अब ''रेवड़ी आवंटन ' में भी प्रतिस्पर्धा ? 

 अब ''रेवड़ी आवंटन ' में भी प्रतिस्पर्धा ? 

 भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे समर्थन देने वाला एक बड़ा वर्ग उन 'लोगों का भी था जिन्हें केंद्र सरकार ने 'प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना के अंतर्गत 'मुफ़्त राशन बांटना शुरू किया था। भाजपा ने ग़रीब मतदाताओं के इस नये वर्ग को 'लाभार्थी वर्ग' के नाम से सम्बोधित किया था। इस योजना में पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदी की फ़ोटो छपे मज़बूत थैलों में राशन बांटा गया था। देश में तमाम जगहों पर ढोल बजे व तमाशे के साथ इस योजना के तहत राशन बांटकर देश के ग़रीबों की ग़रीबी का न केवल मज़ाक़ उड़ाया जाता था बल्कि इसके बदले में उन ग़रीबों से वोट की उम्मीद भी रखी जाती थी। चुनावों के दौरान कई सत्ताधारी दबंग नेताओं को यह कहते भी सुना गया कि 'खायेंगे मोदी का तो वोट भी मोदी को ही देना होगा'।
 
गोया सरकारी मुफ़्त राशन के बदले में वोट पर अधिकार जताने का दावा ? ऐसे ही एक 'राशन वितरण समारोह में मुझे भी मेरे एक परिचित राशन डिपो होल्डर ने ग़रीबों को राशन बांटने के लिये 'मुख्य अतिथि ' के रूप में आमंत्रित किया था। मैंने न केवल जाने से इंकार किया बल्कि उसे ''प्रवचन ' भी दे डाला कि वह अपनी दुकान के लाइसेंस के चक्कर में ग़रीबों की ग़रीबी का मज़ाक़ उड़ाने वालों की पंक्ति में न खड़ा हो तो बेहतर है। परन्तु वह तो एक सुनियोजित सरकारी प्रोपेगंडा मशीनरी का हिस्सा था लिहाज़ा मैं नहीं गया तो उसे राशन बांटने के लिये कोई दूसरा मिल गया। 
 
बहरहाल, प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना अप्रैल 2020 से प्रारंभ की गयी थी। इसका उद्देश्य देश में कोविड-19 के अचानक फैलने से हुए आर्थिक व्यवधानों के कारण ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को होने वाली कठिनाइयों को दूर करना बताया गया था। जिस समय यह योजना शुरू की गयी थी तभी से यह विपक्षी दलों के निशाने पर थी। परन्तु जैसे जैसे सरकार को जनता की ओर से इसका सकारात्मक फ़ीडबैक मिलता गया,सरकार इस मुफ़्त राशन योजना को आगे बढ़ाती गयी। परन्तु जब किसी राज्य में विपक्षी दाल की सरकार राज्य के नागरिकों को मुफ़्त बिजली,मुफ़्त स्वास्थ्य,मुफ़्त शिक्षा,क़र्ज़ मुआफ़ी या बेरोज़गारी भत्ता आदि देने की बात करती तो उसे स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'मुफ़्त की रेवड़ी ' बांटने का नाम देते।
 
जबकि केंद्र सरकार बड़े गर्व के साथ ग़रीबों के वोट बैंक की लालच में छाती ठोककर दावा करती कि केंद्र की मोदी सरकार देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दे रही है। परन्तु जब इसी दावे के साथ यही सरकार यह दावे भी करती कि हमने करोड़ों लोगों को ग़रीबी रेखा से बाहर निकाला,यही सरकार जब देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के दावे करती,देश में प्रगति व ख़ुशहाली की बातें करती तब यही विपक्ष केंद्र सरकार के उन्हीं दावों को शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हुये यह पूछता कि जिस देश में 80 करोड़ लोग राशन ख़रीदने की स्थित में नहीं हैं  उस देश को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने के दावे में भला कैसी सच्चाई ? उस सरकार के करोड़ों लोगों को ग़रीबी रेखा से बाहर निकालने व देश में प्रगति व खुशहाली के दावों में कितनी सच्चाई ? 
 
परन्तु आज जब वही विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में एन डी ए ,विशेषकर उसके सबसे बड़े घटक भाजपा से दो दो हाथ कर रहा है तो उसने भी जनता से अनेक लोकलुभावन वादे किये हैं। इण्डिया गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस ने तो 48 पन्नों का एक विस्तृत घोषणापत्र जारी किया है जिसमें 5 न्याय, 25 गारंटी, के साथ जनता से 300 से अधिक वादे किये गए हैं। कांग्रेस को उम्मीद है कि उसकी 5 न्याय, व 25 गारंटी की घोषणा उसे चुनाव जीतने की 'गारंटी' देगी। कांग्रेस के घोषणा पत्र में न्यूनतम मज़दूरी 400 रुपए प्रति दिन करने, ग़रीब परिवार की महिला को साल में 1 लाख रुपए देने, MSP को क़ानून बनाने,अग्निवीर योजना को समाप्त करने और जाति जनगणना कराने जैसी बातें तो काफ़ी हद तक ठीक लगती हैं।
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परन्तु चुनाव के बीचो बीच जिसतरह इण्डिया गठबंधन व कांग्रेस के अपने चुनाव घोषणा पत्र से अलग हटकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने 15 मई को लखनऊ में यह घोषणा कर डाली कि इण्डिया गठबंधन सत्ता में आने के बाद ग़रीबी रेखा से नीचे के लोगों को मिलने वाले 5 किलो राशन की जगह उससे दो गुना यानी 10 किलो राशन देना शुरू करेगी। इस घोषणा ने दो मायने  में आश्चर्यचकित किया। एक तो यह कि यदि इण्डिया गठबंधन की तरफ़ से यह घोषणा होनी ही थी तो पहले फ़ेस के चुनाव से पूर्व ही इसकी घोषणा क्यों नहीं की गयी ? यदि चुनाव से पूर्व इस 'रेवड़ी वितरण ' को दोगुना किया जाना घोषित हो जाता तो विपक्ष को इसका और अधिक लाभ मिल सकता था। परंतु चूंकि इसकी घोषणा ठीक समय पर नहीं हुई इसका अर्थ यही है कि इण्डिया गठबंधन दलों में इस 'रेवड़ी वितरण ' को लेकर पूर्ण सहमति नहीं थी। 
 
परन्तु चुनाव के बीच 5 किलो की जगह 10 किलो राशन देने की बात करना वह भी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इसकी घोषणा करना और इस घोषणा के बाद कांग्रेस,अखिलेश यादव की सपा व राष्ट्रीय जनता दाल के तेजस्वी यादव द्वारा इस 'रेवड़ी वितरण ' को दोगुना किये जाने का ज़ोर शोर से प्रचार किया जाना यही दिखाता है कि चूँकि जनता को मुफ़्त की रेवड़ी की आदत डाली जा चुकी है इसलिये क्यों न ब्रह्मास्त्र के रूप में इस्तेमाल किया जाये ? भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस व सपा द्वारा इण्डिया गठबंधन की ओर से की गयी इस घोषणा से बौखला गयी है तथा इस वादे को झूठ का पुलिंदा बता रही है। बेशक चुनाव परिणाम निर्धारित करेंगे कि भविष्य में ग़रीबों को पांच किलो मुफ़्त राशन मिलेगा या दस किलो, परन्तु भाजपा व इण्डिया गठबंधन की इस तरह की 'रेवड़ी वितरण ' जैसी घोषणाओं से एक बात तो अब साबित हो ही गयी है कि सत्ता हो या विपक्ष, ''रेवड़ी आवंटन ' में भी अब प्रतिस्पर्धा मची हुई है।
 
 तनवीर जाफ़री
 
 
 
 
 
 

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