बिहार ड्राफ्ट मतदाता सूची में सबसे ज्यादा 55% महिलाओं के नाम गायब?

बिहार ड्राफ्ट मतदाता सूची में सबसे ज्यादा 55% महिलाओं के नाम गायब?

प्रयागराज -: बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची में सबसे ज्यादा महिलाओं और मुस्लिम बहुल जिलों के वोटरों के नाम गायब हैं। विभिन्न मीडिया रिपोर्टों में इसकी पुष्टि की गई है। ऐसे में हाशिए पर पड़े समुदायों में मताधिकार को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं। बिहार में दो दिन पहले जारी ड्राफ्ट मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद महिलाओं और मुस्लिम बहुल जिलों में वोटरों के नाम सबसे ज्यादा गायब पाए गए हैं। स्क्रॉल ने चुनाव आयोग के डेटा का विश्लेषण किया है। कुल 65 लाख  हटाए गए नामों में से 55% महिलाएं हैं। बिहार में महिलाएं राज्य के मतदाता आधार का केवल 47.7% हिस्सा हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह काम बिना टारगेट तय किए नहीं किया जा सकता। 
 
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 43 में 60% या उससे अधिक मतदाता महिलाओं के नाम गायब हैं। कैमूर जिले की राजपुर विधानसभा सीट, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, में सबसे अधिक 69% मतदाता महिलाएं गायब हैं। यह आंकड़ा इस बात की ओर इशारा करता है कि मतदाता सूची से हटाए गए लोगों में महिलाओं का अनुपात असमान रूप से अधिक है।
 
मुस्लिम बहुल जिलों में चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार सबसे ज्यादा नाम गायब हैं। बिहार के 10 सबसे बड़े मुस्लिम आबादी वाले जिलों में से पांच - पूर्णिया, किशनगंज, मधुबनी, भागलपुर और सीतामढ़ी - में सबसे अधिक मुस्लिम मतदाताओं के नाम गायब हैं। पूर्णिया जिले में, जहां मुस्लिम आबादी लगभग 38.5% है, 2,73,920 मतदाताओं के नाम हटाए गए। मधुबनी में 3,52,545, पूर्वी चंपारण में 3,16,793 और सीतामढ़ी में 2,44,962 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए।
 
डेटा से यह भी पता चलता है कि जिन जिलों में मुस्लिम आबादी अधिक है, वहां नाम हटाने की दर भी अधिक है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी वाले जिलों में यह दर उससे कम है। पश्चिम बिहार के गोपालगंज जिले में सबसे अधिक 15.1% नाम गायब हैं। जिले की छह विधानसभा सीटें - गोपालगंज, कुचायकोट, बरौली, हथुआ, बैकुंठपुर और भोरे में  18.25% तक नाम कटने वाली 20 सीट प्रमुख हैं। पूर्णिया जिले की तीन सीटें - पूर्णिया, अमौर और धमदहा में भी बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम उड़ा दिए गए हैं।
 
विपक्षी दलों और नागरिक समाज संगठनों ने चेतावनी दी है कि यह पुनरीक्षण प्रक्रिया लाखों नागरिकों, खासकर दलितों, मुस्लिमों और प्रवासी मजदूरों को मताधिकार से वंचित कर सकती है। 24 जून से 26 जुलाई के बीच मतदाताओं को गणना प्रपत्र जमा करने थे, और अब उन्हें अंतिम सूची में शामिल होने के लिए नागरिकता का प्रमाण देना होगा, जो 30 सितंबर को प्रकाशित होगी। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए विशेष रूप से मुश्किल भरी हो सकती है। क्योंकि उनके पास आवश्यक दस्तावेजों की कमी होगी।
 
सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया पर चिंता जताते हुए कहा है कि चुनाव आयोग को "बड़े पैमाने पर लोगों के नाम" शामिल करने पर ध्यान देना चाहिए, न कि "बड़े पैमाने पर नाम डिलीट" करने पर। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने 1 अगस्त को ड्राफ्ट सूची प्रकाशित करने से रोकने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह केवल एक ड्राफ्ट सूची है।
 
93 पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने एसआईआर को "लोकतंत्र के आधार पर हमला" करार दिया है, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए। उनका कहना है कि कई भारतीयों के पास नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं, और यह प्रक्रिया उनके मताधिकार को प्रभावित कर सकती है। विशेष रूप से सीमांचल क्षेत्र, जिसमें अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया शामिल हैं, पर इस प्रक्रिया का सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, जहां कई परिवारों के पास स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र जैसे आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं।
 
बहरहाल, बिहार की ड्राफ्ट मतदाता सूची में महिलाओं और मुस्लिम बहुल जिलों से नाम गायब होने ने सिर्फ चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाया है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चुनौती भी पेश कर दी है। जैसे-जैसे अंतिम सूची (1 सितंबर) की तारीख नजदीक आएगी, सभी की नजर इस बात पर टिकी रहेगी कि क्या चुनाव आयोग इन चिंताओं को दूर कर पाएगा और सभी पात्र मतदाताओं को शामिल करने में सफल होगा।
 
इस बीच कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रणव झा ने सोमवार को बिहार में कराए गए मतदाता पुनरीक्षण पर सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव आयोग को बीजेपी ने हाईजैक कर लिया है। उन्होंने दावा किया आयोग ने मृत व्यक्तियों के नामों का भी सत्यापन कर दिया गया और जिन्होंने कागज जमा नहीं किया, उनका फॉर्म भी जमा कर दिया गया। पटना में बिहार कांग्रेस प्रदेश कार्यालय में राष्ट्रीय सचिव प्रणव झा और बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश राम ने संयुक्त रूप से एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह दावा किया।
प्रणव झा ने कहा कि बिहार में चुनाव आयोग ऐसे लोगों को भी वोटर लिस्ट में शामिल कर रहा है, जिनकी मृत्यु हो चुकी है। हालात ये हैं कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह जिनके श्राद्ध में गए थे, चुनाव आयोग ने उनका भी नाम वोटर लिस्ट में शामिल किया है। साफ है कि वोटर लिस्ट जांच करने के नाम पर सत्ता में बैठे लोगों द्वारा खेल खेला जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी हो रही है। ये समय है बिहार के लोगों के जागरूक होने का और सरकार से सवाल पूछने का। इस चुपचाप की जा रही प्रक्रिया से साफ है कि दाल में कुछ काला है।
 
प्रणव झा ने तंज कसते हुए कहा कि बीजेपी ने बिहार में चुनाव आयोग को ओवरटाइम करने भेजा था। सूबे के लगभग प्रत्येक जिले में मतदाताओं के नाम काटने की कवायद की गई, जो हड़बड़ी में गड़बड़ी की ओर इंगित करता है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ऐसे मतदाता पुनरीक्षण के नाम पर हो रहे मजाक की भर्त्सना करती है। साथ ही विसंगतियों को अविलंब सुधार करने के बाद ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने की मांग करती है।
 
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि बिहार में एसआईआर के माध्यम से 65.64 लाख लोगों के नाम हटाए गए हैं। इस संबंध में हमने चुनाव आयोग को पत्र लिखे और सवाल पूछे, लेकिन उनकी तरफ से इसका जवाब नहीं आया। हमारे सवाल थे कि चुनाव आयोग ने जिन लोगों को मृत पाया, जो लोग स्थायी रुप से उपलब्ध नहीं पाए गए, जिन लोगों को उनके पते पर नहीं पाया गया और जिन लोगों के नाम लिस्ट से बाहर किए गए- उसकी विस्तृत सूची कांग्रेस पार्टी को दी जाए। लेकिन जो हैरान कर देने वाली बात सामने आई वो ये है कि चुनाव आयोग की वेबसाइट और प्रेस ब्रीफिंग में कहीं भी वोटर लिस्ट से हटाए गए लोगों के नाम, पता का जिक्र नहीं है। कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें मृत घोषित करके नाम वोटर लिस्ट से हटा दिए गए।

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