ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, कालजई लेखक श्री लाल शुक्ल के सम्मान में जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन
व्यंग्य उनके लिए शैली नहीं, विधा थी- रेखा अवस्थी।
शुक्ल जी का रागदरबारी’ एक ऐसा उपन्यास है जो यूटोपिया नहीं, बल्कि डिस्टोपिया-तल्पना प्रस्तुत करता है। विनोद तिवारी।
प्रयागराज । ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, कालजई रचना रागदरबारी के लेखक श्री लाल शुक्ल के सम्मान में श्रीलाल शुक्ल जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन साहित्य अकादेमी द्वारा 28 अगस्त 2025, सुबह 10:00 बजे से प्रथम तल सभागार, रवींद्र भवन, नई दिल्ली में किया गया।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में शरद दत्त निर्देशित वृत्तचित्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें श्रीलाल शुक्ल के व्यक्तित्व और साहित्यिक योगदान का प्रभावी चित्रण किया गया। इसके बाद स्वागत सत्र का आरंभ करते हुए साहित्य अकादेमी के सचिव, के. श्रीनिवासराव ने श्रीलाल शुक्ल के व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक यथार्थ की सटीकता पर प्रकाश डालते हुए स्वागत भाषण दिया।

प्रसिद्ध साहित्यकार गोविंद मिश्र ने अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि श्रीलाल शुक्ल मस्तमौला और अल्हड़ व्यक्तित्व के लेखक थे, जिनकी औपन्यासिक दृष्टि विशेष रूप से विषद व दूरदर्शी थी। इसके बाद बीज और विश्लेषण सत्र का प्रारंभ हुआ। जिसकी शुरुआत करते हुए हिंदी के प्रख्यात समालोचक रामेश्वर राय ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल की लेखनी की गहराई को परखने के लिए पारंपरिक आलोचनात्मक उपकरण अपर्याप्त हैं। उनके उपन्यास स्वतंत्रता के बाद के भारत की विकट स्थति और सामाजिक क्षतिपूर्ति को उजागर करते हैं ।
विनीता माथुर (शुक्ल की कनिष्ठ सुपुत्री) ने निजी संस्मरण साझा किए—उनकी शास्त्रीय संगीत और शस्त्रों में रुचि, खेल-कूद, और परिवार में उनके सरल, विनम्र और उदार स्वभाव को उजागर किया । समापन सत्र में कुमुद शर्मा (उपाध्यक्ष, साहित्य अकादेमी) ने कहा कि श्रीलाल शुक्ल ने व्यंग्य को एक “ अस्त्र” की तरह इस्तेमाल किया और भारत में 1960 के उपरांत की राजनीतिक-सामाजिक स्थितियों को बेबाक तरीके से सामने रखा ।

ममता कालिया (व्यक्तित्व सत्र अध्यक्ष) ने श्रीलाल शुक्ल को एक बेहतर मनुष्य और मज़ेदार लेखक के रूप में याद किया—उनकी बातें चुटीली और प्रभावी हुआ करती थी। शैलेंद्र सागर ने पहली मुलाकात और मृत्युपर्यंत उनके संबंध का स्मरण करते हुए कहा कि शुक्ल जी विचारों को थोपते नहीं थे, वे सभी की राय का सम्मान करते थे। नित्यानंद तिवारी (उपन्यास सत्र अध्यक्ष) ने ‘रागदरबारी’ को पूर्ण रचनाबंध व्यंग्य करार दिया — व्यंग्य यहाँ विशेषण नहीं, वस्तु स्वरूप है । विनोद तिवारी ने कहा कि ‘रागदरबारी’ एक ऐसा उपन्यास है जिसने औपन्यासिक संरचना को तोड़ा; यह यूटोपिया नहीं, बल्कि डिस्टोपिया-तल्पना प्रस्तुत करता है । प्रेम जनमेजय ने शुक्ल की अन्य कृतियाँ जैसे ‘विश्रामपुर का संत’, ‘मकान’, ‘आदमी का जहर’ पर अपने विचार व्यक्त किए ।
रेखा अवस्थी (उपन्यासेतर सत्र अध्यक्ष) ने कहा कि शुक्ल जी की कहानियाँ अतिविशिष्ट थीं, जिनमें बाद के कथाकारों ने आगे की विधाएँ विकसित कीं; व्यंग्य उनके लिए शैली नहीं, विधा थी। सुभाष चंदर ने शुक्ल जी को हिंदी के पाँच श्रेष्ठ व्यंग्यकारों में शामिल किया और उनकी कई कहानियाँ उद्धृत कीं राजकुमार गौतम ने शुक्ल के निबंध, कहानियाँ, रेडियो लेखन, साक्षात्कार आदि पर अपने विचार व्यक्त किए कार्यक्रम। अध्यक्षीय भाषण देते हुए माधव कौशिक (अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी) ने बताया कि व्यंग्य और फैंटेसी को उजागर करते हुए शुक्ल की रचनाएँ समय से आगे थीं। उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश — जिन्होंने पूरे आयोजन का संचालन संभाला । संगोष्ठी समारोह में शुक्ल जी के परिवारजन, साथ ही बड़ी संख्या में साहित्यकार, विद्यार्थी और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे ।
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