मेहनती किसानों की मेहनत रंग लाई: सिंचाई की कमी के बावजूद सब्जी उत्पादन से आत्मनिर्भरता की ओर

मेहनती किसानों की मेहनत रंग लाई: सिंचाई की कमी के बावजूद सब्जी उत्पादन से आत्मनिर्भरता की ओर

पाकुड़िया, पाकुड़, झारखंड:- पाकुड़िया प्रखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों में किसान वर्षों से वर्षा आधारित खेती पर निर्भर रहे हैं। मुख्य रूप से धान की खेती करने वाले ये किसान अब सब्जी उत्पादन की ओर भी बढ़ रहे हैं। हालांकि, सिंचाई की स्थायी व्यवस्था न होने के कारण कृषि कार्य में कठिनाइयाँ आती हैं, फिर भी उनकी मेहनत और सरकारी योजनाओं के आंशिक लाभ से अब सब्जी उत्पादन में वृद्धि देखी जा रही है।
 
झारखंड राज्य गठन के बाद तालाबों, सिंचाई कूपों और चेक डैमों के निर्माण से किसानों का कृषि की ओर रुझान बढ़ा है। अब वे खरीफ फसलों के अलावा सरसों, मक्का, टमाटर, लाल आलू, बैंगन, करैला, भिंडी, गोभी, खीरा, ककड़ी, प्याज, मिर्च और नींबू जैसी सब्जियां भी उगा रहे हैं। इससे न केवल किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है, बल्कि स्थानीय बाजारों में सस्ती दरों पर ताजा सब्जियां उपलब्ध हो रही हैं।
 
स्थायी सिंचाई की कमी, फिर भी बढ़ती खेती 
बसंतपुर पंचायत के बख्तरपुर गांव में वर्षों पहले एकमात्र आर्टिजन कूप की व्यवस्था तत्कालीन उपायुक्त द्वारा की गई थी, जिससे किसानों को कुछ राहत मिली। यदि इस क्षेत्र के चार पाताल कूपों का निरीक्षण कर स्थायी जलापूर्ति सुनिश्चित की जाए, तो यह किसानों के लिए बेहद लाभकारी होगा।
 
बनो, सोल्ला और अन्य गाँवों में भी सिंचाई की सुविधा सीमित होने के बावजूद किसान सब्जियों की खेती में लगे हुए हैं। इससे दूर के शहरों से मंगाए जाने वाले महंगे सब्जियों की तुलना में स्थानीय उपज सस्ती दरों पर मिल रही है। उदाहरण के तौर पर, हाल ही में पाकुड़िया बाजार में बाहरी बैंगन ₹80-₹100 प्रति किलो बिक रहा था, जबकि स्थानीय बैंगन मात्र ₹10-₹20 प्रति किलो मिल रहा था।
 
 कृषकों की मांग: सिंचाई और फसल संरक्षण की सरकारी सुविधा मिले 
किसानों का कहना है कि यदि खेतों में स्थायी सिंचाई व्यवस्था के साथ-साथ फसल संरक्षण की सरकारी सुविधाएं मिलें, तो वे बड़े पैमाने पर उत्पादन कर अपने उत्पादों को निकटवर्ती बड़े बाजारों में निर्यात कर सकते हैं। इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी और क्षेत्र में कृषि को और अधिक बढ़ावा मिलेगा।

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