शोभा यात्रा के मद्देनजर सजा बनैलिया मंदिर, बना आकर्षण का केंद्र

शोभा यात्रा के मद्देनजर सजा बनैलिया मंदिर, बना आकर्षण का केंद्र

महराजगंज। नौतनवां नगर में स्थित विख्यात मां बनैलिया मंदिर के 30वें वार्षिकोत्सव को लेकर मंदिर परिसर मे सजावट का कार्य पूरा हो चुका है। मंदिर परिसर को काले, सुनहले, लाल और केसरिया रंगों से पंडाल बड़े ही खूबसूरती से रंग बिरंगी लाइटों से सुसज्जित किया गया है। हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 20

महराजगंज। नौतनवां नगर में स्थित विख्यात मां बनैलिया मंदिर के 30वें वार्षिकोत्सव को लेकर मंदिर परिसर मे सजावट का कार्य पूरा हो चुका है। मंदिर परिसर को काले, सुनहले, लाल और केसरिया रंगों से पंडाल बड़े ही खूबसूरती से रंग बिरंगी लाइटों से सुसज्जित किया गया है।

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 20 जनवरी को वार्षिकोत्सव धूमधाम से मनाने के लिए स्थानीय श्रद्धालुओं का जत्था भी तैयारीयां पूरी करवाने में जुट गया है। श्रद्धालु कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। 20 जनवरी को सुबह 11 बजे शोभा यात्रा मंदिर परिसर से निकल कर पूरे नगर की परिक्रमा करते हुए पुनः मंदिर परिसर में प्रस्थान करेगा। उसके बाद मंदिर परिसर में आरती और सार्वजनिक भंडारा प्रसाद के बाद 21 जनवरी को शाम 7 बजे से विशाल मां भगवती जागरण के साथ सुंदर झांकियों की प्रस्तुति की जायेगी।

वहीं माता बनैलिया के भव्य शोभायात्रा को ध्यान में रखते हुए नगर के चौक चौराहों पर भी श्रद्धालुगण फूलों व बैनरों से नगर को सजाने में लगे हुए हैं।

मां बनैलिया मंदिर विकास समिति अध्यक्ष राजेंद्र जायसवाल ने बताया कि पहले यहां थारू समाज की भूमि थी और यहां पहले घना जंगल था, जिसको काटकर किसान केदारनाथ मिश्र खेती करते थे। एक दिन उनको सपने में मां ने कहा कि यहां पर मेरी पिंडीं खोजकर मंदिर का निर्माण करो।

इसके बाद केदार मिश्र ने सन 1888 में यहां पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया, जंगल होने के कारण उन्हें वनदेवी के नाम से जाना जाता रहा। किंतु धीरे धीरे मंदिर विकसित होने से बनैलिया मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। जिसमें विधि विधान से 20 जनवरी 1991 में मूर्ति की स्थापना की गई।प्रतिवर्ष इस दिन को वार्षिकोत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

पांडवों ने किया था वन शक्ति की आराधना

पूर्वी उत्तर प्रदेश के नेपाल सीमा को जोड़ने वाले नौतनवा नगर में वन देवी अर्थात मां बनैलिया के नाम से विख्यात मंदिर स्थित है। मंदिर के इतिहास के सम्बंध में बताया जाता है कि अज्ञात वास के दौरान राजा विराट के भवन से लौटते समय पाण्डवों ने मां वन शक्ति की यहां पर अराधना किया था। जिससे प्रसन्न होकर मां ने पिण्डी स्वरूप में पाण्डवों को दर्शन दिया। कालांतर में मां की पिण्डी खेतों के बीच समाहित हो गई। एक दिन खेत जोत रहे किसान केदार मिश्र को स्वप्न में मां ने कहा कि यहां पर मेरी पिण्डी खोजकर मेरे मंदिर का निर्माण करो।

इसके बाद केदार मिश्र ने सन 1888 में यहां पर एक छोटे से मंदिर का निर्माण कराया। जो आज विशालकाय मंदिर के रूप में स्थापित हो चुका है, जिसकी स्थापना 20 जनवरी 1991 को विधि पूर्वक की गई थी। तभी से प्रतिवर्ष इस दिन को वार्षिकोत्सव के रूप में बड़े ही धूमधाम के साथ नगर वासियों द्वारा मनाया जाता है।

बताया जाता है कि यहां पर आने वाले हर भक्त की इच्छा मां पूरा करती है। चूंकि मां को हाथी बहुत पसंद है, इसलिए इच्छा पूरी होने पर श्रद्धालु यहां पर हाथी की मूर्ति भी चढ़ाते हैं।

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