पूर्व मुखमंत्री राम नरेश यादव की 95 वी जयंती पर जानें उनका जीवन परिचय।
70 के दशक में रामनरेश यादव किसानों के नेता के तौर पर उभरे थे. मुलायम से बड़े नेता माने जाते थे.
पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी के मुताबिक राम नरेश यादव 77 के दशक में पूर्वांचल के गांधी कहे जाते थे.
स्वतंत्र प्रभात -राजधानी
सीनियर रिपोर्टर-विपिन शुक्ला
इस विशेष अवसर पर कई अधिवक्ता गण जिसमें विशेष रूप से हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील अजीत यादव, एडवोकेट सुरेंद्र यादव, राम नरेश यादव फाउंडेशन के कोषाध्यक्ष आदेश यादव व अन्य कई जानी मानी हस्तियां मौजूद रहीं।
जीवन परिचय-
इसी आजमगढ़ के आंधीपुर गांव में रामनरेश यादव का जन्म 1 जुलाई 1928 को हुआ था. लालन-पालन आम ही था. रामनरेश ने कुछ बहुत तूफानी भी नहीं किया था. शांतिप्रिय व्यक्ति थे. तो उस दौर के उग्र स्वतंत्रता सेनानियों में इनका नाम नहीं आता है. पढ़ाई लिखाई पूरी कर 1953 में आजमगढ़ में ही वकालत शुरू कर दी. इनके पिता गया प्रसाद महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे. तो रामनरेश का भी लगभग यही झुकाव रहा.
उन्होंने वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय से बीए, एमए और एलएलबी की पढ़ाई की और यहीं छात्र संघ की राजनीति से भी जुड़े रहे. इसके बाद कुछ वक्त के लिए वे जौनपुर के पट्टी के नरेंद्रपुर इंटर कॉलेज में लेक्चरार भी रहे. 1953 में उन्होंने आजमगढ़ में वकालत की शुरुआत की.
इसी दौरान रामनरेश की दिलचस्पी पॉलिटिक्स में बढ़ती गई. उन्होंने समाजवादी विचारधारा के तहत जाति तोड़ो, बराबरी के मौके, बढ़े नहर रेट, किसानों की लगान माफी, समान शिक्षा, आमदनी और खर्च की सीमा बांधने, जमीन जोतने वालों को उनका अधिकार दिलाने, अंग्रेजी हटाओ आदि आंदोलनों को लेकर कई बार गिरफ्तारियां दीं.
इमरजेंसी के दौरान वे मीसा और डीआईआर के अधीन जून 1975 से फरवरी 1977 तक आजमगढ़ जेल और केंद्रीय जेल नैनी, इलाहाबाद में बंद रहे.
70 के दशक में रामनरेश यादव किसानों के नेता के तौर पर उभरे थे. मुलायम से बड़े नेता माने जाते थे. इसीलिए 1977 में चौधरी चरण सिंह ने लगातार 3 बार से विधायक रहे मुलायम सिंह यादव को नजरअंदाज कर रामनरेश को मुख्यमंत्री बनाया था. उस वक्त रामनरेश आजमगढ़ से सांसद थे.
26 अगस्त 1977 को पिछड़ों को सरकारी नौकरियों में 15% आरक्षण देने के बाद रामनरेश यादव ने दूसरा शासनादेश जारी कर 13 जनवरी 1978 को यह भी निश्चित कर दिया कि अब प्रमोशन में भी sc/st की तरह पिछड़ों को 15%आरक्षण मिलेगा. लखनऊ की अंबेडकर यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिलाने में भी उनका अहम योगदान था.
वर्ष 1977 के चुनाव के बाद हुए उपचुनाव में रामनरेश जनता पार्टी के टिकट पर पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गए. एटा के विधान सभा क्षेत्र निधौलीकलां से. चौधरी चरण सिंह ने राम नरेश से प्रभावित होकर लगातार 3 बार से विधायक रहे मुलायम सिंह यादव को नजर अंदाज कर के 1977 में राम नरेश यादव को संयुक्त उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया लेकिन उन्हें दो साल के भीतर ही अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी.
पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी के मुताबिक राम नरेश यादव 77 के दशक में पूर्वांचल के गांधी कहे जाते थे. अपनी इसी ईमानदारी के चलते वह चौधरी चरण सिंह के करीबियों में एक थे. आपातकाल के बाद 1977 में वह जनता पार्टी के टिकट से आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़े और कांग्रेस के दिग्गज नेता चंद्र जीत यादव को पौने तीन लाख वोटों से हराया था.
चरण सिंह राम नरेश यादव को लंबी रेस का घोड़ा मानते थे. लेकिन यादव के इस्तीफे के बाद खाली पड़ी आजमगढ़ लोक सभा सीट पर उपचुनाव में मोहसिना किदवई ने जनता पार्टी के कैंडिडेट को बुरी तरह हराया. कांग्रेस की जीत ने जनता पार्टी में भूचाल ला दिया. इंदिरा की आंधी चिकमंगलूर से चल चुकी थी. जनता पार्टी ऐसे ही बदनाम हो रखी थी. इसके बाद अचानक लोगों को लगने लगा कि इंदिरा की आंधी जनता पार्टी को ले डूबेगी.
आजमगढ़ उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद राम नरेश को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. जिसके बाद जनता पार्टी ने डैमेज कंट्रोल करने के लिए बनारसी दास को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया.
कभी चरण सिंह यूथ ब्रिगेड के सदस्य रहे जदयू नेता केसी त्यागी के मुताबिक ''आजमगढ़ की हार चौधरी चरण सिंह के लिए बहुत ही चौंकाने वाली थी, जिसने राम नरेश यादव से उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली. आजमगढ़ की हार ने चौधरी चरण सिंह को ये भी एहसास कराया कि मुलायम सिंह की अनदेखी कर राम नरेश यादव को मुख्यमंत्री बनाना उनकी बड़ी भूल थी.
राम नरेश ने जब मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो उसके बाद वो रिक्शे से अपने घर वापस गए. रामनरेश यादव की सरकार में ही मुलायम सिंह पहली बार राज्यमंत्री बने थे. और पहली बार उनको नेताजी भी इसी वक्त कहा गया था. सरकार तो चली नहीं और मुलायम सिंह यादव राजनारायण का साथ छोड़कर चौधरी चरण सिंह के साथ चले गए थे.
रामनरेश जब मुख्यमंत्री थे तब लोग कहा करते थे- रामनरेश वापस जाओ,लाठी लेकर भैंस चराओ. ये वो दौर था जब जाति को लेकर ही आइडेंटिटी क्रिएट की जाती थी. हालांकि दौर अभी भी बदला नहीं है. अभी वही चल रहा है

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