सामना

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सामना

रुख पहाड़ों की तरफ किया
तो समझ आया
जन्नत इस धरा पर भी है।

रुख बादलों की तरफ किया
तो समझ आया
बदमाशी इनमें भी है।

रुख बहती नदी की तरफ किया
तो समझ आया
जीवन का बहाव इनमें भी है।

रुख हरे-भरे खेतों की तरफ किया
तो समझ आया
जीवन का अंश इनमें भी है।

रुख वृक्षों की तरफ किया
तो समझ आया
जीवन की समझदारी इनमें भी है।

रुख डूबती हुई नाव की तरफ गया
तो समझ आया
जीवन का अंतिम पड़ाव इनमें भी है।

डॉ.राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)

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