क्या सच में महिलाओं का चमकेगा भाग्य, या दिग्गज नेताओं के सीट का खेल
लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने वाला नारी शक्ति वंदना विधेयक संसद से पास हो गया है. बिल को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के साथ ही कानून बन जाएगा और विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक लोकसभा और राज्य की विधानसभाओं में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व हो जाएगी. इस कानून से एक तरफ महिलाओं के सियासी भाग्य खुलेंगे तो दूसरी तरफ देश के तमाम दिग्गज नेताओं के सीटों का खेल बिगड़ सकता है. ऐसे में उन्हें अपनी परंपरागत सीटों के साथ एक दूसरी सीट का भी विकल्प बनाकर रखना होगा?
महिला आरक्षण कानून लागू होने के बाद मौजूदा समय में देश की 543 संसदीय सीटों में से 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. महिला आरक्षण भी रोटेशन के आधार पर होगा और हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें बदली जा सकेंगी. 2024 के बाद जनगणना होगी और उसकी बाद लोकसभा और विधानसभा की सीटों का परिसीमन होगा. विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक मौजूदा एससी-एसटी आरक्षण में भी 33 फीसदी सीटें दोनों ही समुदाय की महिलाओं की होगी.
परिसीमन के बाद सीटें बढ़ती हैं तो फिर उस लिहाज से महिलाओं के लिए सीटें रिजर्व होंगी, लेकिन 33 फीसदी सीटों पर सिर्फ महिलाएं ही चुनाव लड़ सकेंगी. ऐसे में तमाम पुरुष सांसद और विधायकों को अपनी सीटें छोड़नी पड़ेगी. फिलहाल भले ही ऐसा दिख रहा हो कि मोदी सरकार ने आसानी से इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पास करा लिया हो, लेकिन इसकी एक परीक्षा 2029 के लोकसभा और उसके बाद अलग-अलग राज्यों की विधानसभा में भी होनी है.
परंपरागत तौर पर किसी विधानसभा या लोकसभा सीट पर राजनीति करने वाले नेताओं के सामने भी असमंजस के हालात बनेंगे. ऐसे में अगर उनकी परंपरागत सीट जिससे वो जीतकर लगातार विधायक या सांसद बनते रहे हैं, वो सीट महिलाओं के कोटे में चली गई तो उनके सामने क्या राजनीतिक विकल्प होगा? यह स्थिति एक चुनाव में ही नहीं बल्कि हर पंद्रह साल के बाद होनी है,
क्योंकि महिला आरक्षण रोटेशन के आधार पर होगा और हर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें बदली जाएंगी. ऐसे में दिग्गज नेताओं के एक सीट से जीतने के बाद भी दूसरी सीट का विकल्प बनाकर रखना होगा.
हैदराबाद लोकसभा सीट से AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी लगातार चार बार से सांसद हैं और उनसे पहले उनके पिता सुल्तान सलाउद्दीन ओवैसी लगातार 6 बार सांसद रहे हैं. इस तरह से हैदाराबाद सीट ओवैसी की परंपरागत सीट मानी जाती है और परिसीमन में अगर उनकी सीट महिला के लिए आरक्षित हो जाती है तो फिर ओवैसी को नई सीट तलाशना होगा.
मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट है, जहां से नकुलनाथ सांसद हैं और उससे पहले कमलनाथ सांसद थे. यह कमलनाथ की परंपरागत सीट रही है और 1980 अब तक सिर्फ एक बार यह सीट उनके हाथ से निकली है. ऐसे में अगर छिंदवाड़ा सीट महिला के लिए रिजर्व हो जाती है तो फिर कमलनाथ परिवार को नई सीट तलाशनी होगी. इस तरह से मध्य प्रदेश में राघोगढ़ विधानसभा सीट है, जिस पर 1977 से दिग्विजय सिंह के परिवार का कब्जा है.
उत्तर प्रदेश में बरेली लोकसभा सीट पर बीजेपी सांसद संतोष गंगवार का कब्जा है. 1989 से अभी तक सिर्फ एक बार वो चुनाव 2009 में हारे हैं. इसके अलावा उन्हें बरेली सीट पर कोई चुनौती नहीं दे सका. ऐसे में बरेली सीट अगर महिला आरक्षण में चली जाती है तो फिर गंगवार को नई सीट तलाशनी होगी. हालांकि, उम्र के ऐसे पढ़ाव पर हैं कि अगला चुनाव लड़ते हैं कि नहीं देखना होगा.
इसके अलावा बीजेपी सांसद बृजभूषण सिंह के लिए भी सियासी चुनौती होगी. कैसरगंज सीट से बृजभूषण सिंह लगातार जीत रहे हैं और अगर यह सीट आरक्षित हो जाती है तो फिर उन्हें नया विकल्प तलाशना होगा. इसी तरह उनके बेटे प्रतीक भूषण विधायक हैं, उनके लिए भी चिंता है.
कुंडा विधानसभा सीट पर रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया लगातार जीतकर विधायक बने रहे हैं और उनके करीबी विनोद सरोज बाबागंज सीट से जीत रहे हैं. ऐसे में अगर यह दोनों सीटें परिसीमन में महिला के लिए आरक्षित हो जाती है तो उनकी चुनौती बढ़ सकती है. यूपी के शाहजहांपुर विधानसभा सीट से सुरेश खन्ना लगातार जीत रहे हैं.
ऐसे में अगर उनके इस सीट पर जीत के सिलसिले पर ब्रेक लग सकता है. कानपुर की इरफान सोलंकी, हरदोई सीट पर नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल, रसड़ा सीट से उमाशंकर सिंह, जसवंतनगर सीट से शिवपाल यादव, शाहिद मंजूर, रामअचल राजभर, दुर्गा यादव, अवधेश प्रसाद, फरीद किदवई, इकबाल महमूस जैसे नेता विधायक लगातार बनते आ रहे हैं. जगदंबिका पाल, सफीकुर्रहमान बर्क, राजवीर सिंह और आनंद सिंह के बेटे कीर्ति वर्धन सिंह संसदीय का चुनाव जीत रहे हैं.
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