जितेन्द्र सिंह पत्रकार। देश में जब से प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर को बढ़ावा मिला है तब से प्राइवेट बैंक खोलने में बहुत ही तेजी आई है। इससे देश में दो तरह के जबरदस्त फायदे देखने को मिले हैं। एक तो बैंकिंग प्रतिस्पर्धा से उपभोक्ताओं को अच्छी बैंकिंग सेवा मिलने लगी है और। इन बैंकों ने देश के युवाओं को बड़ी संख्या में रोज़गार मुहैया कराया है। यदि इतनी बड़ी संख्या में प्राइवेट बैंकिंग नहीं होती तो बेरोजगारी में जबरदस्त उछाल आ जाता। लेकिन इन बैंकों के अधिक संख्या में खुल जाने से एक और बड़ी समस्या पैदा हो गई है वो है नौकरी बदलने की या कहा जाए नौकरी छोड़ने की।
रिजर्व बैंक आफ इंडिया के अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष देश के प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर से 30 फीसदी युवा नौकरी छोड़ देते हैं। इसको भी दो तरीकों से देखा जा रहा है। इसका एक पहलू ये है कि आज का युवा महंगी पढ़ाई से निकल कर आता है और वह लगातार प्रयासरत रहता है एक अच्छे पैकेज के लिए। युवाओं के मन में हमेशा यह धारणा रहती है कि कम उम्र में जितना अधिक पैसा कमा सकें कि उम्र दराज होने पर जब ये बैंकें उनसे नौकरी छोड़ने का दबाव डालें तो उस समय उनको आर्थिक रूप से परेशानियों का सामना नहीं करना पड़े।
और वह लगातार अच्छे पैकेज की चाहत में इस तरह का कदम उठाए रहते हैं। और इसका दूसरा पहलू यह भी है कि प्राइवेट बैंकिंग में कर्मचारियों और अधिकारियों पर अत्यधिक प्रैशर का होना। प्राइवेट बैंक अपने कर्मचारियों और अधिकारियों पर व्यवसाय बढ़ाने का अत्यधिक दबाव डालतीं है। इसलिए युवाओं को मजबूरन जाब बदलने के लिए सोचना पड़ता है। हालांकि रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में इस बात पर चिंता जताई है और यह भी कहा है कि रिजर्व बैंक इस पर निगाह रखे हुए है।
दरअसल भारत में शिक्षा बहुत महंगी है। और प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर अपने अधिकारियों को कम से कम एमबीए शैक्षिक योग्यता चाहते हैं और अच्छे संस्थान एमबीए करने में कम से कम 8 से 10 लाख रुपए का ख़र्च आता है। छात्र जिनकी पारिवारिक स्थिति अच्छी होती है वह आसानी से इसे खर्च कर लेते हैं लेकिन जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती है वह लोन लेकर या अन्य किसी तरीके से पूंजी एकत्र कर अच्छी शैक्षिक योग्यता पाते हैं।
और इसके बाद ही इनका सिलेक्शन प्राइवेट बैंकों में हो पाता है और इस समय प्राइवेट बैंकों में अवसरों की भरमार है और इसी अवसर का आज के युवा लाभ उठाते हुए एक के बाद एक नौकरी परिवर्तन करते रहते हैं। और अच्छे पैकेज पाते हैं। इसके अलावा एक पहलू ये भी है कि प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर को भारत में जो बढ़ावा मिला है उसको अभी 15 से 20 वर्ष हुए हैं और जिन युवाओं ने इन प्राइवेट बैंकों में 20 वर्ष पहले नौकरी प्रारंभ की थी। आज उनकी उम्र 45 वर्ष के लगभग होगी। उम्र दराज होने पर ये प्राइवेट बैंक किस तरह समायोजित करता है।
उनके लिए यह एक चिंता का विषय है। आज के युवा की सोच बदली हुई है। वह चाहते हैं कि वह जिस तरह मेहनत करके और पैसे खर्च करके इस मुकाम पर पहुंचे हैं तो उनको उनकी मेहनत का पूरा सम्मान मिले। अवसरों की स्थिति को भांपते हुए युवा नौकरी को बदलते रहते हैं। और इस बदलाव पर उन्हें पहले से अधिक वेतन और पद की दरकार रहती है। और दूसरा बैंक अनुभवी व्यक्तियों को वरीयता देते हैं।
जिससे कि बैंक उनके अनुभवों का लाभ उठा सकें। लेकिन अत्यधिक बदलाव कभी कभी उनके लिए हानिकारक भी सिद्ध हो सकता है क्योंकि जब कर्मचारियों का रिकॉर्ड अत्यधिक बदलाव का होता है तो दूसरी बैंक के लिए यह एक प्रश्नचिन्ह बन जाता है। कहीं न कहीं दोनों तरफ से यहां संदेह भरी निगाहों से देखा जाता है।
दूसरी तरफ जब प्राइवेट सेक्टर के बैंक अत्यधिक पैकेज के बल पर कर्मचारियों को जाब देते हैं तो वह काम भी अधिक कराने का दबाव बनाते हैं कुछ लोग इस दबाव को सहन कर पाते हैं और कुछ जो नहीं कर पाते हैं वह दूसरे संस्थान की तरफ निगाह लगाने लगते हैं। संस्थान बदलाव की भी एक उम्र सीमा रहती है नई उम्र में बदलाव करने में लाभ के प्रतिशत ज्यादा रहते हैं। लेकिन ज्यों ज्यों उम्र बढ़ती है व्यक्ति भी एक स्थायित्व चाहता है।
और दूसरा प्रतिष्ठान भी कम उम्र और अधिक अनुभव की वरीयता प्रदान करते हैं। आज के युवाओं ने प्राइवेट सेक्टर को पूरी तरह से समझ लिया है और उसी कदम पर वह अपने कैरियर को सैट करते हैं। वह पूरी तरह से समझते हैं कि जब तक उम्र नई है तभी तक नए संस्थान में उनको अवसर अधिक मिलेगा और उम्र बढ़ने के साथ साथ उनके अवसरों की संभावना घटती चली जाती है। और फिर उम्र बढ़ने के साथ उनके जाब की गारंटी भी कम हो जाती है। वैसे तो इसकी शुरुआत अब गवर्मेंट सेक्टर में भी अमल में लाई जाने लगी है लेकिन अभी इसमें समय लगेगा लेकिन यह निश्चित है कि भविष्य में ऐसी ही संभावना गवर्मेंट सेक्टर में अवश्य होगी।
एक अखबार को दिए इंटरव्यू में रिजर्व बैंक के गवर्नर ने इस बात का खुलासा किया कि युवा प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर में जल्दी जल्दी नौकरी छोड़ रहे हैं। और वह इस पर निगाह रखे हुए हैं। वह इस बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं कि युवा स्वयं नौकरी छोड़ रहे हैं या उनको नौकरी छोड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गवर्नर के अनुसार ऐसे कर्मचारियों का प्रतिशत लगभग 30 फीसदी है। प्राइवेट बैंकों और फाइनेंस सेक्टर की संख्या में पिछले एक दशक में काफी अधिक वृद्धि देखी गई है। और इस वृद्धि में बैंकिंग सेवाओं में तो काफी सुधार आया है।
और प्राइवेट बैंक के सुधार के कारण ही सरकारी बैंकिंग ने भी अपने रवैए में काफी हद तक बदलाव किया है लेकिन अभी भी बहुत कुछ बदलाव लाना शेष है। भारत में प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर ने गवर्मेंट सेक्टर को हर मामले में प्रतिस्पर्धा में लाकर खड़ा कर दिया है। और अच्छी से अच्छी सुविधा देने की होड़ लगी हुई है। सरकारी बैंकिंग सेक्टर पर हमेशा आरोप लगता आया है कि वहां ग्राहकों को काफी असुविधा से गुजरना पड़ता है।
लेकिन यह सब असुविधा बैंक में अत्यधिक काम के बोझ के कारण ही बनती है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की बात की जाए तो वहां सरकारी काम इतना अत्यधिक है कि जिससे आम आदमी को परेशानियां उठानी पड़ती हैं। और शायद आज आम आदमी की पहली पसंद प्राइवेट बैंक बन गये हैं। प्राइवेट बैंकों के व्यवसाय में अत्यधिक वृद्धि हुई है। और यह वृद्धि भारतीय युवाओं के लिए असीमित रोजगार के अवसर लाई है।
और यह भविष्य के लिए अच्छे संकेत भी देती है। अन्य प्राइवेट वित्तीय संस्थानों की बात की जाए तो प्राइवेट बीमा सेक्टर से प्राइवेट बैंकिंग सेक्टर का लोगों पर ज्यादा भरोसा है। और यही भरोसा उनकी तरक्की का कारण भी बना है। रोजगार के असीमित अवसर और अच्छी व्यवस्था ने इन प्राइवेट बैंकों को बड़े सरकारी क्षेत्रों की बैंकों के बराबर में लाकर खड़ा कर दिया है। एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, कोटेक महेन्द्रा, एक्सिस, आईडीएफसी जैसी प्राइवेट सेक्टर की बैंकों ने नए आयामों को छुआ है। और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक आफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक जैसे सरकारी क्षेत्र के बड़े बैंकों के सामने एक मिशाल पेश की है।
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