राजा की वापसी अकेलेपन, अपमान और आत्मविश्वास से फिर नीली जर्सी तक,अक्षर पटेल उपकप्तान
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भारतीय क्रिकेट में वापसी की कहानियां नई नहीं हैं, लेकिन इशान किशन की वापसी साधारण नहीं कही जा सकती। यह सिर्फ एक खिलाड़ी का टीम में लौटना नहीं है, बल्कि उस मानसिक संघर्ष, चुपचाप की गई मेहनत और आत्मसम्मान की जीत की कहानी है, जिसे अक्सर स्कोरकार्ड नहीं माप सकता। जब चयन समिति ने दो साल बाद इशान किशन का नाम टी20 वर्ल्ड कप टीम में लिया, तो यह फैसला जितना चौंकाने वाला था, उतना ही प्रतीकात्मक भी। यह संदेश था कि क्रिकेट में दरवाजे बंद जरूर होते हैं, लेकिन अगर भीतर आग बाकी हो तो वे दोबारा खुल भी सकते हैं।
2023-24 का दौर इशान किशन के करियर का सबसे कठिन समय था। दक्षिण अफ्रीका दौरे से उन्होंने ‘मानसिक थकान’ का हवाला देकर नाम वापस लिया। उस एक फैसले ने उनके पूरे करियर की दिशा बदल दी। भारतीय क्रिकेट में, जहां निरंतरता और उपलब्धता को सबसे बड़ा गुण माना जाता है, वहां यह कदम मैनेजमेंट को रास नहीं आया। नतीजा यह हुआ कि वह न सिर्फ टीम से बाहर हो गए, बल्कि सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट भी हाथ से चला गया। जिन मैदानों पर कभी उनकी आक्रामक बल्लेबाजी की चर्चा होती थी, वहां अचानक सन्नाटा छा गया। आलोचनाएं शुरू हुईं, सवाल उठे, और यह तक कहा जाने लगा कि इशान किशन का अध्याय अब समाप्त हो चुका है।
लेकिन क्रिकेट सिर्फ आंकड़ों और चयन सूचियों का खेल नहीं है, यह धैर्य और आत्मविश्वास की परीक्षा भी है। इशान ने उस दौर में शोर नहीं मचाया। उन्होंने कोई सार्वजनिक सफाई नहीं दी, न ही चयनकर्ताओं पर निशाना साधा। वह बस चुपचाप मैदान पर लौटे, घरेलू क्रिकेट खेला, फिटनेस पर काम किया और सबसे अहम, अपने मन को संभाला। एक इंटरव्यू में उन्होंने फिल्म बाहुबली का डायलॉग याद किया। राजा जहां भी जाता है, राजा ही रहता है। यह कोई फिल्मी लाइन भर नहीं थी, बल्कि उनके लिए मानसिक संबल बन गई। जब चारों तरफ से संदेह था, तब यही विश्वास उन्हें आगे बढ़ाता रहा।
इशान किशन की खासियत हमेशा उनकी निडरता रही है। विकेटकीपर-बैटर के तौर पर वह पावरप्ले में मैच का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं। भारतीय टीम मैनेजमेंट इस समय ओपनिंग में ऐसे विकेटकीपर की तलाश में है, जो बल्लेबाजी में आक्रामक हो और टीम को संयोजन में लचीलापन दे सके। यही वजह है कि शुभमन गिल जैसे स्थापित खिलाड़ी को बाहर रखा गया। यह फैसला फॉर्म से ज्यादा भूमिका से जुड़ा था। इशान इस भूमिका में फिट बैठते हैं। उनके होने से टीम को अतिरिक्त बल्लेबाज या ऑलराउंडर खिलाने की आजादी मिलती है, जो टी20 क्रिकेट में निर्णायक साबित हो सकती है।
इशान की वापसी इसलिए भी खास है क्योंकि यह उस दौर में हुई है, जब भारतीय टीम प्रतिभा से ज्यादा विशेष भूमिका पर भरोसा कर रही है। चयन समिति के फैसले साफ संकेत देते हैं कि अब नाम नहीं, जरूरत अहम है। इशान ने खुद को उसी जरूरत के मुताबिक ढाला। उन्होंने अकेले अभ्यास किया, अपनी कमजोरियों पर काम किया और खुद को फिर से उसी आक्रामक रूप में तैयार किया, जिसके लिए वह जाने जाते हैं। यह वापसी किसी एक सीरीज या टूर्नामेंट की बदौलत नहीं हुई, बल्कि महीनों की चुप मेहनत का नतीजा है।
टी20 वर्ल्ड कप से पहले न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज में यही टीम मैदान पर उतरेगी। यह सीरीज इशान के लिए खुद को साबित करने का मंच होगी। दबाव जरूर होगा, लेकिन शायद वही दबाव उन्हें सबसे ज्यादा रास आता है। उन्होंने पहले भी दिखाया है कि बड़े मंच पर वह पीछे नहीं हटते। इस बार कहानी अलग है। अब वह युवा सनसनी नहीं, बल्कि अनुभव से निकला हुआ खिलाड़ी हैं, जिसने गिरकर उठना सीखा है।
इशान किशन की कहानी आज के युवा खिलाड़ियों के लिए भी सबक है। असफलता या ब्रेक का मतलब अंत नहीं होता। कभी-कभी पीछे हटना भी आगे बढ़ने की तैयारी होती है। मानसिक थकान को स्वीकार करना कमजोरी नहीं, बल्कि ईमानदारी है। इशान ने उस ईमानदारी की कीमत चुकाई, लेकिन हार नहीं मानी। उन्होंने यह साबित किया कि आत्मसम्मान के साथ किया गया संघर्ष आखिरकार रंग लाता है।
भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कई वापसी की कहानियां हैं, लेकिन इशान की वापसी इसलिए अलग है क्योंकि इसमें शोर नहीं था। यह कहानी सुर्खियों में नहीं, बल्कि नेट्स के कोने में, अकेली प्रैक्टिस में और खुद से की गई लड़ाई में लिखी गई। आज जब वह फिर नीली जर्सी में नजर आएंगे, तो यह सिर्फ एक खिलाड़ी की जीत नहीं होगी, बल्कि उस सोच की भी जीत होगी, जो कहती है कि राजा हालात से नहीं, अपने विश्वास से बनता है।
और शायद यही वजह है कि इशान किशन की वापसी सिर्फ चयन सूची की एक पंक्ति नहीं है। यह याद दिलाती है कि क्रिकेट में, और जिंदगी में भी, अगर आप खुद पर भरोसा रखना जानते हैं, तो समय चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, अंत में मैदान आपका ही इंतजार करता है।
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