खुदकशी नहीं है समाधान न दैन्यं न पलायनम्! 

खुदकशी नहीं है समाधान न दैन्यं न पलायनम्! 

आए दिन लोग खुदकशी कर जान दे रहे हैं। श्री कृष्ण ने पवित्र महाभारत में अर्जुन से कहा, “न दैन्यम, न पलायनम”, जिसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति को जीवन में अपनी समस्याओं से कभी नहीं भागना चाहिए, और कभी भी अपने दुश्मनों के सामने हार नहीं माननी चाहिए और न ही झुकना चाहिए। उनके अनुसार, एक बार जब आप दृढ़ संकल्प बना लेते हैं, और अपने मन, शरीर या आध्यात्मिक स्तर पर पीछे नहीं हटने का निर्णय लेते हैं, तो आप पहले ही जीवन की लड़ाई जीत चुके हैं।
 
लेकिन धर्म और अध्यात्म से दूर होकर रील और सोशल मीडिया में भटक रहे देश में जिस प्रकार से आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं, वह दुःखद होने के साथ ही काफी चिंतनीय है। आर्थिक तंगी, कर्ज का बोझ, पारिवारिक कलह, परीक्षा या प्रेम में विफलता आदि के चलते खुदकुशी की घटनाएं पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ती गई हैं। ताजा मामला पंचकूला में एक ही परिवार के सात लोगों के जिंदगी से हार कर मौत को गले लगाने का है। इस सामूहिक आत्महत्या ने एक बार फिर कई सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनका जवाब अब तक लोगों को नहीं मिल सका है। सवाल है कि परिवार पर कर्ज का बोझ, क्या इस कदर था कि सात लोगों की जिंदगियों की बलि देना पडा।
 
इस मामले के सामने आने के बाद एक बार फिर बुराड़ी का भयावह घटनाक्रम सामने घूम जाता है जहां एक ही घर में ग्यारह लाशें मिली थीं। हालांकि इस का रहस्य आज भी अनसुलझा है। पुलिस के अनुसार पंचकूला में खड़ी कार के अंदर एक ही परिवार के सात सदस्यों के मृत पाया गया परिवार देहरादून का रहने वाला था । कार पंचकूला के सेक्टर-27 में एक रिहायशी इलाके में खड़ी थी। सूचना मिलने पर जब पुलिस मौके पर पहुंची तो उसे कार के अंदर एक दंपति, तीन बच्चों और दो बुजुर्गों के शव मिले।
 
मृतक प्रवीण मित्तल पंचकूला में पांच दिवसीय हनुमंत कथा सुनने के लिए परिवार के साथ आए थे। परिवार में उनके पिता देशराज मित्तल, मां, पत्नी समेत तीन बच्चे थे। कार्यक्रम खत्म होने के बाद परिवार हंसी-खुशी देहरादून के लिए निकले थे, उसके बाद क्या हुआ जो यह घटना घटी। यह घटना अब भी अनसुलझी पहेली बनी हुई है। बताया जा रहा है कि मृत मित्तल परिवार आर्थिक तंगी और करीब बीस करोड़ के कर्ज से जूझ रहा था। एक चश्मदीद ने बताया कि मृतक प्रवीण मित्तल ने मरने से कुछ पल पहले यह बताया कि उन्होंने जहर खाया है, हम लोग बहुत कर्ज में डूबे हैं। पांच मिनट बाद उसने भी दम तोड़ दिया पुलिस के अनुसार गाड़ी में दो पेज का सुसाइड नोट भी मिला है । 
 
बीते कुछ सालों में भारत में सामूहिक आत्महत्या की कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनके कारणों का आज तक खुलासा नहीं हो सका है। पिछले वर्ष दिल्ली के वसंतकुंज के रंगपुरी गांव में एक व्यक्ति ने अपनी चार बेटियों के साथ जहरीला पदार्थ खाकर जीवन लीला समाप्त कर ली थी। आर्थिक तंगी को ही इस दुखद अंत का कारण बताया गया था। मौके पर पहुंची पुलिस जब मौके पर पहुंची थी तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था। पुलिसकर्मियों ने अंदर से बंद घर का दरवाजा तोड़ा तो पांच शवों को बाहर निकाला था।
 
सभी शव अलग-अलग कमरे में पाए गए थे। इसी तरह की एक भयावह घटना मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले में भी हुई थी, जहां एक ही परिवार के पांच सदस्यों ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। पति-पत्नी और उनके तीन बच्चों के शव फांसी के फंदे पर लटके पाए गए थे। मृतक राकेश पेशे से किसान था।  साल 2023 में गुजरात के सूरत में भी एक सामूहिक आत्महत्या का मामला सामने आया था, आठ साल से कम उम्र के तीन बच्चों सहित एक ही परिवार के सात सदस्यों की जान चली गई थी।
 
सुसाइड नोट से पता चला था कि परिवार के एक सदस्य ने पहले अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता को जहर दिया और फिर स्वयं फांसी लगा ली थी। बुराड़ी का मामला, जिसमें एक ही परिवार के ग्यारह सदस्यों की मौत हुई, आज भी लोगों के मन में सिहरन पैदा करता है। तीन साल तक चली पुलिस जांच के बावजूद, इस घटना का कोई कारण सामने नहीं आ सका और अंततः पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी। 
 
इस तरह की आत्महंता वारदातों के पीछे परिवार के किसी एक बड़े सदस्य का अवसाद ग्रस्त होकर आत्महत्या की ओर उन्मुख होना और बाकी परिजनों को भी आत्महत्या के लिए उकसावा कर तैयार करना छिपा होता है। 
दरअसल कोविड और लाकडाउन के बाद बहुत से लोगों के व्यापार काम धंधे वापस पटरी पर नही लौट सके है ऐसे में कुछ लोग की बार आर्थिक तंगी और कर्ज मे फंस कर अपनी व परिवारजन की खुदकुशी की भूमिका तैयार कर रहे हैं। वहीं शहरी जीवन में लोग अपनी परेशानीयों को किसी से साझा नहीं करते हैं और मानसिक बीमारी से ग्रसित होकर इस तरह के आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। 
 
 आपसी सद्भाव परस्पर सहयोग और दुख दर्द बांटने की प्रवृत्तियां समाज से दूर हो रहीं हैं प्रतिस्पर्धा और कर्ज लेकर भी दिखावे की होड़ लगी है इस के साथ ही समस्या का समाधान खोजने मुकाबला करने का साहस घट रहा है और ऐसे लोग मेडिकल उपचार काउंसलिंग न ले कर सीधे सुसाइड करने के लिए तैयार हो जाते हैं। 
 
पंचकुला की मर्माहत करने वाली घटना भी ऐसा ही मामला है लेकिन संभावना है कि घर के मुखिया ने ही बाकी परिजनों को जहर खिला दिया हो या सुसाइड के लिए तैयार कर लिया हो पुलिस जांच में सामने आया है कि ये सभी बाबा धीरेंद्र शास्त्री की पंचकूला सेक्टर-28 में चल रही कथा में भाग लेने के लिए आया था। कथा से लौटते समय सेक्टर-27 में खड़ी एक कार में परिवार के सातों सदस्यों ने जहर खाकर जान दे दी। मृतकों में प्रवीण मित्तल, उनकी पत्नी, तीन बच्चे और दो बुजुर्ग सदस्य शामिल हैं। प्रारंभिक जांच में आत्महत्या की वजह कर्ज का बोझ और आर्थिक तंगी बताई जा रही है। जानकारी अनुसार प्रवीण मित्तल का स्क्रेप का कारोबार था उसमे की करोड़ कर्ज हो गया था फैक्ट्री घर गाड़ी सब जब्त हो गए थे   घाटे और बढ़ते कर्ज से मानसिक तनाव में आकर उन्होंने कथित रूप से यह कदम उठाया।  
 
आपको बता दें विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल लगभग दस लाख लोग आत्महत्या करते हैं। इससे 20 गुना ज्यादा लोग आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं। यह एक गंभीर समस्या है। दुनिया भर में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 लोगों पर 16 है। मतलब हर 40 सेकंड में एक मौत होती है और हर 3 सेकंड में सुसाइड का एक प्रयास होता है। 2011 तक उपलब्ध विश्व स्वास्थ्य संगठन के सबसे हालिया आंकड़ों के अनुसार, आत्महत्या की दरें मालदीव में 0.7/100,000 से लेकर बेलारूस में 63.3/100,000 तक हैं। भारत में आत्महत्या की दर 10.6/100,000 है।  भारत आत्महत्या की दर के मामले में दुनिया में 43वें स्थान पर है।
 
युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार पिछले आठ सालों में 2015 से लेकर 2022 तक, हर साल लगभग एक लाख पुरुषों ने आत्महत्या की है। वहीं, महिलाओं की संख्या 43,314 रही। पुरुषों में आत्महत्या की दर 14.2 प्रति 100,000 पुरुष आबादी है। महिलाओं में यह दर 6.6 प्रति 100,000 महिला आबादी है। इसका मतलब है कि पुरुषों में आत्महत्या करने की संभावना महिलाओं से ज्यादा है। भारत में सुसाइड के पीछे सबसे बड़ा कारण पारिवारिक समस्याएं हैं। भारत में लगभग 23.06 प्रतिशत आत्महत्याएं पारिवारिक समस्याओं की वजह से होती हैं। इसके अलावा आर्थिक तंगी, परीक्षाओं में फेल होना, कैरियर पढ़ाई का दबाव, बेराजगारी, मानसिक अवसाद, पारिवारिक कलह, तलाक, प्रेम में विफलता, गरीबी, मानसिक स्वास्थ्य आदि के कारण भी लोगों को लगता है कि आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है।
 
युवाओं में कैरियर और भविष्य को लेकर पिछले एक दशक में अधिक जागरूकता आई है लेकिन इसी के साथ उनमें भविष्य को लेकर अनिश्चितता और आशंकाए भी बढ़ गई है जिस कारण आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। जिंदगी अनमोल है मानव जन्म दुर्लभ है कितना भी बड़ी समस्या हो उसका मुकाबला करें यदि आत्महत्या करने का ठान लिया है तो भी अंतिम पल तक बिना सामाजिक दिखावे की चिंता किए समस्या का मुकाबला करें जब मरना ही है तो मुकाबले का जोखिम क्यों न उठाएं कायरता भरे सुसाइड कदम से जिल्लत भरी मौत क्यों वरण करें।

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