झंडा बिल्ला आई का वोट भगवती भाई का (जयंती पर सादर नमन)

झंडा बिल्ला आई का वोट भगवती भाई का (जयंती पर सादर नमन)

मैं और बाबू जी (भगवती प्रसाद सिंह पूर्व मंत्री) एक दिन उन्हीं के आवास में बैठे थे, कुछ सोचते हुए बोले, 'हरिशंकर लगता है अब शादी विवाह नहीं अटैंडेंट कर पाऊँगा। मैंने कहा हाँ बाबूजी उम्र तो ज्यादा हो ही गयी है।
तो वे भावुक होकर बोले वो बात नहीं है,अब शादी विवाह में हजार,पाँच सौ रूपये निमंत्रण चलता है ,इतना मैं कहाँ से लाऊँ ? ( बाबूजी  लगभग 36 बर्ष विधायक, सांसद, मंत्री रहे थे)
 एक बार उन्हीं के घर पर मैं सुबह सुबह बैठा था कि नाई बाल काटने आया, बाल कट गया तो शीशा मंगाकर देखा फिर नाई से बोले और छोटा करो जो ज्यादा समय में बढे़। नाई ने कहा बापजी जब कहेंगे आकर काट दूँगा बहुत छोटा अच्छा नहीं लगेगा।बाबू जी बोले हर महीने बाल कटाने के पैसे कहाँ से आयेंगे? उसने कहा हम पैसा कहाँ माँग रहे हैं? बाबू जी बोले मुझे मुफ्त में काम नहीं करवाना है। ऐसे थे समाजवादी बाबू भगवती सिंह।


संतो का सियासत मे प्रवेश तो अरसे से होता रहा है लेकिन संतों जैसे आदर्श वैसे ही सिद्धांत को बनाये रखने वाले कम मिलते हैं।   पूज्य बाबूजी भगवती सिंह जी सच्चे अर्थो मे समाजवादी संत ही थे जिनकी आज 92 वी जयंती है। बाबूजी जिन्हें सामान्य तौर से उन्हे चाहने वाले "मंत्री जी" के नाम से ही पुकारते रहे,उनका सीतापुर से बड़ा गहरा नाता रहा था।जिस दौरान उन्होंने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की उनके पिता जी सीतापुर पुलिस में ही तैनात थे। वे तत्कालीन पुलिस कप्तान के पास मिठाई लेकर पहुचे,कप्तान ने कहा, बेटे को मेरे पास लाओ दरोगा बना देता हूं। पिताजी भगवती सिंह को लेने गांव पहुंचे तो उन्होंने साफ मना कर दिया। उन्होंने कहा मुझे दरोगा नही बनना मुझे सरकार में रहकर दरोगा तैयार करने वाला बनना है।


बाबू जी नें मंत्री बनने के बाद भी कभी पुलिस एस्कॉर्ट और सुरक्षा नही ली। वे हमेशा कहा करते थे कि पुलिस जनसेवा के लिए है न कि नेताओं की रक्षा के लिए। मंत्री जी पर लोहिया के विचारों और दर्शन का ही ये गहरा प्रभाव था। लखनऊ की लीला बिल्डिंग मे सोसलिस्ट पार्टी का कार्य करते और वही रहते हुए वे पार्टी के मुखपत्र का 70 प्रतिशत हिस्सा स्वयं" मार्तण्ड "नाम से लिखा करते थे, वे एक कुलीन क्षत्रिय परिवार में जन्में लेकिन वंचितो,दलितों के लिए सदैव संघर्षरत रहे।  आप कल्पना करें जब बी0 के0टी0 ब्लॉक प्रमुख का चुनाव मंत्री जी के सगे भांजे रामचंद्र सिंह (मामपुर बाना )  मैदान में थे लेकिन मंत्री जी ने कहा नही हमारे नेता राजेंद्र यादव हैं और उन्होंने राजेंद्र यादव को प्रमुख भी बनवाया और मुलायम सिंह के लाख आग्रह के बावजूद विधायकी (महोना ) की विरासत भी अपने बेटे राकेश सिंह की जगह राजेंद्र यादव के हाथों में ही सौंप दी। उन्होंने नेताजी से साफ कहा था कि मै संघर्षो से नेता बना हूं। आप राकेश को टिकट नही देंगे वो खुद अपना रास्ता बनायें।टिकट तो टिकट है मंत्री होने के बावजूद उन्होंने बेटे राकेश की रिवालवर लेने की जिद को भी पूरा नही किया।
 आपने अपने राजनीतिक जीवन में उच्च मापदंडों की स्थापना की।

लोहिया के वसूलों की खातिर अपने हिस्से की 29 बीघे में से 26 बीघे जमीन समाज के लिए कुर्बान करने वाले इस संत के पास मंत्री और राजयसभा सदस्य रहने के बावजूद 3 बीघे की जमीन कभी सवा तीन बीघे न हो सकी। दलितों ,पिछडों के मध्य अपनी सर्व स्वीकार्यता वाले इस संत को पहला चुनाव निर्दल लड़ना पड़ा वो भी कोंग्रेस के सशक्त अवनीश त्रिवेदी के विरुद्ध लेकिन गाँव-गांव नारा गूँजा  झंडा बिल्ला आई का ,वोट भगवती भाई का और बाबूजी चुनाव जीते। चुनाव जीतने के बाद जब मोटर सइकिलों पर सवार होकर इलाके के समंती लोग उनके दरवाजे पहुंचना शुरु हुए तब भी उन्होंने कहा था ये जीत तो पिछड़ो,दलितों की है। अपनी सभाओं में जानदार भाषण के बाद कुर्ते की कोंच फैलाकर अर्थ की भीख मांगने वाले इस संत की झोली में सबसे अधिक हिसेदारी करने वाले पिछडे़,दलित ही होते थे ।

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मा चंद्रिका देवी दरबार को भव्य स्वरुप देने वाले और मां भगवती के अनन्य भक्त मंत्री जी 
कितने सरल थे, इसकी कल्पना कर पाना कठिन है।   शिक्षा और पर्यावरण के प्रति उनका सतत समर्पण था। चन्द्रभानु गुप्त कृषि महाविद्यालय इसका जीता जागता उदाहरण है।
उन्होंने कुम्हरावा के पास लुप्त नदी को पुनर्जीवन देने के साथ ही सेवरही झील को भी नया जीवन देने का काम किया। वे हमेशा कहते थे कि सच्चे समाजवादी को पर्यावरण के प्रति हमेशा जागरूक रहना चाहिए। 
  जीवन के आखिरी समय में भी इस संत ने अपनी देहदान कर युग दधीचि की भी पदवी को प्राप्त किया। आज पूज्य मंत्री जी की जन्म जयंती पर उनके चरणों में सादर नमन।

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