राजनीति के तीरथ,या तीरथ की राजनीति

राजनीति के तीरथ,या तीरथ की राजनीति

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को विधानसभा का मुंह देखने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा .रावत के इस्तीफे के पीछे संवैधानिक संकट बताया जा रहा है लेकिन आम धारणा है कि ये सब बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को पद से हटाने के लिए जानबूझकर एक नजीर बनाई गयी है .वैसे

 

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को विधानसभा का मुंह देखने से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा .रावत के इस्तीफे के पीछे संवैधानिक संकट बताया जा रहा है लेकिन आम धारणा है कि ये सब बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को पद से हटाने के लिए जानबूझकर एक नजीर बनाई गयी है .वैसे तीरथ सिंह रावत कुल 116 दिन मुख्यमंत्री रहे .उनका कार्यकाल कुछ कम नहीं था,उनसे पहले कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरी सिंह रावत तो केवल एक दिन मुख्यमंत्री रह पाए थे .

दरअसल तीरथ सिंह थोपे हुए मुख्यमंत्री थे,उन्हें जनता ने नहीं भाजपा ने चुना था .रावत को जनता चुनती लेकिन देश में महामारी की वजह से कोई भी उपचुनाव न करने के एक निर्णय की वजह से रावत को घर बैठने के लिए मजबूर होना पड़ा .हकीकत ये है कि ये रावत की नहीं बल्कि राजनीति की मजबूरी है. आज देश में जब महामारी के बावजूद सब कुछ खोला जा रहा है ,तब विधानसभा के उप चुनाव करना कोई बड़ी बात नहीं थी.हुक्म के गुलाम समझे जाने वाले केंचुआ के लिए एक उप चुनाव के लिए तैयारी करने में कितना वक्त लगता आखिर ?लेकिन सरकार को केवल रावत को इसलिए शहीद करना था ताकि एक नजीर बन जाये और रावत की ही तरह जनता द्वारा नहीं चुनी गईं मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से हटाया जा सके .

देश में मुख्यमंत्री थोपने की राजनीति उतनी ही पुरानी है जितनी की कांग्रेस. कांग्रेस ने ये परम्परा शुरू की थी और सुविधाजनक होने की वजह से सत्ता में आने वाले हर दल ने अंगीकार कर लिया.भाजपा भी इसका अपवाद नहीं है. 21 साल केउत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि उसे एक नारायणदत्त तिवारी को छोड़कर अब तक कोई ऐसा मुख्यमंत्री मिला ही नहीं जो अपना कार्यकाल पूरा कर सका हो.तिवारी जी कांग्रेस के नेता थे और दिग्गज नेता थे इसलिए उन्हें ये सौभाग्य मिला लेकिन कांग्रेस के बाकी मुख्यमंत्रियों के साथ वो सब हुआ जो बेचारे भाजपा के तीरथ सिंह रावत के साथ हुआ

मेक्सिको का शॉक: भारत के निर्यात पर टैरिफ़ की आग Read More मेक्सिको का शॉक: भारत के निर्यात पर टैरिफ़ की आग

उत्तराखंड को आप देश की बेपटरी हो चुकी राजनीति का एक उदाहरण मान लीजिये तो सब कुछ समझ में आ जाएगा. उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी केवल 364 दिन अपने पद पर रह पाए.उनके बाद भगतसिंह कोशियारी को मात्र 122 दिन काम करने का मौक़ा मिला..विधानसभा के चुनाव हुए तो कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया.कांग्रेस ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाया नारायण दत्त तिवारी को ,वे पूरे पांच साल 5 दिन मुख्यमंत्री रहे .उनकी राज्य की राजनीति के साथ ही पार्टी हाई कमान पर भी पकड़ थी,वे विवादास्पद लेकिन लोकप्रिय नेता थे ,इसलिए कांग्रेस ने उनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की .

टूटती उम्मीदों का समाज और आत्महत्या का बढ़ता संकट, सभ्य समाज के लिए करुणाजनक स्थिति Read More टूटती उम्मीदों का समाज और आत्महत्या का बढ़ता संकट, सभ्य समाज के लिए करुणाजनक स्थिति

विधानसभा के अगले चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से फिर सत्ता छीन ली और भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन वे भी दो साल 111 दिन ही अपनी कुर्सी पर रह पाए. पार्टी के आंतरिक असंतोष की वजह से उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल को मुख्यमंत्री बना दिया गया .यानि यहां भी जनता की पसंद और नापसंद को ध्यान में नहीं रखा गया. कवि हृदय रमेश बाबू भी दो साल 25 दिन में चलते कर दिए गए और दोबारा खंडूरी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया गया.ठीक उसी तरह जैसे शतरंज में मोहरे बदले जाते हैं .
उत्तराखंड में 2012 में विधानसभा के चुनाव हुए तो भाजपा फिर सत्ता से हाथ धो बैठी.कांग्रेस सत्ता में आयी तो मुख्यमंत्री बनाये गए विजय बहुगुणा ,लेकिन वे केवल एक साल 324 दिन ही अपनी कुर्सी बचा पाए,उन्हें धकेल कर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बना दिया.रावत घाघ राजनेता होने के बावजूद केवल 2 साल 25 दिन अपने पद पर रह सके. राज्य में 25 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया और फिर वापस हरीश रावत को ही मुख्यमंत्री पद पर बैठा दिया गया .रावत की बदनसीबी थी कि उन्हें एक दिन में ही सत्ता छोड़ना पड़ी और फिर एक बार 19 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया .लेकिन राजनीति की बलिहारी कि रावत राष्ट्रपति शासन हट्टे ही एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाये गए और 311 दिन अपनी कुर्सी पर रहे .

सरकारी खजाने पर बोझ सांसद विधायकों के वेतन में भारी वृद्धि Read More सरकारी खजाने पर बोझ सांसद विधायकों के वेतन में भारी वृद्धि

उत्तराखंड में 2017 में फिर विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा ने कांग्रेस को सत्ताच्युत कर दिया और मुख्यमंत्री बनाये गए त्रिवेंद्र सिंह रावत.त्रिवेंद्र सिंह अच्छा -भला काम कर रहे थे लेकिन पार्टी की अंदरूनी राजनीति में वे फिट नहीं हो पाए और उन्हें तीन साल 357 दिन बाद कुर्सी से हटा दिया गया और उनकी जगह थोप दिए गए तीरथ सिंह रावत .रावत 116 दिन में ही आउट हो गए क्योंकि वे जुबान से कुछ कच्चे थे .सरकार चाहती तो उन्हें क़ानून चोर दरवाजों का इस्तेमाल कर दोबारा मुख्यमंत्री बना सकती थी जैसे कि अतीत ने हरीश रावत को बनाया ,लेकिन भाजपा को तो करना ही कुछ और है .अब पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के खेवनहार हैं

राज्य में सात महीने बाद विधानसभा के चुनाव होना है ,भाजपा कि स्थिति ठीकठाक नहीं है इसलिए धामी को बैठकर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन धामी के हिस्से में भी केवल 240 दिन ही आ रहे हैं .उन्हें भी पांच साल तक पद पर रहने का सौभाग्य हासिल नहीं हो पा रहा है .यानि ये कहानी केवल उत्तराखंड की नहीं है .ये कहानी है राजनीति के तीरथ की .इसमें मुख्यमंत्रियों को आईएएस अफसरों की तरह बदला जाता है .यहां न नैतिकता चलती है और न जनादेश.जनता जिसे चुनकर भेजती है उसे पार्टी हाईकमान चाहे जब लतिया देते हैं .

अब आइये चलते हैं असल कहानी की और .भाजपा बंगाल विधानसभा में मुंह की खाने के बाद बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी को पदच्युत करना चाहती है.ममता को भी उनके विधानसभा क्षेत्र की जनता ने चुनाव में हरा दिया था,अलवत्ता उनकी पार्टी तृण मूल कांग्रेस प्रचंड बहुमत से विधानसभा का चुनाव जीती .नैतिकता का तकाजा तो ये था की ममता बनर्जी अपनी जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाती और बाद में अपनी सुविधा से विधानसभा की कोई भी सीट खाली कराकर उपचुनाव जीतकर विधायक दल की नेता बनतीं.लेकिन सवाल वही पुराना की -आखिर नैतिकता है किस चिड़िया का नाम ? राजनीति अगर नैतिक हो जाएगी तो देश का कल्याण नहीं हो जाएगा ?

केंद्रीय चुनाव आयोग बंगाल में विधानसभा उपचुनाव न कराकर आखिर भाजपा के लिए ममता को कितने दिन मुख्यमंत्री पद से दूर रख सकता है .कानून में जो चोर दरवाजे हैं वे ममता कल लिए दूसरे रास्ते भी खोल सकते हैं .भाजपा बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा नहीं सकती,क्योंकि वहां कोई संवैधानिक संकट नहीं है.ममता हट भी जाएँ तो उन्हीं की पार्टी के दुसरे नेता को मुख्यमंत्री का पद मिल जाएगा .राजनीति के तीरथ करने के लिए क़ानून की आड़ लेना अनैतिक भले हो किन्तु कोई मानने को तैयार नहीं है इस अनैतिकता से मुकर होने के लिए .क्यों ऐसा क़ानून नहीं बनाया जाता जिससे मुख्यमंत्री पद पर थोपा-थापी हमेश के लिए समाप्त हो जाये .मुख्यमंत्री उसी को चुना और बनाया जाये जिसने विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता हो ..लेकिन ऐसा न कभी हुआ है और न होगा,क्योंकि सभी राजनीतिक दल एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं .

Tags:

About The Author

स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।

Post Comment

Comment List

आपका शहर

अंतर्राष्ट्रीय

नेतन्याहू से मुलाकात के बाद जयशंकर का कड़ा संदेश, आतंकवाद पर भारत–इज़राइल एकजुट नेतन्याहू से मुलाकात के बाद जयशंकर का कड़ा संदेश, आतंकवाद पर भारत–इज़राइल एकजुट
International Desk  यरूशलम। भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इज़राइल की आधिकारिक यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू...

Online Channel