उन्नाव की दो महिलाएं ही अब तक पहुंची संसद

उन्नाव की बहु दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रह चुकी

उन्नाव की दो महिलाएं ही अब तक पहुंची संसद

मो.अरमान विशेष संवाददाता

उन्नाव। राजनीतिक इतिहास में 1957 में गंगादेवी (द्वितीय सांसद के रूप में ) और 2009 में अन्नू टंडन ही लोकसभा की ड्योढ़ी लांघ पाईं।

वैसे जिले की कई महिला नेताओं ने लोकसभा चुनावों में भाग्य आजमाया लेकिन उन्नाव से देश की सबसे बड़ी पंचायत में अब तक केवल दो महिलाएं ही पहुंच सकी। यहां के राजनीतिक इतिहास में 1957 में गंगादेवी (द्वितीय सांसद के रूप में ) और 2009 में अन्नू टंडन ही लोकसभा की ड्योढ़ी लांघ पाईं।

उन्नाव की दो महिलाएं ही अब तक पहुंची संसद
पूर्व सांसद अन्नू टंडन

वर्ष 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में गंगादेवी को पहली महिला सांसद के तौर पर उन्नाव की जनता ने चुना था। उस समय जिले में दो सांसद चुने जाते थे। इसमें एक उन्नाव लोकसभा क्षेत्र से और द्वितीय सांसद रायबरेली पश्चिम और हरदोई दक्षिण पूर्व से। 1957 में जिले से विश्वंभर दयाल त्रिपाठी और गंगादेवी चुनाव जीती थीं। दोनों ही कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े थे। गंगादेवी को 162211 वोट मिले थे। 1962 में गंगादेवी ने दोबारा भाग्य आजमाया लेकिन अपने दूसरे लोकसभा चुनाव में वह नहीं जीत पाईं। 1962 के बाद मतदाताओं ने महिलाओं का साथ नहीं दिया। 1977 के लोकसभा चुनाव में महिला उम्मीदवार के तौर पर ज्ञानवती चुनाव मैदान में उतरी थीं। हालांकि वह भी मतदाताओं का विश्वास जीत नहीं सकीं थीं। ज्ञानवती के बाद जयदेवी वर्मा ने 1980 और 1984 के लोकसभा चुनाव में लगातार अपना भाग्य आजमाया लेकिन वह भी जीत नहीं पाईं।

उन्नाव की दो महिलाएं ही अब तक पहुंची संसद

जयदेवी वर्मा को 1980 के चुनाव में 8244 और 1984 के चुनाव में 6473 वोट ही मिल पाए थे। लगातार दो बार हार के बाद जयदेवी वर्मा भी राजनीति से दूर चली गईं थीं। जयदेवी के बाद उन्नाव लोकसभा सीट से दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी अपना भाग्य आजमाने उतरी थीं। उन्होंने तिवारी कांग्रेस के टिकट पर उन्नाव लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ 11037 वोट ही मिले थे। 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद वर्ष 2009 में अन्नू टंडन, कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं। यहां की जनता ने इस चुनाव में अन्नू टंडन को रिकार्ड मतों से जिताकर लोकसभा भेजा था। 2009 में जीत दर्ज करने के बाद अन्नू टंडन ने 2014 और 2019 में भी कांग्रेस से भाग्य आजमाया था लेकिन भाजपा की लहर में उन्हें जीत नहीं मिल सकी। 

इस बार के लोकसभा चुनाव में अन्नू टंडन फिर चुनाव में उतरी हैं। इस बार वह सपा के टिकट पर चुनाव मैदान लड़ रही हैं। इस चुनाव में गठबंधन होने के कारण वह सपा और कांग्रेस की संयुक्त प्रत्याशी हैं। इससे पहले 2009 में अन्नू टंडन उन्नाव से सांसद निर्वाचित हुई थीं। मतदाता किसे अपनी नुमाइंदगी का मौका देते हैं यह तो वक्त ही बताएगा।

 

दिल्ली की दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की ऊगू में थी ससुराल

 

उन्नाव जिले की बहू और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित (अब दिवंगत) का सांसद बनकर दिल्ली पहुंचने के अरमानों पर उनकी ससुराल के मतदाताओं ने पानी फेर दिया था। वाकया वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव का है। हालांकि अपनों की बेरुखी के बाद भाग्य ने उनका साथ दिया और वह लगातार तीसरी बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुईं थीं।

 

दिल्ली की दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की ससुराल फतेहपुर चौरासी ब्लाक के ऊगू कस्बे में थी। केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और राज्यपाल रहे उमाशंकर दीक्षित (दिवंगत) के बेटे विनोद दीक्षित से शीला दीक्षित की शादी हुई थी। इमरजेंसी से पहले शीला दीक्षित का ज्यादा समय, ससुराल उन्नाव में ही बीता। ट्रेन में सफर के दौरान उनके पति विनोद दीक्षित का निधन हो गया था।

 

ससुर उमाशंकर दीक्षित की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए शीला दीक्षित पहली बार 1984 में कन्नौज से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचीं थीं। हालांकि 1989 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसी दौरान कांग्रेस पार्टी दो धड़ों में बंट गई थी। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने अखिल भारती इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) के नाम से अपनी एक पार्टी बनाई थी। शीला दीक्षित ने 1996 के चुनाव में उन्नाव लोकसभा क्षेत्र से सांसद बनकर दिल्ली जाने का रास्ता चुना था, लेकिन उन्हें केवल 11037 वोट पाकर पांचवें स्थान पर संतोष करना पड़ा था। हालांकि इसके बाद कांग्रेस पार्टी से वह 1998 में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और लगातार तीन बार सत्ता संभाली थी।

 

उन्नाव को केंद्र सरकार में जिले को मिली सिर्फ दो बार भागीदारी

उन्नाव जिले के अबतक केवल एक ही लोकसभा सदस्य को दो बार केंद्र सरकार में भागीदारी मिली और मंत्री के जरिए उन्नाव जिले को भी तवज्जो मिली।1984 से जिले के किसी भी सांसद को केंद्र सरकार में जगह नहीं मिली।

जिले से तीन बार सांसद रहे जियाउर रहमान अंसारी ही इकलौते ऐसे सांसद हुए जिन्हें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान दिया। मूल रूप से बांगरमऊ कस्बे के निवासी रहे जियाउर रहमान अंसारी 1971 में पहली बार सांसद निर्वाचित हुए थे। हालांकि अगले ही 1977 के चुनाव में वह हार गए थे लेकिन इसके बाद 1980 में वह दोबारा चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें पर्यावरण राज्यमंत्री की जिम्मेदारी दी थी। वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरिप्रसाद कुरील बताते हैं कि, अंसारी अपने काम के प्रति समर्पित रहते थे। इसी वजह से 1984 में चुनाव जीतने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें उद्योगमंत्री बनाया। इस दौरान उन्होंने देश के विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से औद्योगिक विकास कराया। उनके बाद से कोई भी सांसद केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान नहीं बना पाया।

 

कई चुनाव जीते सांसदों को भी नहीं मिली जगह

जिले में कई सांसद ऐसे हुए जो काफी लोकप्रिय रहे। मतदाताओं ने एक से अधिक बार जिताकर देश की सबसे बड़ी पंचायत पहुंचाया लेकिन सरकार में भागीदारी नहीं मिली। जिले के पहले सांसद विश्वंभर दयालु त्रिपाठी ने 1951 और 1957 में लगातार दो चुनाव जीते। इसके बाद उनके बेटे कृष्णदेव त्रिपाठी भी 1962 और 1967 में दो बार सांसद रहे। भाजपा के देवीबक्श सिंह 1991, 1996 और 1998 में लगातार तीन बार और साक्षी महाराज 2014 और 2019 में दो बार चुने गए।

About The Author

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

Online Channel