निठारी कांड - उन्नीस साल सिर पटकने पर भी नहीं मिला इंसाफ 

निठारी कांड - उन्नीस साल सिर पटकने पर भी नहीं मिला इंसाफ 

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर जिले के नोएडा के एक छोटे से गांव निठारी में बच्चों की लाश मिलने की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. मामला राजधानी दिल्ली से सटे हुए इलाके का था, तो नेशनल-इंटरनेशनल मीडिया पहुंचने लगी. बच्चों की लाश मोनिंदर सिंह पंढेर की कोठी के पास मिली तो पुलिस ने कोठी के मालिक सहित उसकी देखभाल करने वाले नौकर सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार कर लिया. फिर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की तो पुलिस ने दोनों को आरोपी बनाया. पुलिस द्वार पेश किए गए सबूतों के आधार पर सीबीआई कोर्ट ने दोनों आरोपियों को फांसी की सजा सुना दी. लेकिन साल 2023 में हाईकोर्ट ने पंढेर को निठारी कांड से जुड़े सभी मामलों से बरी कर दिया. इसके बाद नौकर सुरेंद्र कोली भी धीरे-धीरे बरी होता चला गया. हालांकि अभी वो बस एक मामले में जेल में बंद है. आशंका है कि उसमें भी ये बरी हो सकता है, 
 
आपकों याद रहे कि नोएडा के निठारी गांव में जब एक के बाद एक बच्चों के कंकाल और अवशेष मिले थे, तो पूरा देश सन्न रह गया था. मोनिंदर सिंह पंढेर और उसका नौकर सुरेंद्र कोली इस सनसनीखेज नरसंहार के आरोपी थे. कोर्ट से उन्हें फांसी की सजा भी सुनाई गई थी. लेकिन साल 2023 में हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले को नया मोड दे दिया. मोनिंदर सिंह पंढेर को निठारी कांड से जुड़े सभी मामलों से बरी कर दिया गया. इसके बाद उसका नौकर सुरेंद्र कोली भी एक बाद एक मामलों में बरी होता गया.
 
2अब वो महज एक मामले में जेल में बंद है. जिसमें उसे जल्दी राहत मिल सकती है।अब फिर वही बड़ा सवाल  है कि अगर ये दोनों निर्दोष हैं तो फिर निठारी कांड का जिम्मेदार कौन है?देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसियां 16 मासूमों के असली कातिल को पकड़ने में नाकाम क्यों रहीं? या पकड़ ने के बावजूद अभियोजन में ऐसी विसंगतियां जानबूझकर छोड़ दी गयी जो अभियुक्तों के बचाव में सहायक बन गयी? जो भी हो न्याय की तलाश में उन्नीस साल तक अदालत की चौखट पर टकटकी लगा कर बैठे उन अभागे अभिभावकों को गहरा धक्का लगा है जिनके निर्दोष बच्चों को कत्ल कर उनके शरीर के अंग खूनी कोठी के पिछवाड़े नाले में फेंक दिए गए थे। 
 
आपकों बता दें कि निठारी में साल 2006 में जब बच्चों के शवों के टुकड़े नाले से बरामद हुए थे, तो पूरा देश सन्न रह गया था. सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर इस वीभत्स कांड के मुख्य आरोपी बनाए गए. लेकिन सालों चली सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया. केस में कई बुनियादी खामियां रहीं – जैसे फॉरेंसिक साक्ष्य की कमी, पुलिस कस्टडी में दिए इकबालिया बयानों का बिना पुष्टि कोर्ट में पेश किया जाना और अहम सबूतों की गुमशुदगी. इन सब बातों ने पूरे केस की नींव ही हिला दी.
 
हाल ही में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि अभियोजन पक्ष कोली और पंढेर के खिलाफ 'उचित संदेह से परे' अपराध साबित करने में विफल रहा. जांच में मिली चिप, जिस पर कोली के कबूलनामे का वीडियो था, वह पेश ही नहीं की गई. ना ही उस बयान पर कोली के दस्तखत थे. कोर्ट ने पाया कि जांच एजेंसी ने आपराधिक केस के बुनियादी नियमों की भी अनदेखी की.पुलिस की सबसे बड़ी चूक थी – फॉरेंसिक एविडेंस और प्रत्यक्षदर्शी गवाहों का न होना। डी-5 कोठी से ना खून के निशान मिले, ना शवों के अवशेष. सीमन के सैंपल तक कोली से मैच नहीं हुए. यहां तक कि कोली के ‘आदमखोर’ होने का भी कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला. शवों को बाथरूम में रखने, काटने, गाड़ने और पकाने जैसी बातें सिर्फ पुलिस कस्टडी में दिए उसके बयानों तक ही सीमित रहीं  जिनकी पुष्टि कहीं नहीं हुई.
 
यह सवाल अब भी अब एक रहस्य बन गया है कि अगर कोली भी बरी हो जाएगा, तो वो कौन था जिसने 16 बच्चों को नृशंसता से मारा? कोर्ट ने यहां तक कहा कि इस केस को एक गरीब नौकर पर जबरन मढ़ा गया. कोर्ट ने कहा कि अंगों की तस्करी के एंगल की कभी जांच ही नहीं हुई. डी-5 कोठी के मालिक की भूमिका तक की जांच नहीं की गई, जबकि वह पहले से ही किडनी स्कैम मामले में आरोपी था. क्या हत्याएं किसी और ने की और एजेंसियों ने असली कातिल को छोड़ दिया? कोर्ट ने यह भी कहा कि ना तो हत्या के लिए कोई हथियार मिला, ना कोई गवाह, ना कोई हत्या के पीछे का मकसद. यही कारण है कि पंढेर को बरी कर दिया गया और सुरेंद्र कोली को भी राहत मिल गई है. पुलिस की शुरुआती जांच में पंढेर और कोली को बराबर का गुनाहगार बताया गया. पर बाद में पंढेर को धीरे-धीरे क्लीनचिट मिली गई और सारा आरोप कोली पर आ गया. कोली की कानूनी मदद नहीं की गई. मेडिकल जांच भी अधूरी रह गई और उसे लंबे समय तक पुलिस रिमांड में रखा गया। 
 
कोली के बयानों के अनुसार उसने शवों के टुकड़ों को पॉलीथिन में डालकर नाले में फेंका और कुछ को जमीन में दबाया था . लेकिन जमीन की खुदाई में कुछ नहीं मिला. न ही किसी शव की पहचान डीएनए से करवाई गई. जांच एजेंसी यह भी साबित नहीं कर पाई कि कोठी के अंदर हत्याएं हुईं. कोर्ट ने कहा – 'ना तो हत्या के लिए कोई हथियार मिला, ना कोई गवाह, ना कोई मकसद.' यही कारण है कि पंढेर को बरी कर दिया गया और अब कोली को भी राहत मिल गई है.
 
कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई कि कोली को अकेले दोषी ठहराने की जल्दबाजी क्यों की गई. शुरुआत में पंढेर और कोली को बराबर का गुनहगार बताया गया, पर बाद में पंढेर को धीरे-धीरे क्लीनचिट मिलती गई और सारा आरोप कोली पर आ गया. कोली की कानूनी मदद नहीं की गई, मेडिकल जांच भी अधूरी रही और उसे लंबे समय तक पुलिस रिमांड में रखा गया. क्या ये सब एक साजिश का हिस्सा था?
 
निठारी केस की जांच से जुड़ा एक और पहलू था – ऑर्गन ट्रैफिकिंग का. कोर्ट ने कहा कि इस पहलू की जांच कभी गंभीरता से नहीं की गई. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तक ने इस दिशा में जांच की मांग की थी. लेकिन सीबीआई ने डी-5 कोठी के मालिक से पूछताछ तक नहीं की. क्या ये केस सिर्फ ‘बलात्कार और हत्या’ की कहानी थी या इसके पीछे कोई बड़ा और संगठित गिरोह काम कर रहा था?
 
गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने कोली को 12 मामलों में और पंढेर को 2 मामलों में फांसी की सजा दी. लेकिन हाई कोर्ट ने सबूतों के अभाव में ये सभी सजाएं खारिज कर दीं. आखिर एक ही केस में दो अदालतों की राय इतनी अलग कैसे हो सकती है? हाई कोर्ट के मुताबिक ये केस पुलिस और सीबीआई की लापरवाही का नमूना बन चुका है. जो चिप सबसे अहम सबूत थी, वही गायब कर दी गई.
 
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद मोनिंदर सिंह पंढेर साल 2023 में रिहा हो गया था. लेकिन कोली की एक अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. रिंपा हलधर केस में उसे पहले फांसी और फिर उम्रकैद हुई थी. अगर उस केस में भी बरी हो गया तो वो भी बाहर आ सकता है. यह दिखाता है कि कैसे सिस्टम में गड़बड़ियों की वजह से सबसे गंभीर मामले भी ‘नतीजा विहीन’ रह जाते हैं.
 
अब यह सवाल देश की जांच एजेंसियों और न्यायपालिका पर कलंक लगा रहा है कि आखिर देश को हिला देने वाला निठारी कांड अब कानून की नजर में अनसुलझा कैसे बन गया . आरोपी अभियुक्त पंढेर बाहर है, कोली एक मामले में जेल में है, बाकी सभी केसों से बरी हो चुका है. लेकिन जिन 16 बच्चों के शव नाले से मिले थे, उनका गुनहगार कौन है? अगर पुलिस और सीबीआई की जांच सही नहीं थी, तो क्या किसी और ने हत्याएं की थीं? 
 
यदि हमारी पुलिस और सीबीआई जैसी विश्वसनीय जांच एजेंसी सोलह बच्चों के कातिल दरिंदों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में नाकाम रहती है तो क्या यह उनकी विश्वसनीयता पर बदनुमा दाग नहीं है। देश की सबसे बड़ी अदालत यदि पुलिस और जांच एजेंसियों के स्तर पर लापरवाही और सबूत जुटाने या पेश करने मे लापरवाही भरी असफलता की बात कहती है तो अदालत को न्याय की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इस  बड़ी जघन्य निर्मम हत्याओं से जुड़े मामले की नए सिरे से जांच करानी चाहिए। क्या अशिक्षित साधनहीन गरीब कामगार लोगों को उनके मासूम बच्चों की निर्मम हत्या के दोषियों को सजा दिलाने और न्याय पाने का अधिकार नहीं है? यदि गरीबों को न्याय देने में हमारी व्यवस्था और न्यायपालिका अक्षम है तो इस समूचे तंत्र की क्या उपयोगिता है? 

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