हाईकोर्ट की फटकार के बाद एसआरएन अस्पताल के उपाधीक्षक सहित तीन निलंबित ।

-अस्पताल के कई वार्डों में टूटे हुए पलंगों पर मरीजों का इलाज किया जा रहा है.

हाईकोर्ट की फटकार के बाद एसआरएन अस्पताल के उपाधीक्षक सहित तीन निलंबित ।

स्वतंत्र प्रभात ब्यूरो।
प्रयागराज 
 
 
इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़ी फटकार के बाद शासन ने शुक्रवार को एक कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया गया और तीन पर निलंबन की कार्रवाई की गई है. स्वरूप रानी नेहरू चिकित्सालय (एसआरएन) अस्पताल के कार्यवाहक उपाधीक्षक गौतम त्रिपाठी, स्टाफ नर्स रंजना और सेनेटरी इंस्पेक्टर अमरनाथ यादव को निलंबित कर दिया है. लापरवाही में स्वास्थ्यकर्मी मनोज कुमार यादव की भी संविदा समाप्त कर दी गई है. महानिदेशक की तरफ से मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य डॉ. वत्सला मिश्रा को इस कार्रवाई का आदेश भेज दिया गया है.।
 
 
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य डॉ. वत्सला मिश्रा को शासन से निर्देश मिला कि एसआरएन अस्पताल के कार्यवाहक उपाधीक्षक गौतम कुमार, नर्सिंग ऑफिसर रंजना लुईस और सेनिटरी इंस्पेक्टर अमरनाथ यादव को तत्काल सस्पेंड किया जाए. वहीं मेल नर्स मनोज कुमार यादव को बर्खास्त करने का आदेश भी दिया गया है। इसके साथ ही तीन बाबुओं के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने और ऑर्थोपेडिक विभाग के प्रमुख के खिलाफ शासन को अनुशंसा भेजने को कहा गया है.
 
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एसआरएन अस्पताल की बदहाली पर सरकार से जवाब तलब किया है. हाईकोर्ट ने अस्पताल की बदहाली पर कड़ी फटकर लगाई थी. इसके बाद अगले ही दिन प्रयागराज के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार मांदड़ जांच करने पहुंच गए. इसी कड़ी में अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य डॉ. नीलम सिंह को निरीक्षण के लिए भेजा गया.
 
उन्होंने 3 दिनों तक अस्पताल की व्यवस्थाओं को बारीकी से परखा. अस्पताल के कर्मचारियों और अधिकारियों के कार्यों की जानकारी ली. इसके बाद कर्मचारियों और अधिकारियों के साथ मैराथन बैठक की. इसके बाद शासन को रिपोर्ट भेजी. रिपोर्ट के आधार पर शासन ने उप अधीक्षक गौतम त्रिपाठी, स्टाफ नर्स रंजना, सेनेटरी इंस्पेक्टर अमरनाथ यादव को सस्पेंड करने का आदेश जारी किया.
 
इसके अलावा स्वास्थ्यकर्मी मनोज कुमार यादव की संविदा को भी समाप्त करने का आदेश दिया गया. शासन के निर्देश को प्रमुख अधीक्षक डॉ. आरबी कमल की तरफ से लागू कर दिया गया है. मोती लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की प्राचार्य डॉ. वत्सला मिश्रा ने बताया कि शासन से निर्देश मिलने के बाद उप अधीक्षक समेत अन्य के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की गई है. सभी पर काम में लापरवाही बरतने का अरोप है.
 
कोर्ट ने हलफनामे को आंखों में धूल झोंकने वाला बताया था : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एसआरएन अस्पताल की बदहाली पर खुद संज्ञान लेते हुए, उत्तर प्रदेश सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. न्यायालय ने स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया था. राज्य के सभी 42 सरकारी मेडिकल कॉलेजों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से प्रस्तुत हलफनामे को 'आँखों में धूल झोंकने' वाला बताया था.
 

एसआरएन की ये हैं प्रमुख समस्याएं :

 
-अस्पताल के कई वार्डों में टूटे हुए पलंगों पर मरीजों का इलाज किया जा रहा है.
 
-महिला वार्ड में दरवाजों की जगह बेडशीट लगाई गई है, जिससे मरीजों की निजता और सुरक्षा पर सवाल उठते हैं.
 
-कई वार्डों में पंखे काम नहीं कर रहे थे, एसी और कूलर खराब पड़े थे.
 
-डॉक्टरों द्वारा मरीजों को अस्पताल के बाहर से महंगी दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिससे गरीब मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है.
 
-इसके पीछे मेडिकल माफिया और डॉक्टरों की मिलीभगत की भी आशंका जताई गई है. इसकी भी जांच चल रही है.
 
-अस्पताल में महिला डॉक्टरों के लिए अलग ड्यूटी रूम की व्यवस्था नहीं है, जिससे उनकी कार्यक्षमता और सुरक्षा प्रभावित हो रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की है और अस्पताल प्रशासन से विस्तृत योजना मांगी है.
 
-MRI, CT स्कैन और अल्ट्रासाउंड जैसी जांचों के लिए मरीजों को 2 महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है.
 
यह कार्रवाई अपर निदेशक चिकित्सा स्वास्थ्य डॉ. नीलम सिंह की तीन दिन की जांच रिपोर्ट के आधार पर हुई है. डॉ. सिंह को हाईकोर्ट ने सीधे एसआरएन अस्पताल का निरीक्षण कर स्थिति की रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था. निरीक्षण के दौरान उन्हें अस्पताल में कई खामियां और कर्मचारियों की लापरवाही मिली. उपाधीक्षक गौतम को निर्माण, सुरक्षा और रसोई से जुड़े कामों में लापरवाही और अनुचित हस्तक्षेप का दोषी पाया गया. वहीं, नर्सिंग ऑफिसर, सेनिटरी इंस्पेक्टर और संविदा पर तैनात मेल नर्स को भी अपने कर्तव्यों में गंभीर चूक का दोषी पाया गया
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इस पूरे मामले में प्राचार्य ने एसआरएन के प्रमुख अधीक्षक डॉ. आरबी कमल को कार्रवाई सुनिश्चित करने का निर्देश दे दिया है. इसी बीच हाईकोर्ट में शुक्रवार को चिकित्सा शिक्षा को लेकर सुनवाई भी हुई.कोर्ट में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा हाजिर नहीं हो सके, जिस पर सरकारी वकील ने माफी मांगी. कोर्ट ने अब प्रमुख सचिव को 1 जुलाई को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है.
 
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रदेश के 42 सरकारी मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों की हालत पर गहरी चिंता जताई. कोर्ट ने पूछा कि इन संस्थानों की हालत सुधारने के लिए अब तक क्या प्रयास किए गए हैं. कोर्ट ने ये भी कहा कि प्रयागराज जैसे क्षेत्र में लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई जैसी संस्थान की जरूरत है ताकि आस-पास के जिलों को भी राहत मिल सके.
 
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि मेडिकल सुविधाएं केवल लखनऊ या राजधानी तक सीमित न रहें. राज्य के बाकी शहरों को भी बराबर सुविधा मिलनी चाहिए, क्योंकि करदाताओं का पैसा पूरे प्रदेश का है. कोर्ट ने आगामी कुंभ 2031 के लिए एसआरएन अस्पताल में बिस्तरों की संख्या 1250 से बढ़ाकर 3000 करने की योजना और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करने के प्रयासों की भी जानकारी मांगी है. हाईकोर्ट की सख्ती के बाद सरकार ने एसआरएन अस्पताल की लापरवाह व्यवस्था पर पहली बड़ी कार्रवाई की है.

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