मनुष्य जीवन का सार तत्त्व ही संयम है संत श्रमणाचार्य विमर्शसागर महामुनिराज

मनुष्य जीवन का सार तत्त्व ही संयम है संत श्रमणाचार्य विमर्शसागर महामुनिराज

भोग से योग की ओर जाना और उपयोग को शुद्ध करना ही साधना है ।


 स्वतंत्र प्रभात 
 


महमूदाबाद-सीतापुर मनुष्य जीवन का सार तत्त्व संयम है । संयम को मुनिराज धारण करते हैं योग्यतानुसार आर्यिका, श्रावक-श्राविकायें भी धारण करते हैं । भोग से योग की ओर जाना और उपयोग को शुद्ध करना ही साधना है ।


 भोगों में तो सारा जगत पागल हो रहा है पर जो भोगों को त्यागकर योगमय होकर उपयोग को निर्मल करता है वही भगवान महावीर जैसा बन पाता है । इस काल में साधक को यदि संयम में स्थिर रहना है तो हमने जिन गुरु के हाथों में अपने जीवन की बागडोर सौंप दी है उनके निर्देशन में ही जीवन जीना, उनके मार्गदर्शन- आज्ञा अनुशासन में अपनी साधना करना । गुरु की आज्ञा ही सबसे बड़ा संयम, तप, त्याग है

, गुरु का बहुमान सम्मान और विनय को बना के रखना ही साधकों का सबसे बड़ा चारित्र है । जिस सयम को पाने के लिए जीव भव - भव लगा देता है वह संयम आपको सद्‌गुरु की कृपा से इस भव में प्राप्त हो रहा है! 16 अक्टूबर, शनिवार की संध्या बेला में  शांतिनाथ जिनालय में मोक्षमार्ग पर अग्रसर होने वाले दीक्षार्थियों को मिला भावलिंगी संत का मंगल शुभाशीष बांसवाड़ा से पधारी बाल ब्रह्मचारिणी / 'बहनों की संध्याबेला में दीक्षा के पूर्व गोद भराई का कार्यक्रम रखा गया जिसमें सभी श्रावक-श्राविकाओं ने दीक्षार्थियों के संयम मार्ग की अनुमोदना की !

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