संजीवनी।

संजीवनी।

संजीवनी।

कुछ बातें सुन ले।

कुछ दर्द की बातें गहरी हमसे सुन ले,
कुछ गुफ्तगू नर्गिस ए बीमार से कर ले।

नाविस्त है तेरे हुस्न सा बेहतरीन,
दिल की बातें अब आंखों से कर ले।

मेरी फना पर ना खिलखिलाना तुम,
मेरी मौत का इल्जाम न अपने सर ले।

आओ बैठे जो लम्हे प्यार के पास पास,
जुदाई से पहले दिलों के हिसाब कर ले।

यू ना दिखा नरगिसी तेवर हमें,
आज अपने हुस्न को बेनजीर कर ले।

बेनजीर- अनुपम, नविस्त- लिखावट।

संजीव ठाकुर

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