सिंह ने ऑन रिकॉर्ड कहा था कि अगर उन्हें दिल्ली से स्पष्ट निर्देश मिले होते तो उन्होंने फैसला ले लिया होता। इस बारे में ए.एस दुलत ने कहा कि मैं उनसे सहमत हूं। लेकिन उन्होंने उस वक्त क्या किया होता, मुझे नहीं पता पर वह सही थे, जब उन्होंने कहा कि वह दिल्ली से निर्देशों का इंतजार कर रहे थे जो कभी नहीं आया। निसंदेह लोग ऐसी दर्दनाक घटनाओं के बारे में सच ही देखना पसंद करते है और सच आमतौर कडवा ही होता है। 
 
(नीरज शर्मा 'भरथल') 
 
 
 

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