सुप्रीम कोर्ट ने दी गौतम नवलखा को जमानत- '4 साल में भी आरोप तय नहीं'।
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स्वंतत्र प्रभात ब्यूरो।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा को जमानत दे दी। वह पिछले चार साल से जेल में थे। अदालत ने इस बात पर गौर किया कि वह पहले ही चार साल से ज़्यादा समय से जेल में हैं और अभी तक उनपर आरोप तक तय नहीं हो पाए हैं। उनको एल्गार परिषद के मामले में गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के अनुसार, एल्गार परिषद सम्मेलन के कारण अगले दिन भीमा कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी। बाद में उन पर माओवादियों से संबंध रखने का भी आरोप लगा दिया गया।
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा- हाईकोर्ट के जमानत के ऑर्डर पर स्टे की अवधि बढ़ाने का हमें कोई कारण नजर नहीं आ रहा है। पूरे मामले की सुनवाई खत्म होने में तो कई साल बीत जाएंगे।दरअसल, नवलखा पर 2017 में पुणे में एल्गार परिषद के आयोजित कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। इसके कारण ही भीमा-कोरेगांव में हिंसा हुई थी।
नवलखा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत दी थी, जिसके खिलाफ एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हॉईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया था। गौतम नवलखा गिरफ़्तारी के बाद से जेल में थे। पिछले साल बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनको जमानत तो दे दी थी, लेकिन इसके साथ ही अदालत ने अपने फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। यानी जमानत मिलने के बाद भी उन्हें घर में नज़रबंद ही रहना पड़ा। वह 2022 से ही नज़रबंद थे।
। हालाँकि, इसने नवलखा को नजरबंदी में सुरक्षा के खर्च के लिए 20 लाख रुपये का भुगतान करने का भी निर्देश दिया।पीठ ने कहा, 'हम रोक को आगे बढ़ाने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि जमानत पर उच्च न्यायालय का आदेश काफी विस्तार से बताया गया है। ट्रायल पूरा होने में वर्षों-वर्ष-वर्ष लगेंगे। विवादों पर लंबी चर्चा किए बिना हम रोक की अवधि नहीं बढ़ाएंगे।'।
अगस्त 2018 में गिरफ्तार किए गए नवलखा को पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने घर में नजरबंद करने की अनुमति दी थी। वह वर्तमान में नवी मुंबई में हैं।यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से जुड़ा है। इसके बारे में पुलिस का दावा है कि उस सम्मेलन के बाद कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़क उठी थी।
2018 में चूँकि इस युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे और टकराव भी हुआ। जनवरी, 2018 में पुलिस ने वामपंथी कार्यकर्ता के पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनो गोन्जाल्विस जैसे एक्टिविस्टों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था। बाद में कई लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया था। आरोप लगाया गया है कि इस सम्मेलन के बाद भीमा-कोरेगाँव में हिंसा भड़की। हालाँकि इनकी गिरफ़्तारी के बाद से ही कई लोग यह दावा कर रहे हैं कि इस मामले में इनको जानबूझ कर इसलिए फँसाया जा रहा है क्योंकि वे दलित समुदाय के अधिकारों की पैरवी करते हैं।
इस मामले में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर भी आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई। भिडे, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक हैं और एकबोटे भारतीय जनता पार्टी के नेता और विधायक का चुनाव लड़ चुके हैं। हिंसा के बाद दलित नेता प्रकाश आंबेडकर ने इन पर मुक़दमा दर्ज कर गिरफ़्तार करने की माँग की थी। लेकिन इस बीच हिंसा भड़काने के आरोप में पहले तो बड़ी संख्या में दलितों को गिरफ़्तार किया गया और बाद में सामाजिक कार्यकर्ताओं को।
मामले में गौतम नवलखा सहित सोलह एक्टिविस्टों को गिरफ्तार किया गया है और उनमें से 6 पहले ही जमानत पर बाहर हैं।इस मामले में शोमा सेन को पिछले महीने जमानत मिली थी। उनसे पहले सुधा भारद्वाज को डिफ़ॉल्ट जमानत (2021) मिली, जबकि आनंद तेलतुम्बडे (2022), वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फरेरा (2023) को योग्यता के आधार पर जमानत मिली। वरवरा राव को मेडिकल आधार पर जमानत दे दी गई है। अब गौतम नवलखा भी नजरबंद से आज़ाद होंगे। एक अन्य आरोपी, फादर स्टेन स्वामी की जुलाई 2021 में हिरासत में मृत्यु हो गई।
इसके पहले बाम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस शिवकुमार डिगे की हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पिछले दिसंबर में नवलखा को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि यह अनुमान लगाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि नवलखा ने यूएपीए की धारा 15 के तहत आतंकवादी कृत्य किया था। हालांकि, NIA द्वारा इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए समय मांगने के बाद हाईकोर्ट ने अपने आदेश पर 3 सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बार-बार इस रोक को बढ़ाया गया।
न्यायालय ने जमानत आदेश में यह स्पष्ट रूप से ध्यान देने के बाद इस अंतरिम रोक को हटा दिया कि नवलखा को चार साल से अधिक समय से जेल में रखा गया और मुकदमे को पूरा होने में "वर्षों और वर्षों और वर्षों" का समय लगेगा। न्यायालय ने संबंधित कारकों पर भी विचार किया, जिसमें यह भी शामिल है कि आरोप तय नहीं किए गए। खंडपीठ ने कहा,"प्रथम दृष्टया हमारा विचार है कि रोक के अंतरिम आदेश को बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
नवलखा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने लंबे समय तक कारावास के बिंदुओं पर बहस की और कहा कि अन्य सह-अभियुक्तों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। उन्होंने हाउस अरेस्ट के लिए मांगी गई राशि को भी चुनौती दी और कहा कि यह टिकाऊ नहीं है। रामकृष्णन ने अपनी दलील इस तर्क पर रखी कि आरोपों में नवलखा की आय को ध्यान में नहीं रखा गया।
इसके विपरीत, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने तर्क दिया कि कुछ सह-अभियुक्तों को जमानत नहीं दी गई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आरोप गंभीर हैं और हाईकोर्ट ने जमानत देकर गलती की है।जहां तक नजरबंदी का सवाल है तो कोर्ट ने नवलखा को अंतरिम चरण के तौर पर 20 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। यह राशि हाईकोर्ट द्वारा दी गई जमानत की पूर्व शर्त के रूप में चुकानी होगी।
इससे पहले, नवलखा की ओर से पेश सीनियर वकील नित्या रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि मामले में 375 गवाह थे। इसके बाद न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा कि मुकदमा "अगले दस वर्षों तक ख़त्म नहीं हो सकता।" रामकृष्णन ने यह भी चिंता व्यक्त की कि जमानत आदेश, जो हाईकोर्ट द्वारा योग्यता के आधार पर पारित किया गया, पार्टी को सुने बिना ही रोक दिया गया। तदनुसार, अदालत ने मामले को आज की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया।
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