ओबरा-बग्गा नाला मार्ग पर छाया अंधेरा , मौत को दे रहा दावत

ओबरा-बग्गा नाला मार्ग पर छाया अंधेरा कोरा रहा अधिकारियों की लगातार बैठकें

ओबरा-बग्गा नाला मार्ग पर छाया अंधेरा ,  मौत को दे रहा दावत

ओबरा-बग्गा नाले प्रकरण पर प्रशासन मौन, लोगों ने किया तत्काल कार्यवाही की मांग

अजित सिंह ( ब्यूरो रिपोर्ट) 

ओबरा/सोनभद्र -

ओबरा-बग्गा नाले पर पसरा घना अंधेरा अब मात्र एक समस्या नहीं, बल्कि स्थानीय निवासियों और यात्रियों के लिए मौत का रास्ता बन चुका है। बतातें चलें कि शाम ढलते ही यह मार्ग डरावना हो जाता है, क्योंकि यहां लगाए गए लाइट पोल सिर्फ दिखावे के लिए हैं। अधिकांश पोल या तो खराब पड़े हैं या उनमें कभी रोशनी ही नहीं आती, जिससे उनका मूल उद्देश्य ही फेल हो गया है।

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इस अंधेरे और अनियमित यातायात के कारण आए दिन दुर्घटनाओं का खतरा मंडराता रहता है, खासकर टिपर और हाइवा जैसे भारी वाहनों की तेज रफ्तार से यह मार्ग और भी जानलेवा हो गया है। सड़क पर रोशनी के लिए लगाए गए पोल बस शोभायान बनकर रह गया है जो कभी जलता ही नहीं, जिससे रात में सड़क पर कुछ भी दिखाई नहीं देता। गौरतलब है कि यह मार्ग पैदल चलने वालों और वाहन चालकों दोनों के लिए बेहद खतरनाक है।

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बतातें चलें कि ओबरा-बग्गा नाले पर टिपर और हाइवा ट्रकों का जमावड़ा लगा रहता है। ये ट्रक अक्सर बेतहाशा स्पीड में चलते हैं, और अंधेरे में चालकों को सड़क पर चल रहे लोगों या अन्य गाड़ियों को देखने में अत्यधिक परेशानी होती है। यह सीधे तौर पर दुर्घटना की संभावना को कई गुना बढ़ा देता है। सड़क के किनारे कोई फुटपाथ या सुरक्षित रास्ता न होने के कारण पैदल चलने वाले लोग सीधे सड़क पर चलने को मजबूर हैं। अंधेरे में, भारी वाहनों की चपेट में आने का खतरा बहुत ज़्यादा होता है।

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सूखे मौसम में भारी वाहनों के चलने से उड़ने वाली धूल भी सड़क पर दिखाई देने की क्षमता को और कम कर देती है, जिससे दुर्घटना का खतरा और बढ़ जाता है।ओबरा और आसपास के गांवों के लोग इस गंभीर समस्या से त्रस्त हैं। जिसके क्रम में स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार स्थानीय प्रशासन और संबंधित अधिकारियों को इस बारे में सूचित किया है, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी तो खुद हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। उनकी नज़र में, अगर कोई दुर्घटना होती है या किसी की जान जाती है, तो इसके लिए सीधे तौर पर अधिकारी ही जिम्मेदार होंगे।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि कुछ ही दिन पहले जिलाधिकारी प्रशासन द्वारा एक बैठक कर इस समस्याओं को जल्द से जल्द निस्तारण करने के लिए निर्देश दिए गए थे लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि वे निर्देश सिर्फ हवा में ही दिख रहे हैं, जमीन पर कुछ भी नहीं दिख रहा। यह अधिकारियों की घोर लापरवाही और असंवेदनशीलता को दर्शाता है।बैठक में दिए गए निर्देश सिर्फ कागजों तक ही सीमित है bऔर ज़मीनी हकीकत जस की तस बनी हुई है।

लोगों का कहना है कि सभी खराब लाइट पोलों को तत्काल ठीक किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि वे हर शाम जलें और स्वयं ही बिजली विभाग को इस पर तत्काल ध्यान देना चाहिए और भारी वाहनों के लिए गति सीमा तय की जाए और उसका कड़ाई से पालन कराया जाए। वहीं तेज रफ्तार से चलने वाले चालकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए और यातायात पुलिस और परिवहन विभाग को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी। विशेष रूप से शाम और रात के समय इस मार्ग पर यातायात पुलिस को नियमित रूप से तैनात किया जाए ताकि नियमों का उल्लंघन करने वालों पर लगाम लग सके और यातायात को नियंत्रित किया जा सके।

अंधेरे की वजह से अनियंत्रित यातायात की वजह से किसी भी समय एक बड़ी दुर्घटना हो सकती है जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है, जो सिर्फ पीड़ित परिवारों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए एक बड़ी त्रासदी होगी। स्थानीय प्रशासन, लोक निर्माण विभाग और बिजली विभाग की यह नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है कि वे इस मार्ग को सुरक्षित बनाएं। जन सुरक्षा को सबसे ऊपर रखते हुए, उन्हें तत्काल प्रभाव से इन मांगों पर ध्यान देना चाहिए और जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए। केवल बैठकें करने और हवाई निर्देश देने से काम नहीं चलेगा, अब ज़मीनी स्तर पर काम करने का समय है।

यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो भविष्य में होने वाली किसी भी दुर्घटना के लिए प्रशासन को ही सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया जाएगा।लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल इस समस्या को हल करने के लिए प्रशासन को सबसे पहले कौन सा कदम उठाना चाहिए, ताकि जिलाधिकारी के निर्देश कागजों से उतरकर जमीन पर लोगों को दिखें।

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