फूलन का फिर से देवी हो जाना

फूलन का फिर से देवी हो जाना

सांसद बनने वाली फूलन देवी यदि एक खुशनसीब महिला थी तो एक बदनसीब महिला भी थी


  राकेश अचल


मै सचमुच हैरान हूँ कि दो दशक पहले राजधानी दिल्ली में सरे आम गोलियों से भून दी गयी पूर्व सांसद और उससे भी पहले पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी अचानक ज़िंदा कैसे हो गयी ? फूलन को अच्छी तरह जानने  वाला मै भी फूलन को भूल गया था लेकिन सियासत ने न सिर्फ मुझे बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश को फूलन याद दिला दी .


हिन्दुस्तान में या दुनिया में कहीं भी किंवदंती बनने के लिए उम्र कोई बाधा नहीं है. फूलन भी मात्र 37  साल में किंवदंती बन गयी और आज वो फिर सियासत की जरूरत है .एक नामालूम राजनीतिक दल विकासशील इन्साफ पार्टी ने उत्तर प्रदेश में फूलन देवी की प्रतिमाएं लगाने का ऐलान कर मरी    हुई फूलन को एक बार ज़िंदा कर दिया. विकासशील   इन्साफ पार्टी बिहार  की जदयू सरकार का सहयोगी दल है उसे अचानक उत्तर प्रदेश और फूलन देवी कैसे याद आगयी ,भगवान जाने.लेकिन मरी  हुई फूलन से डरी हुई उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने न सिर्फ फूलन देवी की प्रतिमाएं जब्त कर लीं बल्कि उन्हें पुलिस के मालखानों में जमा भी करा दिया .

फूलन देवी का डाकू बनाना और समर्पण करना ही नहीं बल्कि उसका सांसद बन जाना भी एक फिल्मी कहानी जैसा है. भारत की हिंदी पट्टी में फूलन देवी के बारे में दोबारा लिखने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि सब उसके बारे में जानते हैं .फूलन को यूपी और एमपी के लोग भी भूल चुके थे.और उसे सांसद बनाने वाली समाजवादी पार्टी भी ,समाजवादी पार्टी ने कभी फूलन का शहीद दिवस नहीं मनाया लेकिन विकासशील इन्साफ पार्टी को फूलन देवी का शहीदी दिवस याद रहा .

फूलन देवी के खिलाफ यूपी और एमपी की कम से कम 57  अदालतों में जघन्य  हत्या से लेकर अवैध हथियार रखने जैसे मामूली मामले भी चले ,लेकिन उसके नसीब में देश की संसद  में बैठना लिखा था सो समाजवादी ने उसे टिकिट दिया ,जिताया या फूलन खुद जीत गयी,ये सब अतीत की बात है. फूलन को समाजवादी पार्टी ने मिर्जापुर से दो बार आजमाया .फूलन ने समाजवादी पार्टी के लिए ये लोकसभा सीट निकाल दी वो भी अपनी जाति के आधार पर.फूलन के रक्तरंजित और क्रूरता के इतिहास का अचानक लोकतांत्रिक इतिहास में बदलना एक तिलिस्म जैसा था .


सांसद बनने वाली फूलन देवी यदि एक खुशनसीब महिला थी तो एक बदनसीब महिला भी थी.उसके साथ वो सब अनर्थ हुआ जिसके बारे में आप कल्पना नहीं कर सकते .मैंने उसे बीहड़ से बाहर निकलते देखा है. मै उन तमाम चश्मदीद पत्रकारों में से एक हूँ जो उसके आत्मसमर्पण के समय भिंड में ही नहीं अपितु मध्यप्रदेश के भिंड जिले में स्थित ईंगुई डाकबंगले पर मौजूद थे .आत्म समर्पण से पहले फूलन से पहले बात करने वाला मै अकेला पत्रकार था क्योंकि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक  भिंड राजेंद्र चतुर्वेदी के साथ गए इंडिया टुडे की रिपोर्टर से बात करने से फूलन ने इंकार कर दिया था .मै चूंकि फूलन के गांव के नजदीकी गांव का रहने  वाला था इसलिए उसने मुझे मौक़ा दिया

बहरहाल बात फोन के दोबारा ज़िंदा होने की है. फूलन बीहड़ में अपने दुश्मनों और पुलिस की गोली से बचकर आ गयी थी.लेकिन उसे दिल्ली के कंक्रीट के जंगलों में बेरहमी से मार दिया गया .उसने दोबारा अपनी गृहस्थी   बसाई थी लेकिन उसे उजाड़ दिया गया ,क्यों उजाड़ा गया,इसकी कहानी भी है ,और लम्बी कहानी है .इस समय फूलन के दोबारा दो दशक बाद ज़िंदा होने की है .उसे इस बार समाजवादी पार्टी ने ज़िंदा नहीं किया बल्कि भाजपा के सहयोग के लिए विकासशील इन्साफ पार्टी ने ज़िंदा किया है .ऊपर से लग रहा है कि योगी सरकार विकाशशील इन्साफ पार्टी को रोक रही है लेकिन अंदर झांककर  देखिये तो योगी सरकार ही इस प्रहसन के पीछे है ताकि फूलन की जाति के वोटरों को दूसरे दलों की झोली में जाने से बचाया जा सके खासतौर पर समाजवादी पार्टी के खाते में .

फूलन के पुनर्जन्म से पहले आपको जान लेना चाहिए कि वीआईपी निषादों की पार्टी मानी जाती है. इसके अध्यक्ष मुकेश सहनी अपने आप को 'सन ऑफ मल्लाह' कहलाना पसंद करते हैं. यूपी चुनाव से पहले वीआईपी तमाम कार्यक्रमों के जरिये निषाद वोटबैंक को साधना चाहती है, जो प्रदेश में बड़ी संख्या में हैं. इसी नजरिए से इस कार्यक्रम को भी देखा जा रहा है. मुकेश सहनी बिहार की नीतीश सरकार में पशुपालन और मत्स्य विभाग के मंत्री हैं. इस सरकार में भाजपा भी शामिल है.निषादों के बाहुल्य वाले फिरोजाबाद के टूंडला, प्रयागराज के प्रयागराज पश्चिम, आजमगढ़ की बांसडीह, बस्ती के मेहदावल, चित्रकूट की तिंदवारी, अयोध्या की अयोध्या सदर व कादीपुर, गोरखपुर के चौरी चौरा व पनियारा, औरैया, लखनऊ, उन्नाव के बांगरमऊ, मेरठ के सरधना, मिर्जापुर की मिर्जापुर सदर व ज्ञानपुर, मुजफ्फरनगर के मुजफ्फरनगर सदर, वाराणसी की रोहनिया और शाहगंज विधानसभा में मूर्तियां लगाया जाना तय किया गया था.

सियासत में डकैतों की भूमिका के बारे में लिखने को बहुत है लेकिन फूलन के प्रसंग में आपको याद दिलाना जरूरी है कि फूलन यूपी के बेहमई में 22  ठाकुरों की सामूहिक हत्या की वजह से यूपी और एमपी के ठाकुरों की नफरत का केंद्र थी,बावजूद इसके मध्यप्रदेश के तत्कालीन ठाकुर मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने फूलन देवी को अपने सूबे में आत्मसमर्पण का मौका मुहैया कराया .इससे अर्जुन सिंह की अपनी छवि तो बनी लेकिन न दोनों राज्यों को दस्यु उन्मूलन अभियान में कोई मदद मिली और न ही कांग्रेस को कोई लाभ मिला.लाभ ले गयी समाजवादी पार्टी .

फूलन बीहड़ में थी तो वहां के डाकुओं की क्रूरता का शिकार बनी.वहां भी उसका खिलौने की तरह इस्तेमाल किया गया,और आत्मसमर्पण  के बाद सियासत ने उसे अपना खिलौना बना लिया .फूलन की वजह से यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की यूपी सरकार का खेल खराब हुआ लेकिन मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह नारी उद्दार के नायक बन गए .खेद का विषय ये है कि यूपी की सियासत दो दशक पहले मारी जा चुकी फूलन देवी को चैन से मरने ही नहीं दे रहे .फूलन की किसी भी तरह से सुंदरी नहीं थी.वो दस्यु भी थी या नहीं इसमने भी मुझे संदेह है ,लेकिन उसके नाम से गिरोह था.जब उसने समर्पण किया तब उसके साथ सशत्र डाकू भी थे .

फूलन के नाम से सबने पैसे कमाए.पुलिस ने,सियासत ने पत्रकारों ने ,सिनेमा वालों ने किसी ने दलाली खाई,किसी ने किताबें लिखीं,तो किसी ने फूलन पर सिनेमा बना दिया ,लेकिन फूलन को फूलन देवी किसी ने नहीं रहने दिया .उसे आखिर बन्दूक की गोली से ही मरना पड़ा,उस बन्दूक की गोली से जिससे घबड़ाकर उसने आत्म समर्पण किया था .आज भी यही बारूद उसका पीछा कर रही है .फूलन को दरअसल इस सबसे मुक्ति चाहिए .लेकिन बेरहम सियासत उसे मोक्ष प्राप्त नहीं करने दे रही
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