
ऊपरी कमाई के चक्कर में बाहर की दवा लिख रहे जिला अस्पताल के डॉक्टर,
स्वतंत्र प्रभात
उन्नाव - सरकार की मंशा के अनुरूप लगातार डॉक्टरों के निर्देश दिए जा रहे हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किया जाए लेकिन डॉक्टर अपनी आदतों से लाचार होने के कारण वह मरीजों को जब तक बाहर की दवा नहीं लिखते हैं, तब तक उनका पेट नहीं भरता है। उनको उपरी कमाई की आदत पड़ गई है।
जिले के उमाशंकर दीक्षित जिला अस्पताल इस समय कमीशनखोर डॉक्टरों द्वारा बाहर की दवा लिखे जाने का चलन बढ रहा है। इसके कारण गरीब मरीज इलाज कराने से वंचित हो जा रहे हैं। हड्डी, नेत्र, नाक, कान, गला व चर्म रोग के द्वारा ओपीडी कर रहे डॉक्टरों द्वारा बाहर की दवा लिखे जाने का मामले आयेदिन सामने आ रहे है, जिससे परेशान गरीब मरीज ने अपनी बात बताते है। बता दें कि सरकार की मंशा के अनुरूप लगातार डॉक्टरों के निर्देश दिए जा रहे हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर किया जाए, लेकिन डॉक्टर अपनी आदतों से लाचार होने के कारण वह मरीजों को जब तक बाहर की दवा नहीं लिखते हैं, तब तक उनका पेट नहीं भरता है। उनको उपरी कमाई की आदत पड़ गई है। जब तक वह ओपीडी में आने वाले मरीजों को बाहर की दवा नहीं लिख देते तब तक उनका काम नहीं चलता।
पैसे के अभाव से इलाज नही हो पा रहा
जिला अस्पताल के हड्डी, नेत्र, नाक कान गला विभाग एवं चर्म रोग के डॉक्टर में यहां देखने को मिला। मरीजों की लंबी लाइन की भीड़ लगी हुई थी। वहीं मरीज अपनी समस्याओं के इलाज के लिए डॉक्टर के सामने खड़ा होकर समस्या का निदान चाहता है। लेकिन जब मरीज डॉक्टर के पास पहुंचता है तो उन्हें बाहर की महंगी दवा लिख दी जाती है, जिसके कारण मरीज अपना इलाज पैसे के अभाव में नहीं करा पाता है।
अस्पताल मे नही दवाएं
जब मरीजों द्वारा यह बात कही गई तो डॉक्टर कहते हैं कि जिला अस्पताल में दवाई नहीं है। इसलिए आपको जल्दी ठीक होने के लिए बाहर की दवाएं लिखी जाती हैं!
मरीज़ का दर्द
सोमवार को उमाशंकर दीक्षित जिला अस्पताल मे इस संबंध में सुशीला देवी, हुसैन नगर द्वारा बताया गया कि वह अपने इलाज के लिए जब डॉक्टर के पास गई तो एक रुपए के पर्चे पर उनके द्वारा 800 की दवा लिख दी गई। पैसे के अभाव में इलाज नहीं करा पा रही हैं। यहां पर आए दिन ऐसा ही मरीजों के साथ होता नजर आता है और कोई इस मामले पर ध्यान नहीं देता है।
कब मिलेगा मुफ्त इलाज
अब देखना है कि इस मामले में डॉक्टरों द्वारा की जा रही इस हरकत पर कैसे लगाम लगती है और कब गरीब व लाचार मरीजों को सस्ता और मुफ्त इलाज मिलता है। क्या जिला अस्पताल के आला अधिकारियों के द्वारा मरीजों का दर्द को समझने की कोशिश की जाती है या उस पर पर्दा डाल दिया जाता है।
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