यूरिया खाद के लिए हाहाकार: लंबी कतारें, बेहोश किसान और सरकार के दावे

यूरिया खाद के लिए हाहाकार: लंबी कतारें, बेहोश किसान और सरकार के दावे

बस्ती। बस्ती जिले में यूरिया खाद के लिए किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ा रहा प्रशासन के ढीले रवैया के कारण खाद का संकट गहराया है जबकि सरकार का दवा पिछले साल की अपेक्षा अधिक खाद जिले में उपलब्ध कराई गई है जांच का विषय बनता है देशभर में किसानों के लिए यूरिया खाद अब “जीवनरेखा” से अधिक “संकट” बनती जा रही है। खेतों में बोआई और टॉप ड्रेसिंग का मौसम है, मगर खाद वितरण केंद्रों पर हज़ारों किसान रोज़ाना लंबी-लंबी लाइनों में खड़े हैं। कहीं भीड़ से धक्कामुक्की में लोग बेहोश होकर गिर रहे हैं, तो कहीं किसानों को मारपीट और लाठीचार्ज का सामना करना पड़ रहा है।
 
कुछ इलाकों से किसानों की मौत तक की खबरें सामने आई हैं।सरकार का दावा बनाम ज़मीनी हक़ीक़तउत्तर प्रदेश सरकार का कहना है कि प्रदेश में 5.95 लाख मीट्रिक टन यूरिया और अन्य खाद का पर्याप्त भंडार है, और किसानों को यह केवल 50 kg का ₹268 प्रति बोरीएवं 245 रूपये में 45 kg की बोरी में उपलब्ध हो रही है, जबकि वास्तविक लागत ₹2,174 प्रति बोरी तक है। सरकार का यह भी कहना है कि कमी नहीं है, बल्कि काली बाज़ारी और तस्करी हो रही है जिसे रोकने के लिए सख्ती की जा रही है। सीमावर्ती ज़िलों में छापे और हज़ारों जांचें की गई हैं।
 
लेकिन ज़मीनी तस्वीर अलग कहानी कहती है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड से लेकर तेलंगाना तक कई जगह किसानों को केवल “दो बोरी” की सीमा के साथ खाद दी जा रही है। कई बार आपूर्ति देर से पहुंचती है, तो किसान खाली हाथ लौटने को मजबूर हो जाते हैं।किसानों की परेशानी
 
किसानों का कहना है कि उन्हें हर हफ़्ते घंटों लाइन में लगना पड़ता है। कई बार रातभर इंतज़ार करने के बाद भी बैग नहीं मिलता। इससे फसल में खाद डालने का समय निकल रहा है, जिससे उपज पर असर पड़ने का डर है।
एमझारखंड में पुल ढहने जैसी घटनाएं मूसलाधार बारिश के बीच पहले से ही संकट गहरा रही हैं। वहीं उत्तराखंड और बिहार में भी बाढ़ और बारिश से जूझते किसान खाद की कमी से दोगुनी मार झेल रहे हैं।
 
असली वजह क्या?
विशेषज्ञों का कहना है कि कुल भंडार पर्याप्त है, लेकिन समस्या एक साथ बढ़ी मांग, धीमी सप्लाई चेन और काली बाज़ारी की है। सब्सिडी वाले यूरिया की कीमत बहुत कम होने से यह गैर-कृषि कार्यों और नेपाल सीमा पार तस्करी में भी जा रहा है। दूसरी ओर, वितरण केंद्रों पर PoS मशीन और आधार-आधारित सिस्टम की तकनीकी दिक़्क़तें किसानों की मुश्किलें और बढ़ा रही हैं।
 
विशेषज्ञ सुझाते हैं कि सरकार को खाद वितरण के लिए टोकन व्यवस्था, मोबाइल वैन, और ओपन डेटा डैशबोर्ड जैसी व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि किसानों को पता रहे कि कब और कहाँ खाद उपलब्ध है। साथ ही बॉर्डर और मंडी स्तर पर काली बाज़ारी रोकने के लिए सख़्त निगरानी ज़रूरी है। निचोड़ यही है कि यूरिया की कुल कमी नहीं है, बल्कि समस्या वितरण, तस्करी और व्यवस्था की है। मगर इसका खामियाज़ा सीधे खेत में खड़े किसान को झेलना पड़ रहा है—जहाँ उसकी फसल का हर दिन और हर बैग बेहद कीमती है।

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