क्या कभी बहुरेंगे जम्मू-कश्मीर के दिन

 क्या कभी बहुरेंगे जम्मू-कश्मीर के दिन

डॉ.दीपकुमार शुक्ल बीते 24 जून को प्रधानमन्त्री तथा गृहमन्त्री के साथ दिल्ली में आयोजित हुई सर्वदलीय कश्मीरी नेताओं की बैठक के बाद लगा कि जम्मू-कश्मीर राज्य अब शान्ति और विकास की एक नयी इबारत लिखेगा| लेकिन हाल की आतंकी घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 लागू होने के बाद भी

डॉ.दीपकुमार शुक्ल 

बीते 24 जून को प्रधानमन्त्री तथा गृहमन्त्री के साथ दिल्ली में आयोजित हुई सर्वदलीय कश्मीरी नेताओं की बैठक के बाद लगा कि जम्मू-कश्मीर राज्य अब शान्ति और विकास की एक नयी इबारत लिखेगा| लेकिन हाल की आतंकी घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 लागू होने के बाद भी यहाँ कुछ नहीं बदला| जम्मू के एयरफोर्स स्टेशन पर ड्रोन द्वारा हुए हमले से आतंकवाद का एक नया रूप सामने आया है| उसके अगले दिन सेना के कैम्प पर भी ड्रोन से हमला करने की नाकाम कोशिश हुई| आगे भी ऐसे ही हमलों की आशंका व्यक्त की जा रही है| विशेषज्ञों के अनुसार इन वारदातों को सीमा पार से नहीं बल्कि घटनास्थल के आसपास से ही अंजाम दिया गया है| क्योंकि सीमा पार से इतनी लम्बी दूरी तक ड्रोन भेजना सम्भव नहीं है|

इसका सीधा अर्थ है कि जम्मू-कश्मीर के अन्दर आतंकवादियों को प्रश्रय देने वाले पहले की ही तरह आज भी सक्रिय हैं| जिससे शान्ति की सम्भावना यहाँ दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है|

जम्मू और कश्मीर 5 अगस्त 2019 तक भारत का एक राज्य था, जो अब जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख दो केन्द्र शासित प्रदेशों के रूप में परिवर्तित हो चुका है| आजादी से पूर्व यह जम्मू और कश्मीर नाम की रियासत थी, जिसके अन्तिम राजा हरी सिंह थे| हिमालय पर्वत के सबसे ऊँचे हिस्से में बसा यह राज्य अपनी विशिष्ट संस्कृति, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं संसाधनों के लिए जाना जाता है|

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कश्मीरी इतिहासकार कल्हण द्वारा सन 1148 से 1150 के मध्य संस्कृत भाषा में रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ राजतरंगिणी के अनुसार प्राचीन काल में कश्मीर नाम की यहाँ एक विशाल झील थी| जिसे कश्यप ऋषि ने बारामूला की निकटवर्ती पहाड़ियों को काटकर बनाया था| इसी कारण कश्मीर का पूर्ववर्ती नाम कश्यपमेरु था| भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार भूगर्भीय परिवर्तन के कारण उक्त झील का सारा पानी बह गया और कश्मीर घाटी अस्तित्व में आ गयी| इस क्षेत्र में किसी समय नागा, खासा, गान्धारी तथा द्रादी जाति के लोग निवास करते थे| कश्मीर को खासा जाति से भी जोड़कर देखा जाता है|

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खासा से खसमीर और फिर कश्मीर| राजतरंगिणी में आठ तरंग (अध्याय) और 7826 श्लोक हैं| राजतरंगिणी का शाब्दिक अर्थ ‘राजाओं की नदी’ बताया गया है| जिसका भवार्थ ‘राजाओं का इतिहास’ या ‘समय का प्रवाह’ होता है| इस ग्रन्थ के प्रथम तरंग में बताया गया कि पांडु पुत्र सहदेव ने सर्वप्रथम कश्मीर में राज्य की स्थापना की थी| तब से लेकर 273 ईसा पूर्व तक यहाँ विशुद्ध रूप से वैदिक धर्म स्थापित रहा| उसके बाद बौद्ध धर्म का आगमन हुआ| कवि कल्हण ने राजतरंगिणी में महाभारत काल से लेकर अपने समकालीन राजा जय सिंह तक राजाओं का क्रमबद्ध वर्णन किया है| जय सिंह से आगे की पीढ़ी में सहदेव सिंह कश्मीर के राजा बने| सहदेव सिंह के बाद उनके सेनापति रामचन्द्र को और फिर रामचन्द्र की बेटी कोटा रानी को कश्मीर की गद्दी पर प्रतिष्ठित किया गया था| सन 1344 में कोटा रानी की मृत्यु के बाद 1589 तक यह राज्य सुल्तानों के और फिर अकबर के अधीन रहा| मुग़ल साम्राज्य के कमजोर होते ही सन 1756 में पठानों ने कश्मीर पर अधिकार कर लिया| वर्ष 1814 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों को पराजित करके कश्मीर को अपने राज्य में मिला लिया| उसके पूर्व वह जम्मू के राजा रंजीत देव की सत्ता पर भी कब्ज़ा जमा चुके थे|

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सन 1846 में अंग्रेजों ने सिखों को पराजित करके इस क्षेत्र को अपने अधीन कर लिया| इस बीच महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू की सत्ता गुलाब सिंह को सौंप दी थी| गुलाब सिंह जम्मू के राज परिवार से सम्बन्धित थे और एक समय महाराजा रणजीत सिंह की सेना में पैदल सैनिक के रूप में भर्ती हुए थे| अपने शौर्य एवं रण कौशल के बल पर वह रणजीत सिंह के विशेष कृपा पात्र बन गये थे| जम्मू के पूर्व राजा रंजीत देव तथा अंग्रेजों ने भी गुलाब सिंह को जम्मू का राजा मान लिया था| गुलाब सिंह ने बाद में 75 लाख नानकशाही रूपये में अंग्रेजों से कश्मीर घाटी खरीदकर जम्मू और कश्मीर राज्य की स्थापना की| इसीलिए डोंगरा राजवंशीय महाराजा गुलाब सिंह जम्मू और कश्मीर रियासत के संस्थापक तथा प्रथम नरेश माने जाते हैं| उनके बचपन से लेकर नरेश बनने तक का सफर विभिन्न शोध ग्रन्थों में विस्तृत रूप से वर्णित है| सन 1857 में महाराजा गुलाब सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र रणबीर सिंह जम्मू-कश्मीर के राजा बने|

तब से अगले नव्बे वर्षों तक यहाँ शान्तिपूर्ण एवं समृद्ध शासन व्यवस्था रही| रणवीर सिंह के बाद उनके पुत्र प्रताप सिंह ने कश्मीर की गद्दी सँभाली थी| सन 1925 में प्रताप सिंह के मरणोपरान्त उनके भाई राजा अमर सिंह के पुत्र हरी सिंह को कश्मीर का राज्य प्राप्त हुआ| सन 1947 में जब धार्मिक आधार पर भारत का बंटवारा हुआ तब जाति और सम्प्रदाय के हिसाब से इस अति विविध जनसंख्या वाले क्षेत्र के सम्मिलन में अनिर्णय की स्थिति को देखते हुए महाराजा हरी सिंह ने स्वतन्त्र रहने का निर्णय लिया| उस समय शेख अब्दुल्ला के नेतृत्त्व वाली मुस्लिम कांफ्रेंस (अब नेशलन कांफ्रेंस) कश्मीर में एक बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभर रही थी| इससे जुड़े ज्यादातर मुसलमान तथा कश्मीरी पण्डित भारत की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से प्रभावित होकर जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय चाहते थे|

जो पाकिस्तान को पसन्द नहीं था| गिलगित और बल्तिस्तान के कुछ मुस्लिम कबीले पाकिस्तान के बहकावे में आकर राजा हरी सिंह के निर्णय तथा जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय दोनों के खिलाफ हो गये| पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ अपनी छद्म सेना भेजकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया| तब प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु ने मुहम्मद अली जिन्ना से इस विवाद को जनमत संग्रह से सुलझाने की पेशकश की, जिसे जिन्ना ने सिरे से खारिज कर दिया| क्योंकि उसे अपनी छद्म ताकत पर पूरा भरोसा था| उसकी छद्म सेना कत्लेआम करते हुए कश्मीर पर कब्जा करने के लिए निरन्तर आगे बढ़ रही थी| महाराजा हरी सिंह इस आक्रमण को रोकने में कतई सक्षम नहीं थे| अन्ततः उन्होंने शेख अब्दुल्ला के सहयोग से कुछ शर्तों के साथ 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलय-पत्र पर हताक्षर कर दिये|

अब जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग बन चुका था| भारत की सेना ने कश्मीर पहुँचकर पाकिस्तानियों को वहाँ से खदेड़ा तो परन्तु पूरा कश्मीर खाली नहीं करा पायी| क्योंकि तब तक पाकिस्तान खुलकर सामने आ चुका था और दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया| युद्ध विराम की घोषणा होने तक कश्मीर के एक बड़े भूभाग पर पाकिस्तान का कब्जा हो चुका था| जो आज तक बरकार है| विलय-पत्र के अनुसार उसे यह कब्ज़ा ना छोड़ना पड़े, इसलिए वह कश्मीरी युवकों को आजादी का सपना दिखाते हुए आतंक की राह पर सदैव ढकेलता रहता है| सन 1990 के बाद जम्मू और कश्मीर की आतंकी घटनाओं में लगभग 42000 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं| आतंकवाद से परेशान होकर चार लाख से भी अधिक कश्मीरी पण्डित अपना घर छोड़कर पिछले तीन दशक से अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन व्यतीत कर रहे हैं| इस उम्मीद के साथ कि एक न एक दिन जम्मू-कश्मीर के दिन अवश्य  बहुरेंगे|

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