गुरूजी’ के लिए सोने का अंडा देने वाली ‘मुर्गी’ साबित हुआ ‘कोरोना’ काल—— पत्रकार संतोष तिवारी

गुरूजी’ के लिए सोने का अंडा देने वाली ‘मुर्गी’ साबित हुआ ‘कोरोना’ काल—— पत्रकार संतोष तिवारी संतोष तिवारी (रिपोर्टर ) सरकार शिक्षा के स्तर को बढाने के लिए पूर्ण मनोवेग से लगी है कि सरकारी विद्यालयों में भी पढने वाले बच्चे भी निजी विद्यालयों के तर्ज पर शिक्षा प्रदान करें। इसके लिए सरकार भारी भरकम

गुरूजी’ के लिए सोने का अंडा देने वाली ‘मुर्गी’ साबित हुआ ‘कोरोना’ काल—— पत्रकार संतोष तिवारी

संतोष तिवारी (रिपोर्टर )

सरकार शिक्षा के स्तर को बढाने के लिए पूर्ण मनोवेग से लगी है कि सरकारी विद्यालयों में भी पढने वाले बच्चे भी निजी विद्यालयों के तर्ज पर शिक्षा प्रदान करें। इसके लिए सरकार भारी भरकम रकम सरकारी विद्यालयों की व्यवस्था को सुदृढ करने के लिए खर्च कर रही है। और बेशक सरकारी विद्यालयों में प्रतिभाशाली शिक्षकों की कमी भी नही है लेकिन इसके बावजूद भी निजी विद्यालयों की अपेक्षा सरकारी विद्यालय सही से परिणाम नही दे पा रहा है। इतने खर्च के बावजूद भी सरकारी विद्यालय में लोग अपने बच्चों पढाना नही चाहते है। जबकि निजी विद्यालयों में भारी भरकम रकम खर्च करके अपने बच्चों का दाखिला कराते है। इसकी मुख्य वजह यह है कि सरकारी विद्यालय के अधिकतर अध्यापक अपनी ड्यूटी नही केवल खानापूर्ति करके सरकार की योजना और राजस्व को चूना लगा रहे है। जिनके बचाव में स्थानीय स्तर पर सभी जिम्मेदार लोग सहभागी है। और सभी लोग मिलकर सरकार और जनता को मूर्ख बनाने का खेल खेलते है।

बीते मार्च से ही कोरोना की वजह से लाॅकडाऊन चल रहा है। जिससे पुरे देश की व्यवस्था में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। जिसका असर हर विभाग और लोगों पर है। लेकिन बच्चों की शिक्षा में कोई फर्क न पडे इसके लिए सरकार ने आनलाइन वर्चुअल टीचिंग को प्रोत्साहित किया। और इसका असर भी देखने को मिल रहा है। लेकिन यह भी प्लान केवल खानापूर्ति की भेंट चढ गया है। और केवल झूठा और फर्जी आंकडा भेजकर विभाग के लोग सरकार को संतुष्ट करने पर तुले है। और आनलाइन टीचिंग की योजना तो बहुत जगह फेल नजर आ रही है खासकर ग्रामीण क्षेत्र में जहां पर नेटवर्क और व्यवस्था का टोटा है। हालांकि सरकार ने तो बच्चों की शिक्षा के स्तर को बढाने के लिए ठोस और कारगर कदम उठाती है लेकिन जिलास्तर पर जिम्मेदारों की लापरवाही की वजह से योजना केवल कागज से होकर ही गुजरती है

उत्तर प्रदेश में तो वैसे ही सरकारी अध्यापक केवल टीचिंग का जाॅब इसलिए चुनते है जिससे वे आराम से मनमानी करके कमा सके और कोई बोलने वाला तो है नही। जबकि उनका कोई उद्देश्य यह नही होता कि बच्चों को शिक्षित करके एक अच्छा नागरिक बनायेंगे। क्योकि अधिकतर सरकारी अध्यापक अपने बचाव के लिए स्थानीय स्तर पर अधिकारियों, नेताओं के रहमो करम पर कार्य करते है। जो उनके लिए सुरक्षा कवच का कार्य करता है। अधिकतर सरकारी अध्यापक तो पहले ही काम करने से जी चुराते थे और इस समय कोरोना काल तो सरकारी अध्यापकों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रहा है। क्योकि इस समय घर बैठे आनलाइन बहाना करने का अच्छा मौका है। सवाल पैदा होता है कि सरकारी अध्यापक तो उस समय भी लापरवाही करते थे जब सामान्य समय था। लेकिन अब तो उनके लिए कोरोना काल और बहाना करने के लिए बेहतर साबित हो रहा है। जुलाई से विद्यालय खुलने के बाद से शासन का आदेश है कि सभी अध्यापक विद्यालय समय से समय पहुंचकर कार्य करेंगे।

जबकि यह आदेश स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत और लापरवाही की वजह से हवाहवाई साबित हो रहा है। हालत यह है कि बहुत जगह तो अध्यापक विद्यालय जा नही रहे है। जहां जा भी रहे है तो समय की कोई सीमा नही है। मनमानी आना जाना लगा है। जबकि रजिस्टर में एकदम व्यवस्थित समय लिखा जाता है। इन सब की जिलास्तर पर अधिकारी ध्यान नही देते है। और जब अधिकारी से कोई शिकायत करता है तो अधिकारी केवल रटा रटाया जबाब देते है कि जांच की जायेगी यदि दोषी पाये जायेंगे तो कार्यवाही होगी। जबकि कोई भी कार्यवाही नही होती है बल्कि शिकायत के बाद अधिकारी की आय बढने की संभावना जरूर बढ जाती है। बाद में मामला रफा दफा हो जाता है। और सरकार है कि इन लापरवाही करने वालों के सहारे सरकारी विद्यालयों को निजी विद्यालय के टक्कर देने के लिए मनमानी पैसा लगा रही है। सरकार जब तक भ्रष्ट और लापरवाह लोगों के खिलाफ सख्त कदम नही उठायेगी तब तक उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पटरी पर नही आयेगी। और

इस व्यवस्था को बिगाडने मे जिले स्तर के कुछ नेता और अधिकारी होते है जो लापरवाह और मनमानी करने वाले शिक्षकों पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये हुए है। सरकार से वेतन लेकर लापरवाही करने वाले शिक्षको को ध्यान होना चाहिए कि बच्चों का भविष्य उनके हाथ में है कम से कम विद्यालय के समय में पूरी ईमानदारी और निष्ठा से बच्चों को पढाकर देश के लिए एक अच्छी पीढी को तैयार करने में सहायक हो जबकि केवल खानापूर्ति करके सरकार और समाज के साथ धोखा करते है कुछ गुरूजन। गलत करने वाले अध्यापक जो देश के साथ गद्दारी करके वेतन तो ले रहे है जबकि उसके हिसाब से बच्चों को शिक्षा नही दे रहे है। जरा यही बात अपने से तुलना करे कि उनके बच्चे जहां पढ रहे है वहां के भी अध्यापक यदि ऐसे ही उनको पढाये तो उनको कैसा लगेगा?

सभी सरकारी अध्यापक अपने बच्चों को आईएएस, डाक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहता है जबकि अपने विद्यालय के बच्चों को केवल गुंडा, बदमाश, चोर या गलत व्यक्ति। आखिर इस तरह की असमानता के पीछे क्या वजह है? एक सरकारी विद्यालय में पढने वाला बच्चा यदि आईएएस अधिकारी बनना चाहता है तो कैसे उसके अरमान के पंखों को उगने के पहले ही तोड दिया जाता है इन तथाकथित गुरूजी के लापरवाही से। आखिर गुरूजी लोग अपनी जिम्मेदारी से क्यों भाग रहे है? सरकार इतना वेतन दे रही है कि देश के बच्चों का भविष्य सुधरे लेकिन कुछ गद्दार किस्म के गुरूजी लोगो को देश के बच्चों के साथ मनमानी करने और लापरवाही करने में शर्म नही आती है। इनको यह भी ध्यान नही है कि दूसरों के बच्चों के साथ अन्याय करते है तो प्रकृति हमारे बच्चों के साथ भी न्याय नही करेगी। और इनके कर्म का फल अवश्य मिलेगा। सरकार को भी इन गद्दार और बेशर्म अध्यापकों के खिलाफ कार्यवाही करना जरूरी है। हालांकि आज के दौर में भी बहुत ऐसे अध्यापक है जो अपने विद्यालय के बच्चों के उत्थान के लिए निरन्तर प्रयासरत है और बेहतर भी कर रहे है। कुछ ईमानदार और निष्ठावान सरकारी अध्यापकों के वजह से सरकारी विद्यालय के बच्चे भी बेहतर करते है। काश! सभी सरकारी अध्यापक अपनी जिम्मेदारी को समझ कर देश के नौनिहालों के लिए बेहतर कार्य करते जिससे आने वाली पीढी देश को विभिन्न क्षेत्रों में और मजबूती प्रदान करती।

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