मंदी में देश की आर्थिक चुनौतियां बरकरार

मंदी में देश की आर्थिक चुनौतियां बरकरार

आर्थिक सुस्तीयो के बावजूद भी शासन सत्ता मंदी मानने से इंकार करती आ रही है लेकिन चुनौतियां मुंह खोले वही खड़ी है जहां आज से 6 साल पहले सपनों की दुनिया सजाई गई थी देश का तकरीबन 60% आबादी उस सपने को हकीकत में बदलने के लिए शासन सत्ता से कदम से कदम मिलाकर अभी

आर्थिक सुस्तीयो के बावजूद भी शासन सत्ता मंदी मानने से इंकार करती आ रही है लेकिन चुनौतियां मुंह खोले वही खड़ी है जहां आज से 6 साल पहले सपनों की दुनिया सजाई गई थी देश का तकरीबन 60% आबादी उस सपने को हकीकत में बदलने के लिए शासन सत्ता से कदम से कदम मिलाकर अभी तक चलती आई है पिछले बार जब विश्व स्तर पर आर्थिक मंदी का जिक्र हो रहा था तो आर्थिक समीक्षा करने वाले यह बताते थे कि अब तक की सबसे बड़ी मंदी के दौर से दुनिया गुजर रहा है फिर भी हिंदुस्तान पर उस मंदी का कोई असर देखने को नहीं मिला था लेकिन इन 6 वर्षों में ऐसा क्या हो गया जो हल्की मंदी की आहट से ही ताश के पत्तों की तरह बिखर कर हम वैश्विक मंदी को जिम्मेदार ठहराने लगे चरमराती भारतीय अर्थव्यवस्था पर सबसे चिंतनीय विषय ग्रामीण क्षेत्रों की कम हुई आय से है भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय गंभीर चिंता के दौर में है और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का कहना है कि इससे उबारने के लिए तत्काल भारतीय सरकार को नीतिगत उपाय करने की बहुत ही ज्यादा जरूरत है. बजट सत्र में बजट का वित्त मंत्री द्वारा लाइव हुए बजट से भी भारतीय जनता को निराशा ही प्रतीत हो रहा है 

अगर अन्य देशों की बात करें तो पीडब्ल्यू सी  ने आईएमएफ से पहले ही ब्रिटेन की रैंकिंग गिरने का अनुमान लगाया जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था के तीव्र गति से बढ़ने की बात बताई थी. वही आईएमएफ की जारी रिपोर्ट में आईएमएफ के निदेशकों ने लिखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में हाल के वर्षों में जो जोरदार विस्तार हुआ है उससे लाखों लोगों को गरीबी से निकालने में मदद मिली है. लेकिन 2019 की पहली छमाही में जिन कारणों से भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर बेहद सुस्त पड़ी वह सोचने और समझने की जरूरत है आईएमएफ एशिया और प्रशांत विभाग में भारत के लिए मिशन प्रमुख ने एक साक्षात्कार में कहा था कि, ‘‘भारत के साथ मुख्य मुद्दा अर्थव्यवस्था में पड़ी सुस्ती का है. हमारा अब भी मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती संरचनात्मक नहीं है इसकी वजह वित्तीय क्षेत्र का संकट बना हुआ है. इसमें सुधार उतना तेज नहीं होगा जितना हमने पहले सोचा था. जबकि पीडब्ल्यू सी ने अनुमान लगाया था कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में भारत तीव्र विकास दर और बड़ी आबादी के कारण वैश्विक जीडीपी रेस में आगे बढ़ेगा. विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था फ्रांस को पीछे छोड़ छठे पायदान पर आ गया है आईएमएफ और विश्व बैंक की मानें तो एक दशक पहले भारत की जीडीपी फ्रांस से तकरीबन आधी थी. 

भारत में नोटबंदी और जीएसटी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में ठहराव लाया लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी से अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सकती है जिसका सिर्फ एक अनुमान ही लगाया जा रहा है वैसे देखा जाए तो भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार पहले ही यूरोपियन अर्थव्यवस्था के मुकाबले दोगुनी है लेकिन प्रति व्यक्ति जीडीपी बहुत ही कम. आईएमएफ ने भारत पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट भी जारी की है जिसमें भारत के लिए परिदृश्य नीचे की ओर जाने का है. ऐसे में आईएमएफ के निदेशकों ने ठोस वृहद आर्थिक प्रबंधन पर जोर दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि निदेशकों को लगता है कि मजबूत जनादेश वाली नयी सरकार के सामने सुधारों को आगे बढ़ाने का एक बेहतर अवसर है जिससे समावेशी और सतत वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगा. सलगादो ने  एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि भारत इस समय गंभीर सुस्ती के दौर में है. वही चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है 

जो इसका छह साल का निचला स्तर है. वृद्धि आंकड़ों से पता चलता है कि तिमाही के दौरान घरेलू मांग सिर्फ एक प्रतिशत बढ़ी है.सलगादो ने कहा था कि इसकी वजह गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के ऋण में कमी है. इसके अलावा व्यापक रूप से ऋण को लेकर परिस्थितियां सख्त हुई साथ ही आमदनी, विशेषरूप से ग्रामीण क्षेत्रों की आय कम हुई है इससे निजी उपभोग प्रभावित हुआ है. अगर अन्य देशों की तरफ भी देखे तो आईएमएफ के मुताबिक 2023 तक ब्रिटेन ऐसे ही अर्थव्यवस्था में रहेगा जबकि अमेरिका चीन जापान जर्मनी क्रमशः रैंकिंग में अपनी जगह बने रहेंगे.  इन सभी रिपोर्टों के बीच भारत की मंदी ऐसी बन चुकी है जिसमें उपभोक्ताओं की डिमांड घटती चल गई मार्केेट में रुपयोंं का रोटेशन बंद हो गया बैंक डूबने लगे विनिवेश का रास्ता आसान नहीं रह गया इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए यह कहना कदापि गलत नहींं होगा की देश अपने आर्थिक सुस्ती की ओर क्रमशः बढ़ते ही जा रहा है जनजीवन पर आर्थिक चुनौतियां विकराल रूप धारण करनेेेे को अमादा हो चुकी है

राजीव शुक्ला

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