सोनभद्र यूरिया की कमी से परेशान किसानों ने किया सड़क जाम, प्रशासन ने दिया जल्द आपूर्ति का आश्वासन

सोनभद्र यूरिया की कमी से परेशान किसानों ने किया सड़क जाम, प्रशासन ने दिया जल्द आपूर्ति का आश्वासन

कोन/सोनभद्र। सोमवार को कोन विकासखंड के कचनरवा लैम्पस में यूरिया खाद की कमी से जूझ रहे किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। सुबह से ही सैकड़ों की संख्या में किसान लैम्पस पर जमा हो गए और खाद न मिलने पर हंगामा करने लगे। किसानों ने कोन-विंढमगंज मार्ग को जाम कर दिया, जिससे यातायात पूरी तरह ठप हो गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, पिछले कई दिनों से किसान खाद लेने के लिए लैम्पस के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। किसानों ने आरोप लगाया कि केंद्र पर भारी अनियमितता बरती जा रही है। कुछ किसानों को 8-10 बोरी यूरिया दी जा रही है, जबकि कईयों को एक बोरी भी नसीब नहीं हो रही है।
 
किसानों का कहना है कि केंद्र के आसपास रहने वाले लोग अपने ही परिवार के कई सदस्यों को लाइन में लगाकर बड़ी मात्रा में यूरिया ले रहे हैं, जिसे वे खुले बाजार में ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं। यह कालाबाजारी एक गंभीर जांच का विषय है। किसानों के प्रदर्शन की सूचना मिलते ही स्थानीय प्रशासन मौके पर पहुंचा और किसानों को समझा-बुझाकर जाम खुलवाया। किसान संतोष, संजय, बसंत, अमरनाथ, जवाहीर, और रीता ने जिलाधिकारी और संबंधित विभाग से पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध कराने की मांग की है।
 
किसानों ने कालाबाजारी रोकने के लिए भी कुछ सुझाव दिए हैं। उनका मानना है कि किसानों की उंगली पर अमिट स्याही लगाने, साथ ही खतौनी, आधार कार्ड और परिवार के केवल एक सदस्य को खाद देने के लिए प्रधान द्वारा प्रमाणित कराने से इस समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा, स्थानीय बाजारों में विभाग द्वारा विशेष अभियान चलाकर कालाबाजारी रोकने की मांग भी की गई है।
 
इस मामले पर जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि जिले में उर्वरक की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध है। उन्होंने जानकारी दी कि प्राइवेट सेक्टर के लिए 1000 मीट्रिक टन और कॉपरेटिव के लिए 800 मीट्रिक टन यूरिया आवंटित की गई है। उन्होंने किसानों को आश्वस्त किया कि जल्द ही सभी केंद्रों पर यूरिया उपलब्ध हो जाएगी और उन्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है।यह घटना दिखाती है कि किस तरह यूरिया की कमी और वितरण में अनियमितता से किसान परेशान हैं। प्रशासन के आश्वासन के बाद भी, किसानों में यह डर बना हुआ है कि कहीं यह समस्या फिर न खड़ी हो जाए।
 

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