पाकिस्तान की सियासत के रोज़ नई-नई करवट लेने से इस देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती जा रही है।

पाकिस्तान की सियासत के रोज़ नई-नई करवट लेने से इस देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती जा रही है।


 
एक तरफ हिंदुस्तान में नये लोकतंत्र के मंदिर का उद्घाटन हो रहा है तो दूसरी ओर पाकिस्तान इस वक्त बड़े उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। पहले से इमरान खान पर बहुत आरोपों के तहत तो केस चल ही रहे थे। 84 से ज्यादा केस थे। फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया। उसके बाद उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता और समर्थक सड़क पर उतर आए। उन्होंने काफी हंगामा किया, तोड़फोड़ की। इसमें पाकिस्तान की सरकार और आर्मी के द्वारा एक्शन लिया गया। इसी बीच एक पलटते हुए खबर आई कि इतनी जल्दी इमरान खान रिहा नहीं हो पाएंगे लेकिन कोर्ट से झटका पाकिस्तान सरकार को तब लगा जब कहा गया कि इमरान खान को तुरंत छोड़ा जाए। फिर उन्हें जमानत मिल गई। उनकी पार्टी के जिन बड़े नेताओं को हिरासत में लिया गया था, उन्हें भी जमानत मिली। लेकिन उन्हें किसी न किसी धारा के तहत फिर से गिरफ्तार कर लिया गया है। और आज हम अब पीटीआई पर बैन लगने की बात सुन रहे हैं। तो इस तरह पाकिस्तान में हम एक राजनीतिक उथल-पुथल देख पा रहे हैं। 

पीटीआई की ओर देखें तो इमरान खान को उनके समर्थकों द्वारा उन्हें बहुत सपोर्ट मिल रहा है। लेकिन उनकी पार्टी के जो नेता हैं और बड़े दिग्गज नाम रहे हैं, जैसे कि शिरीन मजारी रहे हैं, हसन चौहान रहे हैं, अब्दुल रजा खान नियाजी रहे हैं, उमर उमरी हैं और कई नाम हैं। इन सभी ने पीटीआई छोड़ दी। और पार्टी छोड़ते समय उन्होंने इमरान खान पर बहुत गंभीर आरोप लगाए। उनका ये कहना था कि इमरान खान अपनी पार्टी के माध्यम से देश की जनता को मौजूदा सरकार के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। और इन्हीं इल्जामों के बाद हम देख रहे हैं कि वर्तमान सरकार की तरह से पीटीई को ही बैन करने की बात की जा रही है। वहां के रक्षा मंत्री का स्टेटमेंट सामने आया है। हालांकि यह भी एक प्रश्नवाचक चिन्ह ही है कि किस तरह से इस पार्टी को बैन किया जाएगा और इमरान खान के सामने विकल्प रखा गया है कि वो सुरक्षित विदेश चले जाएं, वर्ना बाकी की जिंदगी उन्हें जेल में गुजारनी पड़ सकती है।

हालांकि पाकिस्तान के लिए राजनीतिक रूप से अस्थिर होना कोई नई बात नहीं है। समय-समय पर यह देश अस्थिर होता रहा है। इस देश की राजनीतिक अस्थिरता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि पाकिस्तान की स्थापना के 75 वर्षों में लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए किसी भी प्रधानमंत्री ने आज तक अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है।
गौर करने वाली बात यह है कि पाकिस्तान में राजनीतिक संकट के पीछे हर बार जो वजह सबसे ज़्यादा उभर कर नज़र आती है वह देश पर शासन करने की ज़िद है। पाकिस्तान पर शासन करने की ज़िद ने इस देश को हर बार संकट की ओर धकेला है। हालिया समय में पाकिस्तान में जो राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ है उसके पीछे भी देश पर शासन की ज़िद ही है।चाहे वह देश की सेना हो या राजनीतिक पार्टियां या विपक्ष सबको एक ही समय पर सत्ता में बैठना है। इन सबमें सबसे ज्यादा ज़िद जिसे सत्ता में बैठने की हमेशा से रही है वह देश की सेना है।पाकिस्तानी सेना किसी भी कीमत पर देश पर शासन करना चाहती है। सेना ने देश की सत्ता से खुद को बाहर रखने से इनकार कर दिया है, भले ही इस कारण क्यों न देश के टुकड़े-टुकड़े हो जाएं”।

इमरान खान की गिरफ़्तारी व उनके ऊपर हुए सैकड़ों मुकदमे देश पर शासन करने की ही ज़िद को दर्शाता है। सेना, इमरान खान व शहबाज़ शरीफ की सरकार की सत्ता में एक ही समय में बने रहने की भूख ने पाकिस्तान को फिर एक ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है जिसका कोई सुखद भविष्य नहीं है।  यह संकट केवल पाकिस्तान पर शासन करने की सेना की ज़िद से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि यह इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने के बारे में अधिक है।

दरअसल इमरान खान पर सरकार द्वारा शिकंजा कसने की कई वजहें हैं। सरकार और सेना को लगता है कि अगर उन्हें समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया तो यह उनके लिए बेहतर नहीं होगा और अगर इमरान खान कि लोकप्रियता इसी तरह बनी रही तो इसका गहरा असर आने वाले चुनाव पर पड़ेगा।इसके अलावा इमरान खान अपनी सरकार के जाने के बाद से जिस तरह से सेना पर हमले कर रहे हैं, उससे सेना को लगता है कि अगर उन पर शिकंजा नहीं कसा गया तो पाकिस्तानी सेना के लिए यह किसी भी तरह से ठीक नहीं होगा। सेना का यह भी मानना है कि अगर खान की आगामी आम चुनाव में सत्ता में वापसी हो जाती है तो सेना का वर्चस्व खतरे में पड़ जाएगा। पाकिस्तानी सेना किसी भी स्थिति में अपनी वर्चस्व खोना नहीं चाहती है, जिस कारण भी हालिया समय में इमरान खान के ऊपर शिकंजा कसा जाने लगा है।
राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि सेना और पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) सरकार इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के लिए जेल में डालने की पूरी कोशिश कर रही है। समीक्षकों के अनुसार, सेना और पीडीएम का ऐसा मानना है कि जेल में डालने के बाद खान की लोकप्रियता कमजोर पड़ने लगेगी। उनकी लोकप्रियता के कमजोर पड़ने के बाद देश में चुनाव कराया जाएगा जिससे इमरान खान की सरकार भी नहीं आ पाएगी और साथ ही सेना का प्रभुत्व भी बना रहेगा।

इमरान खान समर्थित लोगों का ऐसा मानना है कि अगर इमरान खान दोबारा से सत्ता में लौट आते हैं तो उन्हें पाकिस्तान की राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिलने लगेगा। सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन सेना के वर्चस्व से संबंधित है, माना जा रहा है कि जब वह दोबारा सत्ता में आएंगे तो पाकिस्तान में सेना का दबदबा कम कर देंगे। लेकिन ऋषभ यादव इस मसले को दूसरे दृष्टिकोण से देखते हैं। उनका मानना है कि “अगर इमरान खान दोबारा सत्ता में लौटते हैं तो हमें सैन्य-हस्तक्षेप के अंत के बजाए पाकिस्तानी राजनीति में सेना की अधिक प्रत्यक्ष भूमिका देखने को मिलने लगेगी”।
इमरान खान की गिरफ़्तारी के बाद से पाकिस्तान में जो राजनीतिक संकट उत्पन्न हुआ है उसका राजनीतिक फायदा फिलहाल इमरान खान को होता हुआ दिख रहा है। अगर यह सरकार इमरान खान को चुनाव लड़ने से रोक पाने में सफल नहीं हो पाती है तो इसका फायदा चुनाव में इमरान खान को जरूर देखने में मिलेगा। 

पाकिस्तान में चल रहे राजनीतिक संकट का प्रभाव न केवल पाकिस्तान पर पड़ेगा बल्कि यह उसके पड़ोसी होने के नाते हमारे  देश भारत और वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिलेगा। अगर वहाँ राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है और अराजकता जैसी स्थिति बन जाती है या सेना का शासन आ जाता है, ऐसी किसी भी स्थिति में भारत देश के लिए खतरा ही रहेगा। राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि यदि सेना ने पाकिस्तान की सत्ता अपने हाथ में ले लेती है तो सेना हमेशा भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करेगी, जिससे भारत-पाकिस्तान सीमा (एलएसी) पर संघर्ष विराम खतरे में पड़ जाएगा, जिस कारण दोनों देशों के देशों में अस्थिरता बढ़ेगी। इसके अलावा अगर यह अस्थिरता आगे भी जारी रहती है तो आतंकवादी संगठन भी सक्रिय हो जाएंगे और इसका असर भी भारत पर अप्रत्यक्ष/प्रत्यक्ष रूप से पड़ेगा। ये सभी घटनाक्रम भारत के अलावा अन्य देशों को भी प्रभावित करेंगे।

इन सबके अलावा हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है और अगर ऐसी स्थिति में अराजकता जैसा माहौल बंता है तो इसके परिणाम भयावह स्तर पर देखने को मिल सकते हैं, जो किसी भी सूरत में विश्व के लिए सही नहीं होगा। अगर पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता बनी रहती है तो इसका नुकसान हम सबको उठाना पड़ सकता है....पाकिस्तान का जिस तरह का सामरिक महत्व है उस बिना पर यहाँ अराजकता होना किसी भी देश के लिए बेहतर नहीं है....हमें यह नहीं भूलना चाहिए की पाकिस्तान एक परमाणु सम्पन्न देश है....’

दरअसल, पाकिस्तान की राजनीति में शामिल तमाम हितधारक जब तक किसी सर्वसम्मति पर नहीं पहुंचते हैं तब तक हालिया अस्थिरता का का कोई हल नज़र नहीं आ रहा है। देश के सभी हितधारक जैसे न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और तमाम राजनीतिक दल और नागरिक समाज से जुड़े तमाम लोग एक पटल पर आकर एक सर्वसम्मति पर पहुंचेंगे, तभी इस अस्थिरता का हल निकलेगा। अभी पाकिस्तान की पॉलिटी यानी राजव्यवस्था में संकट नहीं है बल्कि पूरी की पूरी पॉलिटी ही संकट में है।

अशोक भाटिया,
वरिष्ठ  लेखक एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार 

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