बीती ताहि बिसार दे ,आगे की सुध लेहु 

बीती ताहि बिसार दे ,आगे की सुध लेहु 

 

 

देश में अमन-चैन है। सब कुछ ठीक चल रहा है। कौन कहता है कि मणिपुर जल रहा है या कश्मीर में कुछ गड़बड़ है। अगर ये सब होता तो हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एक सप्ताह की विदेश यात्रा पर जाते ? प्रधानमंत्री जी  पापुआ न्यू गुनी में अपना सम्मान करा रहे हैं। पापुआ न्यू गिनी इंडोनेशिया के समीप प्रशांत महासागर क्षेत्र में एक स्वतंत्र राष्ट्र है जो दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर क्षेत्र में द्वीपों का एक समूह है। यहाँ की राजधानी पोर्ट मोरेस्बी है। दिल्ली से आधा यानि केवल 60 लाख जनसंख्या वाला देश विविधताओं के देश के रूप में भी जाना जाता है। 

दरअसल कर्नाटक विधानसभा चुनाव हारने के बाद प्रधानमंत्री को गम गलत करने के लिए कहीं तो जाना ही था ।  ये जाना आकस्मिक न था । पहले से तय था ।  कर्नाटक के विधानसभा चुनाव भी लगभग पहले से ही तय था ।  प्रधानमंत्री जी ने सब कुछ जानते हुए भी कर्नाटक में अपना चेहरा दांव पर लगाया। प्रधानमंत्री जी का लोहा मानना पडेगा कि  वे अपनी पार्टी और देश के लिए कुछ भी दांव पर लगा देते हैं ,इस लिहाज से वे देश -दुनिया के सबसे बड़े जुआरी है। पापुआ न्यू गिनी जाना भी उनके गम गलत करने के प्रयास का एक हिस्सा है ,अन्यथा पापुआ न्यू गुनी से हजार गुना बड़े भारत के प्रधानमंत्री वहां क्यों जाते ? 

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद देश के अमृतकाल में सक्रिय दूसरे  सरदार बल्लभ भाई पटेल यानि अमित शाह भी भूमिगत नजर आ रहे  हैं। वे भी गमजदा हैं लेकिन गम गलत करने कहाँ जाएँ ? किसकी गोदी  में अपना सर रखकर अश्रुपात करें। कौन जनादेश सरकार के खिलाफ जा रहा है और कहीं देश की सबसे बड़ी अदालत का आदेश सरकार के खिलाफ जा रहा है ।  सरकार को मजबूरी में अपनी नाक बचाने के लिए कुछ तो करना ही था। मणिपुर की कोई खैर-खबर देने वाला नहीं है ,क्योंकि वहां इंटरनेट बंद है। जम्मू-कश्मीर में चालू है लेकिन वहां कोई राजनीतिक गतिविधि  नहीं है सिवाय पर्यटन के। धारा 370  हटाए जानेके चार साल बाद भी जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली नहीं की जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मेहबूबा मुफ्ती ने तो ऐलान ही कर दिया है की वे धारा 370  की बहाली तक कोई चुनाव लड़ेंगी ही नहीं। 

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मेरा मानना है कि चुनावों में हार-जीत तो चलती रहती है।  हार-जीत से देश का काम नहीं रुकता । रुकना भी नहीं चाहिए ।प्रधानमंत्री जी को विदेश जाना चाहिए। गृहमंत्री जी को भूमिगत हो जाना चाहिए  किसी को मणिपुर के हालचाल नहीं पूछना चाहिए,किसी को जम्मू-कश्मीर में दोबारा विधानसभा की बहाली की बात नहीं करना चाहिए ।  ये सब मुद्दे हवा-हवाई हैं। इन्हें गंभीरता   से नहीं लेना चाहिये ।  मुझसे अक्सर ये गलती हो जाती है। मै अक्सर उन मुद्दों को छेड़ देता हूँ जिनके ऊपर धुल डालने की कोशिश की गयी हो। 

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सरकार देशवासियों को व्यस्त रखने के लिए 2000  हजार के नोट पर रोक का मुद्दा छोड़ गयी है। दो हजार के नोट बाहर निकालने के लिए सरकार ने बेहद उदारता बरती है ।  नोट वापस करने वालों से नोट के बारे कुछ  भी पूछा जा रहा। पूछा भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि जिनके पास 2000  का नोट है उसके बारे में पूछ भी नहीं जाना चाहिए ।  ये बड़ा नोट बड़े आदमियों के पास है। 2000  का गुलाबी नोट सचमुच काला हो चुका है।ये नोट कालाधन निकालने के लिए सरकार की और से दाने के रूप में इस्तेमाल किया गया था। कालाधन 2000  के नोट पर बैठकर रिजर्व बैंक के पास  आ रहा है। 

बहरहाल गमजदा सरकार के खिलाफ विपक्ष एकजुट होने की असफल कोशिश कर रहे हैं। पहले सिद्धरमैया के शपथ ग्रहण के समय बेंगलुरु में आये थे। अब दिल्ली में दिल्ली सरकार के खिलाफ जारी अध्यादेश के बहाने एकजुट हो रहे है।  सबको साथ लेकर चलने का वादा माँननीय प्रधानमंत्री जी का था लेकिन सबको साथ लेकर चलने की  कोशिश  विपक्ष कर रहा है। विपक्षी एकता फीनिक्स पक्षी की तरह है  ।  ये एकजुटता लम्बी नहीं चलती ।  इसमें विश्वस्नीयता का अभाव   है । विश्वसनीयता सियासत से ऐसी गायब हुई है जैसे गधे के सर से सींग।गधों के सर से गायब हए सींग कहाँ हैं ,उनकी तलाश जा रही है। कम से कम विपक्ष तो कर ही रहा  है।   

मोदी जी  तीन देशों  की  यात्रा   पर  निकले हैं  और तीन बहुपक्षीय सम्मेलनों में शामिल होंगे। वहीं वह 40 से ज्यादा कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। दो दर्जन से ज्यादा वैश्विक नेताओं से उनकी मुलाकात होगी और इनमें से कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय बातचीत भी होगी। जापान में जी-7 के शिखर सम्मेलन और पापुआ न्यू गिनी में फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आइलैंड कोऑपरेशन के तीसरे सम्मेलन से जुड़े कार्यक्रमों में तो कोई फेरबदल नहीं हुआ, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में प्रस्तावित क्वॉड देशों की बैठक जरूर आखिरी पलों में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के न आ पाने के कारण टाल दी गई।

मोदी जी के  देश में न होने से सब कुछ सूना-सूना लग रहा है ,देश उन्हें  लगातार  देखते ,सुनने  का  आदी  हो  चुका  है। प्रधानमंत्री जी ने  विदेश  यात्रा के लिए  सही  समय  चुना है । स्वदेश  लौटते  ही  उन्हें फिर से साल भर  विदेश  जाने  की फुरसत  नहीं  मिलेगी ,क्योंकि  फिर से उन्हें अनेक राज्य  विधानसभा  चुनावों  में जुटना  है ।  विधानसभा चुनावों के बाद  आम  चुनाव   हैं। आम चुनाव आंधी के आम नहीं हैं जो आसानी से मिल जाएँ। ये चुनाव जीतने के लिए इस बार एड़ीचोटी का जोर  लगाना  पड़   सकता  है। 


 राकेश अचल 

 

 

 

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