चुनावी संग्राम के दिव्यअस्त्र हैं फिल्मी सितारे

चुनावी संग्राम के दिव्यअस्त्र हैं फिल्मी सितारे

चुनावी संग्राम के दिव्यअस्त्र हैं फिल्मी सितारे
 
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भारतीय जनता पार्टी ने उम्मीदवारों के नामों की पहली सूची जारी कर दी गई। इस लिस्ट में चार भोजपुरी सुपरस्टारों के नाम शामिल थे। इनमें से तीन को दूसरी बार टिकट दिया गया है जबकि पहली बार टिकट पाने वाले भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह ने विपक्षियों के विरोध और विवादो के चलते आसनसोल से चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। भाजपा की पहली सूची में तकरीबन 6 नाम ऐसे हैं जो हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं।
 
उम्मीद है अगली लिस्ट में और भी फिल्मी अदाकार मैदान में उतारे जाएगें। निश्चित तौर पर भाजपा के अलावा अन्य दलों की सूची में भी इस पेशे से जुड़े नाम दिखेंगे। फिल्मकारों का राजनीति से रिश्ता बहुत पुराना रहा है। दक्षिण फिल्म इंडस्ट्रीज के कलाकार तो राजनीति के शीर्ष पदों तक पहुँचते रहे हैं। एम.जी.रामचंद्रन, जयललिता, एन.टी.रामाराव, एम.करूणानिधि आदि ऐसे नाम रहे जिन्होने राज्य की राजनीति के साथ-साथ केन्द्र की राजनीति को भी अपनी उँगलियों पर नचाया।
 
पृथ्वीराज कपूर उच्च सदन यानि राज्यसभा के लिए मनोनीत होने वाले हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री के पहले अभिनेता थे। दक्षिण के फिल्म स्टार राजनीति में लम्बी पारियां खेलते रहे हैं। इसके उल्ट ज्यादातर बालीवुड सितारे राजनीति में बस 'जांइट किलर' की तरह इस्तेमाल होते रहे हैं। लोकसभा की दहलीज पर पहली बार हिन्दी फिल्मी सितारों ने दस्तक दी 1984 में जब बालीवुड से सुनील दत्त और अमिताभ बच्चन आम लोंगों की वोटें पा सांसद बने। सुनील दत्त ने राजनीति में काफी लम्बी पारी खेली और वे केन्द्रीय मंत्री भी बने परन्तु अमिताभ बच्चन की पारी छोटी रही और उन्होनें अपना कार्यकाल पूर्ण होने से पहले ही बोफोर्स विवाद के चलते इस्तीफा दे दिया था।
 
भारतीय राजनीति में फिल्म अभिनेता को 'जांइट किलर' के रूप में इस्तेमाल करने की शुरुआत राजीव गांधी ने इलाहाबाद सीट से विपक्ष के धुरंधर कद्दावर नेता हेमवती नंदन बहुगुणा के सामने अमिताभ बच्चन को उतार कर की। यदि हम राजनीति में राजनेता बनाम अभिनेता के सबसे रोचक मुकाबलों की बात करें तो दो मुकाबले यादगार रहे। पहला 1984 के आम चुनावों में इलाहाबाद सीट पर हुआ कांग्रेस के अमिताभ बच्चन बनाम जनता दल के हेमवतीनंदन बहुगुणा का मुकाबला और दूसरा यादगार मुकाबला रहा 1991 के आम चुनावों में नई दिल्ली लोकसभा सीट पर हुआ भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेस के राजेश खन्ना के बीच का मुकाबला।
 
बात करें 1984 इलाहाबाद सीट की तो बहुगुणा जैसे धुरंधर के सामने सुपर स्टार परन्तु राजनीति के नौसिखिए अमिताभ बच्चन को उतारने के कांग्रेसी दाव पर सब हैरान थे। बेशक अमिताभ अपने फिल्मी कैरियर की बुलन्दियों पर थे परन्तु हवा पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्री रह चुके विपक्ष के धुरंधर बहुगुणा के पक्ष में चल रही थी। जितनी भीड़ अमिताभ की झलक पाने के लिए उनकी रैलियों में पहुंचती थी उतनी ही भीड बहुगुणा को सुनने उनकी रैलियों में पहुंच रही थी।
 
बेशक इलाहाबाद बहुगुणा का राजनीतिक गढ़ रहा था पर मातृभूमि होने के कारण 'छोरा गंगा किनारे वाला' भी जीत के सपने देख रहा था परन्तु जैसे जैसे मतदान का दिन नजदीक आ रहा था लगने लगा था अमिताभ पिछड़ रहे हैं पर फिर कमान संभाली जया भादुड़ी बच्चन ने उन्होंने 'भाभी', 'देवर' और 'मुंहदिखाई' वाले जुमले बोल बयार अमिताभ के पक्ष में कर दी। जया ने तब लोगों से कहा था "मैं इलाहाबाद की बहू हूं और शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल आई हूं। आप अपनी बहू को देख रहे हैं तो मुंह दिखाई तो दिजिए" और फिर मुस्कुराते हुए स्टेज से कहा "मेरी मुंह दिखाई में आप लोग अमिताभ जी को वोट दीजिए। बस यही मेरी मुंह देखाई होगी"।
 
बस फिर क्या था हमारी भावुक जनता ने भावनाओ में बह राजनीति के पुरोधा को छोड़ सिल्वर स्क्रीन की चमक-दमक का दामन थामा और अमिताभ को 1 लाख 87 हजार वोटों के विशाल अंतर से जीता संसद भेजा। इसी चुनाव में पहली बार किसिंग वोट भी पड़े। इस चुनाव में लगभग 4000 वोट अमान्य रहे जो ज्यादातर अमिताभ के पक्ष के थे और उन पर लिपस्टिक के किसिंग निशान थे। ऐसा ही नेता बनाम अभिनेता का दिलचस्प मुकाबला वर्ष 1991 के  लोकसभा चुनावों में नई दिल्ली सीट पर देखने को मिला। जहां भाजपा दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी और कांग्रेस की ओर से सुपर स्टार राजेश खन्ना आमने सामने थे।
 
आडवाणी अपनी प्रसिद्धी के चरम पर होने के बावजूद मात्र डेढ़ हजार मतों से ही चुनाव जीत पाए थे। वह भी दोबारा मतगणना के बाद। असल में राजनीतिक पार्टियां फिल्मी सितारों की स्टार डम का इस्तेमाल दिव्यअस्त्र की तरह बड़े बड़े राजनीतिक योद्धाओं को धराशाई करने के लिए करती रहती है।  हर चुनाव में लगभग सभी राजनीतिक दल इन्हे टिकट देते हैं। बेशक एक अभिनेता भी इसी लोकतंत्रिक प्रणाली का हिस्सा है और उसका हक है चुनाव लड़ना पर जनता का यह दायित्व बनता है कि अपना प्रतिनिधि चुनने का वोट मनोरंजन के लिए नही अपने इलाके के हित को ध्यान में रख कर करें।
 
(नीरज शर्मा'भरथल')

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