बेगूसराय में ट्रैफिक जाम की समस्या अनंत है।

बेगूसराय में ट्रैफिक जाम की समस्या अनंत है।

“यात्रा के दरम्यान आपका सारा प्रोग्राम और प्लान धरा का धरा रह जाता है। बेगूसराय के सिमरिया पुल पर लगे जाम को लगता है हम और आप इसे मानव जीवन के अंग के रूप में आत्मसात कर चुके हैं। इस पुल पर जाम का हिस्सा सबों को बनना पड़ता है। हो भी क्यों न सिमरिया

“यात्रा के दरम्यान आपका सारा प्रोग्राम और प्लान धरा का धरा रह जाता है। बेगूसराय के सिमरिया पुल पर लगे जाम को लगता है हम और आप इसे मानव जीवन के अंग के रूप में आत्मसात कर चुके हैं। इस पुल पर जाम का हिस्सा सबों को बनना पड़ता है। हो भी क्यों न सिमरिया घाट पर विश्वविख्यात श्मशान जो है। भारी भरकम प्रशासन पर भूत और प्रेत हावी हो जाते हैं। दर्जनों मानव का अंतिम संस्कार इस गंगा जी के घाट पर हर रोज़ होता है। इसमें अकाल मृत्यु वाले भी कई होते हैं। लगता है यही दिवंगत आत्मा ट्रैफिक को डिस्टर्ब करते हैं। अब आप मुझे यह मत कहना कि पढ़ने लिखने के बाद कैसी बातें करते हैं। बचपन से सुनता आया हूँ कि जब विज्ञान समस्या का समाधान नहीं कर पाता है तो कुछ न कुछ अज्ञात शक्ति बना या बिगाड़ रहा होता है आई आई टी के इंजीनियर, आई आई एम के मैनेजमेंट गुरु और स्वकथित करोड़ों के प्रतिनिधि नेताओं से समस्या का हल नहीं हो पा रहा है। यह तो पक्का है यहाँ का भूत और प्रेत सबों पर भारी है। हे, प्रेतात्मा गाड़ी में बैठे बैठे यात्री के प्लान को चौपट न करें। मज़बूरी में पैदल पुल पार कर रहे बच्चों एवं महिलाओं पर रहम करें। भारी भरकम बैग लेकर इन्हें चलने में परेशानी होती है। रोगियों को वैसे भी आपने कब्र में लटका रखा है। क्यों इन्हें डायरेक्ट  श्मशान बुलाना चाहते हैं। आपके आशीर्वाद की आशा में,एक बेचारा जाम का मारा।”- एक भुक्तभोगी।

शहर में जाम की समस्या इतनी गंभीर है कि अब सड़क से गुजरते समय हमें भी बुरा लगता है। हाल यह है कि मैं खुद शहर से गुजरते समय गाड़ी से सामने सड़क की तरफ नही देखता हूं। हमलोग तो जाम से किसी तरह निकल जाते हैं, लेकिन आम लोग रोज इस जाम से परेशान होते हैं। ठोस रणनीति नही होने के कारण जाम की स्थिति गंभीर हो गई है। उक्त बातें बेगूसराय के भूतपूर्व डीएम राहुल कुमार ने शहर में जाम की गंभीर होती समस्या का समाधान ढ़ूंढने के लिए जिले के अधिकारियों और पुलिस पदाधिकारियों के साथ आयोजित बैठक में कही थी।

उपरोक्त कथन से यह बिलकुल स्पष्ट है कि बेगूसराय शहर में ट्रैफिक जाम की समस्या अपने चरम पर है और यहां के स्थानीय निवासियों को रोज़ इस समस्या से होकर गुजरना पड़ता है।  इस जाम से कितना आर्थिक, मानसिक और सामाजिक नुकशान पहुँचाता है यह इस चर्चा में बाद में आएगी पहले इस समस्या से उत्पन्न शारीरिक कष्ट से दो चार हो लिया जाए। सबसे अधिक परेशानी लोगों को कचहरी रोड, मेन रोड, कॉलेजिएट स्कूल रोड, कर्पूरी स्थान रोड में होती है।  जहां लोगों को पैदल चलने में भी भारी मशक्कत करनी पड़ती है।  इन दिनों बेगूसराय शहर के ट्रैफिक चौक से लेकर हरहर-महादेव चौक तक राष्ट्रीय उच्च पथ 31 पर भी महाजाम देखने को मिलता है। अतिक्रमण की समस्या लोगों के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। बेगूसराय शहर आम दिनों में अतिक्रमण का शिकार होता रहा है।  यहां की हर सड़कें साइकिल, बाइक,ठेला,रिक्शा और टेंपो के आवागमन से पूर्णत: अतिक्रमित रहता है। जिसके चलते प्रतिदिन लोगों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। शहर में विकराल होती जा रही महाजाम की स्थिति से शहरवासी और दूर-दराज से आने वाले जरूरतमंदों को भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। कई बार महाजाम में फंसने से मरीजों की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। स्कूल एवं कोचिंग जाने वाले छात्र-छात्राएं अपनी साइकिल का भरपूर उपयोग नहीं कर पाते हैं। मजबूरन जाम में पैदल ही लंबी दूरी तय करना पड़ता है। जिला प्रशासन एवं निगम प्रशासन इस सवाल पर कई बार गंभीर हुई है। कई तरह के निर्देश भी दिये गये। अभियान भी चलाया गया।  लेकिन उक्त अभियान आज तक कारगर नहीं हो पाया है। संतोषजनक ट्रैफिक व्यवस्था नहीं रहने से परिणाम ढाक के तीन पात वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है।

कपसिया चौक से रमजानपुर तक राष्ट्रीय उच्च पथ 31 पर तो लगातार वाहनों की लंबी कतार देखने को मिलती है। वहीं शहर के हर-हर महादेव चौक से विशनपुर तक पावर हाउस से कर्पूरी स्थान तक, स्टेशन चौक से गांधी चौक तक और ट्रैफिक चौक से काली स्थान तक सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक सड़कें अतिक्रमित रहती है। खास कर ट्रैफिक चौक से काली स्थान तक सड़क के दोनों तरफ अनधिकृत रूप से वाहनों की पार्किंग से घंटों जाम लगा रहता है। सड़क के दोनों तरफ फुटकर और खुदरा विक्रेताओं के कारण तो और जाम लग जाता है। दरअसल सड़क के दोनों तरफ तीन मंजिला इमारतों में कई तरह के दुकानें, मॉल, बैंक संचालित किये जा रहे हैं। लेकिन इन प्रतिष्ठानों के द्वारा पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। यहां तक कि खुद प्रतिष्ठान के संचालकों की भी गाड़ी सड़क पर ही पार्क की जाती है। बाजार पहुंचने वाले ग्राहक भी सड़क पर ही अपनी गाड़ी पार्क कर समान की खरीदारी में लग जाते हैं।

जीडी कॉलेज चौक पर सड़क चौड़ी है परंतु निजी शिक्षण संस्थानों के बस एवं अन्य वाहनों को बीच सड़क पर ही पार्क कर दिया जाता है, जिससे यहां प्रतिदिन जाम की समस्या से लोग घंटों जूझते हैं। सड़कों पर इ-रिक्शा की संख्या में इन दिनों इजाफा हुआ है लेकिन जिला प्रशासन के द्वारा शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर इ-रिक्शा को व्यवस्थित नहीं करने से प्राय: जाम की समस्या बनती है। अनुमान के मुताबिक शहर में 4 हजार से अधिक ई-रिक्शा का परिचालन शहर की सड़कों पर हो रहा है। लेकिन परिवहन विभाग में अब तक 468 ई-रिक्शा का रजिस्ट्रेशन हो सका है। हालांकि पूर्व में ई-रिक्शा का निबंधन नगर निगम कार्यालय में किया गया था। ई-रिक्शा को लेकर जिला प्रशासन, परिवहन विभाग, यातायात पुलिस और निगम प्रशासन के अधिकारियों ने कई बार मीटिग भी की। लेकिन नतीजा बेहतर नहीं निकल सका है। शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर इ-रिक्शा जहां-तहां लगा दिया जाता है। जिससे जाम की समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गयी है खानापूर्त्ति : शहर में अतिक्रमण हटाने की पहल की अगर बात करें तो बेगूसराय नगर निगम प्रशासन के द्वारा लाठी-डंडा भांज कर जाम हटाने का समय-समय पर प्रयास किया जाता है लेकिन यह प्रयास स्थायी नहीं रह पाता है।  अतिक्रमण हटाओ अभियान के महज कुछ घंटे बाद ही पुन: वहीं दृश्य दिखाई पड़ने लगता है। शहर में ई-रिक्शा की बिक्री भी अवैध तरीके से हो रही है। ई-रिक्शा चालकों के पास रिक्शा खरीदने का वैध कागजात नहीं है। जबकि अन्य वाहनों की तरह ई-रिक्शा की बिक्री करने वाले विक्रेताओं को रिक्शा बिक्री के समय निबंधन करके ही रिक्शा देने का विभागीय प्रावधान है। ई-रिक्शा की बिक्री के लिए भी ट्रेड लाइसेंस आवश्यक बताया गया है। इसके लिए विक्रेता को परिवहन विभाग से यूजर पासवर्ड लेना जरूरी होता है।

बेगूसराय मुख्यालय में जाम लगने के अन्य कारण भी उतने ही कारगर हैं जितने ऊपर बताए हुए। बेगूसराय मुख्यालय आसपास के कई गांवों को जोड़ता है जहाँ से रोज़ हज़ारों की संख्या में लोग – बढ़ई , मजदूर , राजमिस्त्री , बिजली के कारीगर , फल और सब्जी विक्रेता एवं इसी तरह अन्य रोजगारों से जुड़े लोग यहां आते हैं। जहाँ से बड़ी संख्या में लोगों का शहर में प्रवेश होता है वो हैं – रामदीरी, मटिहानी, बदलपुरा, कैथमा, सिहमा , लाखो , बखरी , बिष्णुपुर , बरौनी , बीहट , मोकामा , हथीदह ,बखड्डा तथा छितनौर। इस जनसँख्या के साथ इनके सहकर्मी और परिजन भी किसी न किसी रूप में आते हैं। अगर कोई रोगी है तो उसके साथ उसको देखने वाला, अगर कोई खरीददार है तो उसके साथ कोई पसंद करने वाला, अगर कोई छात्रा है तो उसके साथ  कोई अभिभावक , अगर कोई बस ड्राइवर है तो उसके साथ कंडक्टर, यदि कोई फल विक्रेता है तो उसके साथ उसका पार्टनर और अमूमन यही स्थिति हर रोज़गार परक लोगों के साथ है जो आस पास से बेगूसराय आते हैं। या तो प्रशासन इस बाबत सोचती नहीं या फिर आँखें मूंदकर सब ठीक है वाली स्थिति से खुश नज़र आती है। इस बड़ी तादात में आने वाले लोगों के साथ आने वाले वाहन और उनके सामानों को रखने के लिए शहर में कहीं कोई सुविधा के नाम पर पार्किंग या लॉकर रूम नहीं है। जिन्हें जहां जगह मिलती है अपना सामन रख कर अपने कामों में लग जाते हैं और आराम भी वहीँ करना पड़ता है। इस तरह से लम्बी-चौड़ी सड़कें भी कोई गली सी प्रतीत होने लगती है।

दूसरे कारणों में बेगूसराय मुख्यालय अच्छे चिकित्सक , अच्छे विद्यालय और बड़ी मार्किट के लिए जाना जाता है जबकि आस पास के इलाकों में यह सब सुविधाएं नदारद नज़र आती हैं।  पंचायती राज को अगर सही से लागू किया गया होता और गांवों को आत्मनिर्भर किया गया होता तो रोज़ होने वाले इतने बड़े माइग्रेशन और उस से उत्पन्न होने वाले समस्या से निजात पाया जा सकता था। प्रशासन के पास मोबाइल ए टी एम , सर्विस वैन , साप्ताहिक बाज़ारों के आयोजन , ग्रामीण इलाकों में परीक्षा केंद्रों का विकेन्द्रीकरण व् डॉक्टरों की ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक ड्यूटी के नाम पर सब राम भरोसे ही दिखता है।

बेगूसराय शहर का क्षेत्रफल 1918 स्क्वैर किलोमीटर है जो इतने ज्यादा वाहनों को एकत्रित करने और सुसंगठित ढंग से रखने के लिए अपर्याप्त है अगर सही तरीके से कार्यवाही नहीं की जाती है तो तथा यहाँ से एन एच 31  गुजरती है जो इसकी परिधि के लगभग बीच से गुजरती है। सावित्री सिनेमा हाल के नज़दीक जहाँ शहर राष्ट्री राजमार्ग को मिलता है यहाँ की जाम की स्थिति भयावह है। यह न केवल देरी का कारण बनता है बल्कि दुर्घटना,  चोरी , छीना-झपटी का भी कारण भी बनता है। इन राजमार्गों पर दौड़ने वाले ट्रकों के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नज़र नहीं आती और ट्रैफिक पुलिस अपनी बदहाल स्थिति को कोसने से ज्यादा भर कुछ भी नहीं कर पाते हैं। इस क्रम में यह जानना आवश्यक है कि इसी साल के मार्च में  बेगूसराय में ट्रैफिक डीएसपी ने ट्रैफिक नियंत्रण के दौरान ऐसा डंडा चटकाया कि एक ड्राइवर को अपनी आंख गंवानी पड़ी। हालांकि पुलिस इसे ट्रैफिक नियंत्रण के दौरान भूलवश चोट लगने की बात कहती रही। और भी जीरो माइल चेक पोस्ट के संबंध में  चेक पोस्ट ओवरलोडिंग, शराब की बिक्री और बालू-गिट्टी का आवाजाही पर लगाम कसना अभी भी बाकी है। उसके ऊपर  चेक पोस्ट पर तैनात कुछ पुलिसकर्मी और होमगार्ड के जवान अवैध पैसे की वसूली करते है। इस तरह से शहर में अवैध परिवहनों का आवा गमन होता है।

बिहार राज्य परिवहन की बसों की सुविधा नगण्य के बराबर है और जो हैं उनकी स्थिति कुछ ख़ास अच्छी नहीं है। लोगों को घंटों इन बसों का इंतज़ार करना पड़ता है और फिर भी बसों में सीट नहीं मिल पाती तथा प्राइवेट बस मालिकों की तेज़ रफ़्तार दौड़ती बसों के आगे सरकारी बसें हांफती और अपनी जान बचाती ही दिखती हैं। अच्छी सड़कों और सरकारी परिवहन की सुविधा ना होने की वजह से भी लोग ज्यादा देर तक सड़कों पर खड़े रहते हैं जिससे जाम लगता है।  हर आदमी अपनी गाड़ी से आना पसंद करता है क्योंकि यही एक ऑप्शन उनके पास बचता है। सरकारी परिवहन किस तरह से भीड़ को दूर कर सकते हैं , इस पर स्थानीय प्रशासन को जरूर काम करना होगा।

ट्रैफिक जाम से केवल शारीरिक ही नहीं आर्थिक , मानसिक और सामाजिक नुकशान भी है।

“1.44 लाख करोड़ रु। यह सिर्फ चार प्रमुख भारतीय शहरों, दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर और कोलकाता में यातायात की भीड़ से बचने की सामाजिक लागत है। संयोग से, यह राशि बजट 2018 में भारत के शिक्षा बुनियादी ढांचे को अपडेट करने के लिए सरकार द्वारा आवंटित की गई राशि से 50 प्रतिशत अधिक है, ऐसा बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट ने कहा।” टिकाऊ परिवहन के लिए एक बदलाव को प्रोत्साहित करने के प्रयासों के बावजूद, यातायात भीड़ अक्सर गतिशीलता पर बहस का ध्यान केंद्रित है। 1990 के दशक में ऑटोमोबाइल की वैश्विक मांग में काफी वृद्धि हुई, 2017 के बाद से लगभग 80 मिलियन वाहनों की वार्षिक बिक्री स्थिर है। कारों की बाढ़ का सामना करना पड़ा, दशकों से सरकारों ने नागरिकों की गतिशीलता में सुधार करने का प्रयास किया है – कुछ उपाय मौजूदा सड़कों को चौड़ा करने और निर्माण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। नए लोग, जबकि अन्य सार्वजनिक परिवहन, साइकिल और पैदल चलने जैसे विकल्पों के लिए एक स्विच को प्रोत्साहित करते हैं।”

भारत में  प्रति 1000 लोगों पर 1.2 बसें है, जो विकासशीक देशों कोई अपेक्षा में बहुत ही कम है। राज्यों के बीच  एक विशाल विषमताको महसूस किया जा सकता है – कर्नाटक में प्रति 1000 लोगों पर 3.9 बसें बनाम बिहार में प्रति 1000 लोगों पर 0.02 बसें ,नीती अयोग इंडिया मोबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार। नई सड़कों का निर्माण या मौजूदा लोगों के लिए अधिक गलियों को जोड़ना स्पष्ट समाधान के रूप में लग सकता है। यह निश्चित रूप से पर्याप्त तार्किक लगता है: जैसे-जैसे शहर बड़े होते हैं, उनकी सेवा करने वाली सड़कों को उसी प्रवृत्ति का पालन करना चाहिए। यदि उनके पास व्यापक या नई सड़कें हैं, तो चालकों के पास स्थानांतरित करने के लिए अधिक स्थान होना चाहिए, जो भीड़ से छुटकारा दिलाता है और कारों को तेजी से आगे बढ़ाता है। इस तर्क का उपयोग अक्सर सरकारी अधिकारियों द्वारा नए और अक्सर महंगे बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के महत्व पर विस्तृत रूप से किया जाता है। हालाँकि, यह हमेशा व्यवहार में इस तरह से नहीं निकला, और इसके पीछे के कारण प्रेरित मांग के दीर्घकालिक प्रभाव में पाए जा सकते हैं। शब्द “प्रेरित मांग” उस स्थिति को संदर्भित करता है जहां एक अच्छी वृद्धि की आपूर्ति के रूप में, उस अच्छे की अधिक खपत होती है। इसका तात्पर्य यह है कि नई सड़कें अनिवार्य रूप से अतिरिक्त यातायात का निर्माण करती हैं, जिसके कारण वे फिर से पूरी तरह से भीड़भाड़ हो जाते हैं। हालाँकि, ये सुधार लोगों के व्यवहार को बदल देते हैं। चालक जो पहले भीड़भाड़ के कारण उस मार्ग से बचते थे अब इसे एक आकर्षक विकल्प मानते हैं। पहले जो लोग सार्वजनिक परिवहन, साइकिल या परिवहन के अन्य तरीकों का इस्तेमाल करते थे, वे अपनी कारों का उपयोग करने के लिए शिफ्ट हो सकते हैं। कुछ लोग अपनी यात्रा के समय को बदल सकते हैं – भीड़-भाड़ से बचने के लिए ऑफ-पीक समय में यात्रा करने के बजाय, वे पीक-टाइम में यात्रा करना शुरू कर देते हैं, जिससे भीड़ बढ़ जाती है। इसलिए, जैसा कि अधिक लोग राजमार्ग का उपयोग करना शुरू करते हैं, प्रारंभिक समय की बचत प्रभाव कम हो जाता है और अंततः गायब हो जाता है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि बेगूसराय शहर में सबसे पहले पार्किंग की व्यवस्था अनिवार्य करनी होगी। शहर में प्रत्येक दिन खुल रहे बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों के संचालकों को भी पार्किंग को लेकर कड़ा निर्देश देना होगा। वहीं दूसरी ओर फुटकर और खुदरा दुकानदारों के लिए वैकल्पिक जगह तलाशनी होगी ताकि इन दुकानदारों को रोजी-रोटी के लिए भटकना न पड़े। जाम लगने के प्रमुख कारण एनएच सहित नगर निगम की मुख्य सड़कों का चौड़ीकरण नहीं किया जाना, गाड़ियों की लगातार बढ़ रही संख्या, खुदरा विक्रेताओं, ठेला दुकानदारों द्वारा सड़कों को अतिक्रमित किया जाना, सड़क पर डिवाइडर की व्यवस्था नहीं होना
पार्किंग की ठोस व्यवस्था का नहीं होना,शहर के अंदर भारी वाहनों और चार पहिया वाहनों के प्रवेश के कारणबेहतर ट्रैफिक व्यवस्था का नहीं होना शामिल हैं।

जिले के सारे जरूरत एक छोटे वृत्ताकार परिधि में पूरा होना भी जाम का कारण है।  औरों का कहना है कि मास्टर प्लान के तहत फ्लाई ओवर का निर्माण हो तो जाम से छूटकारा मिल सकता है। इ-रिक्शा स्टैंड का निर्माण करने और उसके रूट तय करने से सब्जी विक्रेता को व्यवस्थित बाजार उपलब्ध कराने, ठेला चालकों को व्यवस्थित करने, नगरपालिका चौक से चांदनी चौक तक फुटपाथ का निर्माण करने ,हर-हर महादेव चौक से पटेल चौक तक अतिक्रमण मुक्त करने से ही जाम की समस्या से लोगों को निजात मिल सकती है। शहर के महत्वपूर्ण सड़कों को चौड़ीकरण करना, वाहनों के प्रवेश और निकास के रास्ते को तय करना, शहर की कई सड़कों पर वन वे व्यवस्था की जरूरत, खुदरा और फुटपाथी दुकानदारों के लिए अलग जगह तय करना, सड़क पर डिवाइडर सहित सभी महत्वपूर्ण जगहों पर ट्रैफिक पुलिस की व्यवस्था करना,पार्किंग की व्यवस्था को सुदढ़ करने की जरूरत व मास्टर प्लान के तहत शहर की व्यवस्था को दुरुस्त करना इस निजात से पार पाने मि मुहीम में एक ज़बरदस्त सफलता दिला सकता है।

सलिल सरोज
नई दिल्ली

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