धार्मिक आयोजनों में लापरवाही किसकी 

धार्मिक आयोजनों में लापरवाही किसकी 

हाथरस कांड ने पूरे देश को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर कब तक हम आंख बंद करके बाबाओं पर भरोसा करते रहेगें। यह आयोजन क्यों केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही आयोजित किए जाते हैं। इन आयोजनों से ग्रामीण जनता का कैसे गहरा रिश्ता होता है। एक तरफ हम साइंस में इतनी तरक्की कर रहे हैं और दूसरी तरफ हम अंधविश्वास के जाल में फंसते जा रहे हैं। हाथरस कांड के लिए गठित की गई समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। और उसमें एक एसडीएम एक सीओ सहित छै लोगों पर गाज गिरी है। समिति ने आयोजक मंडल को भी इस घटना का जिम्मेदार बताया है और उसको गिरफ्तार भी कर लिया गया है जांच समिति ने जिनसे बात की है वो वही लोग हैं जिनकी आस्था इन बाबा लोगों में है। इनकी बातों से हम कैसे निर्णय निकाल सकते हैं कि आखिर दोष किसका है। कोई भी बाबा हों वो अत्यधिक भीड़ ही देखना पसंद करते हैं।
 
जब भीड़-भाड़ इतनी अधिक थी तब भोले बाबा को भी अपने आयोजकों को एलर्ट कर देना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सुनने में तो यहां तक आया है कि बाबाजी का एक अपना आयोजक मंडल है जो बाबा सहित यह तय करता है कि अगला आयोजन कहां होना चाहिए। ऐसे में बाबा को क्लीन चिट कैसे दे दी गई। अधिकारी तो बहाल हो जाएंगे आयोजकों को भी जमानत मिल जाएगी लेकिन उन घरों का क्या होगा जिन्होंने अपने परिवारजनों को खोया है। इस तरह के कार्यक्रमों को जानबूझकर ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित किया जाता है ताकि अधिक से अधिक भीड़ आ सके। शहर में ये आयोजन इतने सफल नहीं हो पाते क्योंकि शहर वालों के पास न तो इतना समय है कि वह उनके प्रवचन सुन सकें और न ही अंधविश्वास है कि वह किसी चमत्कार जैसी बातों को सच मानें।
 
इस साइंस के युग में जहां हम चांद पर जीवन तलाश रहे हैं ऐसे में कैसे हम सोच सकते हैं कि चमत्कार नाम की कोई चीज होती है। हां ईश्वर में आस्था होनी चाहिए। ईश्वर है हम इस बात को भी मना नहीं कर रहे हैं। लेकिन एक आम आदमी एकाएक ईश्वर का चमत्कार बन जाता है इस बात को हमें सोचने की आवश्यकता है। कथा वाचक अलग बात है। धार्मिक ज्ञान होना भी अलग बात है। लेकिन इन बाबाओं ने अपने मकड़ जाल में जिस तरह से भोली भाली ग्रामीण जनता को घेरा है यह समझ से परे है। हो सकता है कि हमारी इस बात से बहुत से लोग सहमत नहीं होंगे लेकिन यह सोच का फर्क है जो कि हर व्यक्ति में अलग-अलग पाया जाता है। कथा वाचक जो भी करते हैं वह सब हमको पता होता है लेकिन उनके पास बात को कहने का एक अलग तरीका होता है जो हर किसी में नहीं होता।
 
बहुत सी बातों का ज्ञान हमारे मस्तिष्क में होता है लेकिन हम में वह क्षमता नहीं होती जो एक लाख की भीड़ के सामने हम अपनी बात को कह सकें। और जिसमें यह कला होती है वह ही एक अच्छा कथा वाचक बन जाता है। कथा वाचक ग़लत नहीं होता वह अच्छाइयों और बुराइयों में फर्क को जनमानस के सामने रखता है। और उससे हमें काफी प्रेरणा मिलती है। लेकिन चमत्कारी बाबा की बात की जाए तो यह इंसान को बिल्कुल अंधकार की तरफ ले जाता है। और यह उन्हीं में पनपता है जिसने शिक्षा ग्रहण नहीं की हो। यह एक विचारणीय प्रश्न है। जांच समिति ने जो भी रिपोर्ट दी है वह साक्ष्य और लोगों के साथ बातचीत पर निर्भर है लेकिन सत्य तो यह है कि हम अब भी अंधकार में डूबे हुए हैं। 
 
आशाराम बापू को कौन नहीं जानता होगा जो कि उम्र कैद की सजा काट रहे हैं एक समय उनके आयोजनों में लक्खी भीड़ उमड़ती थी। और यही कारण है कि भीड़ को देखते हुए यह आम बाबा अपने आप को भगवान से बढ़कर मानने लगते हैं। ग्रामीण महिलाओं के पास दोपहर का समय खाली रहता है। और वहां अन्य मनोरंजन के साधन भी नहीं होते तो वो बड़ी ही आसानी से इस तरह के आयोजनों की तरफ आकर्षित हो जातीं हैं। सत्संग और चमत्कार में अंतर है जो भी अपने आप को चमत्कारी सिद्ध कर रहा है वह जनता के साथ छलावा कर रहा है। क्यों कि विज्ञान के चमत्कार तो होते हैं लेकिन आम आदमी के चमत्कार नहीं हो सकते।
 
हमें अपनी सोच को बदलना होगा। और शासन प्रशासन को भी इस पर निगाह रखनी होगी कि हम हम जिस आयोजन की अनुमति दे रहे हैं क्या वहां सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं अथवा नहीं। जांच समिति की रिपोर्ट कुछ भी हो लेकिन एक ऐसी समिति जरुर बननी चाहिए जो कि हमें अंधविश्वास से छुटकारा दिला सके। एक तरफ हम शिक्षा दे रहे हैं कि पढ़ाई ही सब कुछ है और इसी से हम अपनी तरक्की कर सकते हैं। बड़े-बड़े रिसर्च हो रहे हैं। और दूसरी तरफ हम इस तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं।
 
 जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रशासन ने कार्यक्रम को गंभीरता से नहीं लिया। एसआईटी ने कार्यक्रम आयोजक और तहसील स्तरीय पुलिस प्रशासन को भी इस घटना के लिए जिम्मेदार माना है। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि क्यों हम इस तरह के अंधविश्वासी आयोजनों की अनुमति देकर अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं। हम सभी को ईश्वर में आस्था रखनी चाहिए और ईश्वर हम सभी के साथ है। जो भी चमत्कार होना होगा वह ईश्वर स्वयं हमारे लिए कर देगा लेकिन। एक मनुष्य में वो कौन सी शक्ति आ जाती है जो विज्ञान को भी चुनौती देने लगती है। हम आज भी इस अंधविश्वास के युग में जी रहे हैं। इस घटना में दोषी कोई भी हो उसे सजा तो मिलेगी ही लेकिन यदि इस घटना से हम कुछ सीख नहीं ले पाए तो आगे भी इस तरह की घटनाओं को हम आमंत्रित करेंगे।
 
जितेन्द्र सिंह पत्रकार 

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