मोहे न नारी नारी के रूपा मेरी एक बात समझ में नहीं आती कि जब लोहा,लोहे को काट सकता है
तुलसीदास होते तो मै उनसे पन्नगारि की इस अनूठी रीति के बारे में जरूर पूछता .दरअसल आजकल हर क्षेत्र में नारी ही नारी के खिलाफ
स्वतंत्र प्रभात
मोहे न नारी नारी के रूपा मेरी एक बात समझ में नहीं आती कि जब लोहा,लोहे को काट सकता है और काँटा ,कांटे को निकाल सकता है तो नारी,नारी पर मोहित क्यों नहीं हो सकती ?.बाबा गोस्वामी तुलसीदास होते तो मै उनसे पन्नगारि की इस अनूठी रीति के बारे में जरूर पूछता .दरअसल आजकल हर क्षेत्र में नारी ही नारी के खिलाफ खड़ी दिखाई देती है ,मुझे तो इसके पीछे कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश नजर आती है .
गोया कि मेरी आँख में मोतियाबिंद नहीं है इसलिए आजकल मुझे बिना चश्मे के भी दूर-दूर का दिखाई देता है .मै देख पा रहा हूँ कि इस समय देश को विपक्ष के रूप में एक सबल नेतृत्व की जरूरत है और इस जरूरत को एक महिला ही पूरा कर सकती है ,लेकिन विपक्ष को नेतृत्व देने वाली महिला का दूर-दूर तक आता-पता नहीं है .हमारे यहां महिलाएं विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों में अपने जौहर दिखा चुकी हैं ,लेकिन वो पुराना ज़माना था ,नए जमाने में सब कुछ नया है.सत्ता पक्ष भी और विपक्ष भी .
फन्ने बता रहे थे कि इन दोनों देश में विपक्ष के नेता के रूप में स्त्री नेतृत्व की तलाश जोर-शोर से चल रही है .दादा शरद पंवार ने जब से कंधा डाला है तब से ही ये तलाश कुछ ज्यादा तेज हो चुकी है. कहते हैं कि प्रधानमंत्री जी का मुकाबला करने के लिए स्त्री नेतृत्व की जरूरत है.कांग्रेस का मन तो था कि वो अपनी प्रियंका दीदी को विपक्ष का नेता बना देती लेकिन प्रियंका ने अभी तक नेतृत्व की प्राथमिक परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं की है.उलटे उनकी अगुवाई में कांग्रेस हाल के उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में अदृश्य और हो गयी .
इस मामले में पतारसी की दिशा अचानक बदल गयी है. नरसिंघनी ममतारूपा सुश्री ममता बनर्जी पर सभी की निगाह टिकी हुई है .ममता ने हाल ही में दूसरी बार मोदी जी और उनकी वानर सेना से न केवल टक्कर ली बल्कि उन्हें चुनावी जंग में परास्त भी कर दिया .विपक्ष के तमाम छोटे-बाद नेताओं को लगता है कि -' ममता इज दी बेस्ट ',लेकिन विसंगति ये है कि ममता के खिलाफ ममता की ही बिरादरी वाले कमर कसकर खड़े हुए हैं ..विपक्ष का नेतृत्व अगर ममता जैसी वाचाल और धैर्यशील महिला करे तो किसी को क्या उज्र हो सकता है ?
ममता जी हाल ही में कांग्रेस की महान नेता श्रीमती सोनिया गांधी से मिलकर आयीं हैं .wwwसोनिया गांधी ने देश को लम्बे आरसे तक अलग -अलग तरीके से परदे के पीछे रहकर नेतृत्व दिया है .वे सत्ता में भी रहीं और विपक्ष में भी लेकिन उनकी पोजीशन पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा .सोनिया जैसी देवियों पर किसी बात का फर्क पद भी नहीं सकता .भारत में तो वे प्रियदर्शनी इंदिरा गाँधी के बाद की दूसरी सबल नेता हैं .जो कांग्रेस को लगातार टूटते हुए देखकर भी कभी न भीतर से टूटी और न बाहर से .किसी दूसरी पार्टी में ये सब हुआ होता तो नेता कभी के वेंटिलेटर पर आ जाते. .
बात नारी न मोहे नारी के रूपा से शुरू हुई थी.सो आपको बता दूँ कि विपक्ष की नेता के रूप में बसपा की बहनजी मायावती को ममता दीदी फूटी आँख नहीं सुहातीं .ममता के पुरषार्थ ने बहन जी के भविष्य की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया है ,लेकिन माया का विरोध भी परदे के पीछे ही है ,अभी वे खुलकर सामने नहीं आयी हैं वे आजकल खुलकर कोई काम करती ही नहीं है .माया बहन जी को लगता है कि यदि ममता ने मोदी सेना को बंगाल से न खदेड़ा होता तो आज उनके नाम पर चर्चा ही नहीं हुई होती .
अब सवाल ये है कि विपक्ष का नेता किसे बनाया जाये, सोनिया जी उम्र दराज होने के साथ-साथ बीमार भी रहने लगी हैं .यही हाल शरद पंवार का है .नीतीश बाबू अब भाजपा के पिछलग्गू बन चुके हैं इसलिए विपक्ष की कोई भी पार्टी उनके ऊपर भरोसा कर नहीं सकती .उड़ीसा के नवीन बाबू को प्रधानमंत्री बनने की कोई ख्वाहिश ही है वामपंथियों के पास अब ज्योति बासु जैसा विशाल व्यक्तित्व वाला कोई नेता है नहीं. कांग्रेस का भंडाफोड़ हो ही चुका है .
अब अगर पन्नगारि की अनूठी नीति बदल जाये तो मुमकिन है कि ममता बहन के लिए रास्ता खुल जाये .कांग्रेस से ममता के पुराने रिश्ते हैं. एक तरह से कांग्रेस ममता का मायका है .ममता को हिंदी,अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी आती है वे बहन माया की तरह सिंघासन पर बैठने के वजाय मंच पर घूम-घूमकर भाषण देती हैं इसलिए वे पूरे देश में सुनी और सुनाई जा सकती हैं.ममता किस परिचय की मोहताज भी नहीं है .सबसे बड़ी बात कि कांग्रेस में गांधी परिवार के बाहर का नेतृत्व भी अंगीकार है.डॉ मनमोहन सिंह को कांग्रेस दो मर्तबा आजमा चुकी है .ममता के डीएनए में अभी भी कांग्रेस के गुण -सूत्र मौजूद हैं ..
बहरहाल विपक्ष की नेता ममता बनें या माया ,अपनेराम को क्या लेना देना .लेनदेन सियासत में चलता है अपनी कामना तो ये है कि नारी,नारी के रूप पर मोहित होने लगे ,ताकि देशदुनिया पर मंडराने वाले तमाम संकट दूर हो सकें ..पन्नगारि की इसी अनूठी रीति की वजह से बहन सुषमा स्वराज सत्ता की कमान सम्हाले बिना ही गौलोक से चलीं गयीं,वरना देश को एक और प्रियदर्शनी मिल जाती लेकिन उनके सामने भी कोई समलिंगी आ खड़ी हुई शायद .वैसे इस बार ओलम्पिक में देश के लिए पहला पदक मीरा बाई चानू ने जीता है इसलिए सम्भावन बनती है कि विपक्ष के नेता का पद भी किसी महला के कहते में आ जाये .उम्मीदों पर आसमान ही नहीं हमारे कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी ठीके हैं. उन्हें लगता है कि एक सन्यासी को दूसरा सन्यासी ही बेदखल कर सकता है .

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