इजराइल ने कैसे कब्ज़ा किया 88% जमीन, और फिलिस्तीन 12% में सिमटा 

इजराइल ने कैसे कब्ज़ा किया 88% जमीन, और फिलिस्तीन 12% में सिमटा 

Israel vs Hamas: इजराइल ने हमास के खिलाफ बारूदी बदला लेने की ठान ली है. हमास के ठिकानों को चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है. इजराइली फोर्स एयरस्ट्राइक में बहुमंजिला इमारत को निशाना बना रही है, जिसमें इमारत कुछ ही पल में मलबे में तब्दील हो रही है. गाजा में स्ट्राइक के जवाब में इजराइल को हमास ने धमकी देते हुए कहा है कि हर घर पर बमबारी के बदले में इजराइली बंधक की जान लेंगे और बंधकों की मौत का लाइव टेलिकास्ट भी किया जाएगा.

इजरािल की ताकत से हमास वाकिफ है. हमास जानता है आर-पार की लड़ाई में वो इजराइल के सामने लंबे वक्त तक नहीं टिक सकता, लेकिन फिर भी उसने 7 सितंबर को अबतक का सबसे भीषण हमला किया. दरअसल हमास ने ऑपरेशन अल अक्सा फ्लड के तहत इजराइल से विदेशी नागरिकों को बंधक बनाना का खास प्लान तैयार किया था. अब इन बंधकों को गाजा में बनी सीक्रेट टनल में छिपाकर रखा गया है, जहां तक दुनिया की किसी भी सीक्रेट एजेंसी का पहुंचना और बंधकों को आजाद कराना बेहद मुश्किल है.

इजराइल और फिलिस्तीन मिडिल ईस्ट में आते हैं और यह एशिया की आखिरी लाइन है. पहले यह पूरा इलाका मुस्लिमों का था और इसको फिलिस्तीन के नाम से जाना जाता था, लेकिन 14 मई 1948 को इजराइल बनने के बाद इसको यहां पर 44 प्रतिशत जमीन दे दी गई. इसके साथ ही फिलिस्तीन को 48 फीसदी और बाकी की 8 प्रतिशत पर यूएनओ का कब्जा रहा, जिसमें येरूशलम शामिल था. इसके पीछे यूएनओ ने तर्क दिया कि येरूशलम यहूदी, मुस्लिम और ईसाई तीनों के लिए पवित्र स्थान है, इसलिए यह किसी एक को नहीं दिया जा सकता है.

इजराइल के बनने के साथ ही उसपर युद्ध कर दिया, जिसमें उनकी करारी हार हुई और इजराइल ने फिलिस्तीन के 26 प्रतिशत जमीन पर कब्जा कर लिया. अब सिर्फ फिलिस्तीन के पास 22 प्रतिशत जमीन ही बची. दोनों देशों के बीच दुश्मनी बरकरार रही और फिर 1956, 1967, 1973, 1983 और 2011 में लड़ाई हुई, जिसमें इजराइल ने फिलिस्तीन की 10 फीसदी जमीन को फिर छीन लिया. ऐसे में साल 1948 में जिस फिलिस्तीन को 48 प्रतिशत जमीन मिली थी अब उसके पास सिर्फ 12 फीसदी जमीन ही बची है और वह उसको बचाने के लिए भी संघर्ष कर रहा है.

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जो येरूशलम यूएनओ के अंदर आता है, उसके पास एक जगह शेख जर्राह है. इजराइल की सुप्रीम ने एक आदेश देते हुए कहा कि शेख जर्राह में जो फिलिस्तीन रहते हैं, उनको यहां से हटा दिया जाए क्योंकि यह जगह यहूदियों का है. शेख जर्राह की जमीन को करीब 150 साल पहले यहूदियों ने अरब देशों से खरीदना शुरू किया. इनके पास इसके पेपर थे और सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां पर जो फिलिस्तीन के लोगों ने करीब 500 मकान बनाए हुए हैं, उनको जेसीबी मशीन लगाकर तोड़ दिया जाए. इसी बात को लेकर फिलिस्तीन के लोगों ने बवाल शुरू कर दिया और कहा कि आप पुराना मामला क्यों उठा रहे है, क्योंकि यह 150 साल पहले का है.

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फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले लोग अक्सर कहते है कि 150 साल पुराना मामला उठाओगे तो विवाद होगा, लेकिन वह एक ऐसे ही मामले को लेकर तुर्की पर चुप्पी साध लेते हैं. तुर्की में सुल्तान अल फतेह नाम का एक शासक हुआ करता था, जिन्होंने वहां की हाजिया सोफिया मस्जिद जो उस समय एक चर्चा होता था उसको खरीद लिया.

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उसके बाद दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने ओटोमन एम्पायर को हरा दिया तो उनका कहना था कि यह इतिहास के हिसाब से चर्च था और इन्होंने इसे खरीदकर मस्जिद बना दिया. ऐसे में इसके विवाद को खत्म करने के लिए हाजिया सोफिया को म्यूजियम बनाने का फैसला किया. लेकिन एर्गोदान ने सत्ता संभालने के बाद कहा कि इसको 400 साल पहले हमने खरीदा था तो इसपर हमारा अधिकार और इसको मस्जिद होना चाहिए.

अब सिर्फ फिलिस्तीन के दो टुकड़े बचे हैं, जिसमें एक गाजा पट्टी और एक वेस्ट बैंक का हिस्सा है. वेस्ट बैंक नरम दल वाले हैं और वह बिना किसी हिंसा का सहारा लिए इजराइल के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हैं. वेस्ट बैंक को अरब देशों का समर्थन हासिल है, जबकि गाजा पट्टी को ईरान का. जब भी इजराइल पर रॉकेट से हमला किया जाता है तो वह गाजा पट्टी से किया जाता और उसको सभी हथियार मुहैया कराने का आरोप भी ईरान पर ही लगता है.

गाजा पट्टी में हमास नाम का एक संगठन है, जिसको इजराइल आतंकी संगठन कहता है. हमास का कहना है इजराइल हमेशा जुर्म करता है और हम अपने लोगों की मौत का बदला लेंगे.

 

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