कभी अपने भी दांत गिनकर देखे इंसान

कभी अपने भी दांत गिनकर देखे इंसान

आज मै एक ऐसे विषय पर आपके सामने हूँ जो प्राय: किसी विमर्श का हिस्सा नहीं होता। आज का विषय है दांत। दन्त मनुष्य   के ही नहीं अपितु तमाम स्तनपायी जानवरों का एक जरूरी और महत्वपूर्ण अंग है। इसका अपना विज्ञान है ।  चिकित्स्क हैं, उपचार है । कहावतें हैं ,मुहावरे हैं। मनुष्य दांतों के मामले में बहुत लापरवाह भी होता है और सजग भी ।  दुनिया में जब पशुओं की उम्र का पता लगाने का कोई विज्ञान नहीं था तब पशुओं के दांत गिनकर ही उनकी उम्र का पता लगाया जाता था । दांत गिनना धर्म  का काम भी है और नहीं भी।
आज बकरीद है इसलिए आपको बता दूँ कि इस्लाम धर्म के अनुयायी कुर्बानी के लिए बकरा खरीदते समय उसके दांत जरूर गिनते हैं ,ये एक धार्मिक   बाध्यता है ,क्योंकि ऐसा माना जाता है कि केवल 1 साल के बकरे की ही कुर्बानी दी जानी चाहिए।  इस वजह से यदि किसी बकरे के दो, चार या फिर छह दांत होते हैं तो ही उनकी कुर्बानी दी जाती है।  न ही नवजात और न ही बुजुर्ग बकरे की कुर्बानी दी जाती है.। ऐसे में यदि किसी बकरे के दांत नहीं हैं या फिर किसी बकरे के दांत दो, चार या फिर छह से ज्यादा हैं तो उसकी कुर्बानी नहीं दी जाती।

हमारे शहर ग्वालियर में एक शताब्दी पुराना पशु मेला लगता है। इस मेले में मैंने खरीदारों को गाय,बैल,भैंस,बकरी,घोड़ा यहां तक कि ऊँट के दांत गिनते देखा है।  जानकार पशुओं के दांत गिनकर उनकी उम्र का अनुमान लगा लेते हैं,यानि पशु विक्रेता अपने माल की उम्र को लेकर ज्यादा ठगी नहीं कर सकता। दांत गिनना एक कला भी है और विज्ञान भी ।  मनुष्यों में 32  दांत होते हैं। इन्हें भी कभी गिना जाता है और कभी नहीं भी ।  मनुष्य के दांतों में एक दांत का नाम अक्लदाढ़ भी होता है। ये या तो निकलती नहीं है और यदि निकलती है  तो बहुत कष्ट देती है।

बहरहाल दांत को लेकर कहावतें हैं और मुहावरे भी ।  आपने  ' दांत काटी रोटी ' के बारे में सुना होगा ।  सुना होगा कि ' जब दांत थे तब चने नहीं थे और जब दांत नहीं है तो चने हैं '। आपने सुना होगा कि - ' दान की बछिया के दांत नहीं गिने जाते '। हमारे यहां तो किसी को परास्त करने या छकाने के लिए भी जो मुहावरा है उसे 'दांत खट्टे'  करना कहते हैं। एक कहावत हाथी के दांतों को लेकर भी है कि-' हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते है।'   दांत हाथी के और कहावत मनुष्यों के लिए बनी है।

मै जिन दांतों की बात कर रहा हूँ वे बहुउदेशीय होते है।  दुनिया बनाने वाले ने दांत बनाते समय ही उनका काम भी तय कर दिया था शायद इसीलिए आप ये जानकर हैरान होंगे कि दाँत का काम सिर्फ किसी चीज को  पकड़ना, काटना, फाड़ना और चबाना ही नहीं है।   जानवर इन दांतों से  कुतरने खोदने , सँवारने  और लड़ने का  काम लेते हैं। दाँत, आहार को काट-पीसकर गले से उतरने योग्य बनाते हैं।खुद ईश्वर ने एक अवतार में अपने दांतों से सकल ब्रम्हांड को ऊपर उठा लिया था।
जब हम विज्ञान के छात्र थे तो हमें  पढ़ाया जाता था कि दाँत की दो पंक्तियाँ होती हैं,ऊपर के जबड़े  के दांतों को जम्भिक या मैक्सलरी कहते हैं जबकि नीचे के जबड़े  के दांत चिबुक या मैंडिब्युलर कहे जाते हैं। ऊपर का जबड़ा स्थिर यानि मेरी तरह अचल रहता है और नीचे का सचल।

खोपड़ी से मैंडिबुल को बाँधनेवाली पेशियों की सहायता से यह आगे पीछे तथा ऊपर नीचे चलकर काटने की और चक्राकार गति द्वारा चबाने की, क्रिया करता है। कहते हैं कि ईश्वर ने दाँत को शरीर की सबसे मजबूत अस्थि के रूप  में निर्मित किया है।  अंतिम संस्कार के समय आग में तमाम अस्थियां जलकर राख भले ही हो जाएँ लेकिन दांत सुरक्षित रहते हैअन, इन्हें ही गंगा विसर्जन के लिए चुना जाता है ।  दांतों के प्रति सनातनियों का शृद्धा भाव इतना है कि वे इन्हें दन्त नहीं बल्कि 'फूल ' कहते हैं। यानि अस्थि संचय कि क्रिया फूल चुनना भी कही जाती है। यह क्रिया मानव जाती में श्मशान वैराग्य उतपन्न करती है।

ईश्वर दांत बनाने के मामले में बड़ा ही उदार रहा।  ईश्वर ने केवल मनुष्य या दूसरे स्तन  पायी जीवों को ही दांत नहीं दिए बल्कि जलचरों और सरी-सर्पों को भी इस ईनाम से बक्शा। मछलियों  के पास दांत हैं तो सर्पों के पास भी हैं। दांत न होते तो क्या राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर   लिख पाते कि - 'क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो उसको क्या जो दंतहीन विषरहित, विनीत, सरल हो।'

दंतपंक्तियों को लेकर साहित्यकारों ने बड़ी-बड़ी उपमाएं खोजी है।  अक्सर दांतों केलिए दाड़िम पंक्ति [अनार के दानों कि पंक्तियाँ ] का इस्तेमाल किया जाता है।  दांतों का कथाओं से क्या रिश्ता है ,मुझे नहीं पता,किन्तु मै बचपन से दन्त  कथाओं के बारे में सुनता  आया   हू।  बहुत सी  दन्त कथाएं  मैंने पढ़ी  भी हैं। अब तो दन्त चिकित्सा और दन्त औषधि विज्ञान अरबों -खरबों  का बाजार  है। कोई दन्त क्रांति  बना  रहा  है तो किसी ने वर्षों  पहले  विको वज्रदंती  बनाई थी । यानि यदि दुनिया में दांत न होते तो क्या ये सब मुमकिन था। इसीलिए कहा जाता है कि जब तक ज़िंदा रहना है  तब तक मुंह में दांत और पेट  में आंत सही सलामत होना चाहिए।

कभी-कभी दांतों की आकृति के आधार पर नामकरण भी हो सकता है ।  महाभारतकाल में दन्तवक्र का उल्लेख आता है। महाभारत के अनुसार योगिराज कृष्ण कि मौसी श्रुतदेवी का विवाह करूषाधिपति वृद्धशर्मा से हुआ था और उसका पुत्र था दन्तवक्र।सम्भवत दन्तवक्र के दन्त टेढ़े रहे होंगे।  श्रुतदेवी श्री कृष्ण की माता देवकी की छोटी बहन थी।  जब शाल्व ने द्वारका पर आक्रमण किया, तब दन्तवक्र भी शाल्व की ओर से कृष्ण के विरुद्ध युद्ध में लड़ा था। भगवान  गणेश  को तो सब ' एक दन्त ' कहते ही हैं।

कुलजमा  मेरा कहना है कि मनुष्य केवल बकरों ,गायों-भैंसों घोड़ों या दूसरे जानवरों के ही  दांत न गिने कभी समय निकलकर  अपने दांतों की भी गणना  करे। देखे कि वे कितने पैने हो चुके हैं ,या उनमें   कितने कीड़े लग चुके है। अपने दांतों  को गिनना भी आत्मपरीक्षण की एक विधा है। इति-मित्थम।
राकेश अचल

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