चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

 केंद्र सरकार ने अरुण गोयल को तीसरे पद पर नियुक्ति दी

चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू

स्वतंत्र प्रभात 
 
 
प्रयागराज। इधर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू, उधर केंद्र सरकार ने अरुण गोयल को तीसरे पद पर नियुक्ति दी ।
 
 
 उच्चतम न्यायालय में पांच-न्यायाधीशों, जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार की संविधान पीठ के समक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई शुरू हुई
 
 
 
उधर मोदी सरकार ने बड़ी ख़ामोशी के साथ सेवानिवृत्त नौकरशाह अरुण गोयल को शनिवार (19 नवंबर, 2022) को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त कर दिया है। चुनाव आयोग में तीसरा पद छह महीने से खाली है। गोयल पंजाब कैडर के पूर्व अधिकारी हैं।
 
 
 
नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के एक दिन बाद राष्ट्रपति द्रौपदी ने शनिवार को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया। 1985 बैच के पंजाब कैडर के अधिकारी अरुण गोयल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे के साथ चुनाव पैनल में शामिल होंगे।
 
 
तीन सदस्यीय आयोग में एक चुनाव आयुक्त का पद 15 मई से खाली था।
 
 अरुण गोयल के त्यागपत्र को पंजाब और केंद्र सरकार द्वारा एक ही दिन में स्वीकार कर लिया गया। ऐसा बहुत कम होता है कि होम कैडर से लेकर पीएमओ तक फाइल एक ही दिन में क्लियर हो जाए। इसी कारण पूरी ब्यूरोक्रेसी में उनके इस्तीफे को लेकर चर्चा रही। गोयल शुक्रवार तक भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव थे। 
 
 
केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था की मांग वाली याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।
 
 
सुनवाई करते हुए संविधान पीठ ने 17 नवंबर को कहा कि एक चुनाव आयुक्त कुशल, सक्षम, पूरी तरह से ईमानदार और सेवा के उत्कृष्ट रिकॉर्ड से लैस हो सकता है, लेकिन उनके व्यक्तिगत राजनीतिक झुकाव भी हो सकते हैं जो पद पर रहते हुए खुद को दिखाते हैं। 
 
 
जस्टिस के एम जोसेफ ने  टिप्पणी की कि भारत का चुनाव आयोग शायद दुनिया से ईर्ष्या करता है। शायद एक संस्था जिसे बहुत सारी तारीफों का सामना करना पड़ा है, मुख्य रूप से टीएन शेषन के सुधारों के कारण।
 
 
 
वह मानव विवेक को कम से कम करने के लिए बहुत सारे नियम बनाने में सफल रहे। ऐसा करके उन्होंने डर को खत्म कर दिया।  चुनाव आयुक्तों को सिर्फ नियमों का पालन करना था और किसी भी राजनीतिक दल के दबाव में आने की परवाह नहीं करनी थी
 
 
मुख्य याचिकाकर्ता (अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ, डब्ल्यूपी(सी) संख्या 104/2015) की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि संसद ने पिछले 70 वर्षों से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को विनियमित करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया है।
 
 
उन्होंने आगे कहा कि ईसीआई की उचित स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए केवल कार्यात्मक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है। नागरिकों द्वारा चुनाव आयोग की स्वतंत्रता के बारे में संदेह भी नही होना चाहिए।
 
 
जस्टिस रस्तोगी ने इस पर कहा कि हम जमीनी हकीकत की जांच नहीं कर रहे हैं। हम जांच कर रहे हैं कि क्या यह संविधान के अनुसार है ।
 
 
 
प्रशांत भूषण ने कहा कि मुख्य हितधारक राजनीतिक दल हैं। चयन एक तटस्थ निकाय द्वारा होना चाहिए।
 
 
जस्टिस जोसेफ ने पूछा कि क्या हम गारंटी दे सकते हैं कि अगर यह समिति आती है, तो कोई राजनीतिक पूर्वाग्रह नहीं होगा? 
 
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने संविधान पीठ को बताया कि विनीत नारायण बनाम भारत संघ (जो एक समिति द्वारा सीबीआई निदेशक की नियुक्ति से संबंधित है) के 1997 के मामले में रिक्तता को भरने के लिए कानून का मार्च वर्तमान मामले में संविधान की अनुमति नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि दिमाग का इस्तेमाल नहीं किया गया।
 
 
संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल से कहा, जब संविधान कहता है कि यह “किसी भी कानून के किसी भी प्रावधान के अधीन है” तो क्या संसद ने संविधान के निर्माताओं की दृष्टि को पराजित नहीं किया है।
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