तीन डिवीजनों  के शीर्ष अधिकारियों के साथ संरक्षा बैठक

तीन डिवीजनों  के शीर्ष अधिकारियों के साथ संरक्षा बैठक

यमुना नदी पर बने नैनी ब्रिज पर बनी डाक्युमेंट्री स्वतंत्र प्रभात। प्रयागराज ब्यूरो महाप्रबंधक उत्तर मध्य रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे विनय कुमार त्रिपाठी ने उत्तर मध्य रेलवे पर संरक्षा विषयों की समीक्षा की। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से आयोजित इस बैठक में उत्तर मध्य रेलवे के अपर महाप्रबंधक रंजन यादव, उत्तर मध्य रेलवे

 यमुना नदी पर बने नैनी ब्रिज पर बनी डाक्युमेंट्री

‌स्वतंत्र प्रभात। 
‌ प्रयागराज ब्यूरो
‌महाप्रबंधक उत्तर मध्य रेलवे  और पूर्वोत्तर रेलवे  विनय कुमार त्रिपाठी ने उत्तर मध्य रेलवे पर संरक्षा विषयों की समीक्षा की। वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से आयोजित इस बैठक में उत्तर मध्य रेलवे  के अपर महाप्रबंधक   रंजन यादव, उत्तर मध्य रेलवे  के प्रमुख विभागाध्यक्ष  और प्रयागराज, झांसी और आगरा मंडल के मंडल रेल प्रबंधक और मुख्यालय और मंडलों के अन्य अधिकारी शामिल हुए।
‌बैठक के प्रारंभ में उत्तर मध्य रेलवे के जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रयागराज मे यमुना नदी पर स्थित नैनी ब्रिज के विषय में निर्मित वृत्तचित्र को रिलीज़ किया।

ज्ञात हो कि, यमुना ब्रिज नैनी – भारतीय रेल के गौरवमयी इतिहास का योग्य भागीदार और मौन साक्षी है। पुल संख्या – 30 से पहचाना जाने वाला यमुना, नदी पर नैनी प्रयागराज में स्थित ब्रिज भारतीय रेल में इंजीनियरिंग का एक जीता जागता नमूना है। गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर स्थित प्रयागराज नगर 3 तरफ से नदियों से घिरा हुआ है। विस्तार और संपर्कता के क्रम में गंगा और यमुना को शहर से जोड़ने के लिए इन नदियों पर अब तक कई पुल(रेल एवं सड़क दोनों) बन चुके हैं और कई नए प्रगति पर भी हैं। इन्हीं में से एक है यमुना नदी पर बना यह पुल। 15 अगस्त सन 1865 से अपने जन्म के बाद से यह पुल भारतीय रेल के दिल्ली से हावड़ा और मुंबई से हावड़ा को जोड़ने का कार्य निरंतर कर रहा है।

ज्ञात हो कि, सन 1859 में प्रयागराज – कानपुर के मध्य पहली गाड़ी के संचालन के साथ उत्तर भारत में रेल यात्रा प्रारंभ हुई था। रेल के माध्यम से प्रयागराज से पूर्वी भारत का जुड़ाव नैनी ब्रिज (पुल संख्या –30) के निर्माण के उपरांत ही सम्भव हो सका था। ब्रिटिश काल में मात्र 44 लाख 46 हजार 300 रुपए की लागत से इसे बनाया गया था। 1855 में इस पुल को बनाए जाने की तैयारी शुरू हुई। इस दौरान लोकेशन भी डिजाइन कर ली गई थी। 1859 में पुल बनाने का कार्य शुरू हुआ। इस पुल को बनाने में तकरीबन 6 साल का वक्त लगा। ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर सिवले की देखरेख में बने इस पुल में रेल आवागमन 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ। निर्माण के समय इस पर सिर्फ एक लेन ही थी, वर्ष 1913 में इसका दोहरीकरण किया गया फिर इसकी इसी रीगर्डरिंग 1929 में हुई। इसी अदभुत विरासत को संजोने के क्रम में इस डाक्यूमेंट्री फिल्म को बनाया गया है।

बैठक में सरंक्षा विषय पर चर्चा करते हुए महाप्रबंधक ने कहा कि परिचालन में संरक्षा के संबंध में किसी भी प्रकार से कोई कमी स्वीकार्य नही है। महाप्रबंधक  ने प्रत्येक अनयूजुअल या घटना होने पर उसकी समुचित जांच की जाए । सभी जांच को समयबद्ध तरीके से किया जाए। इसी क्रम में श्री त्रिपाठी ने मानसून के दृष्टिगत फूटप्लेटिंग सहित  सभी संरक्षा से जुड़े निरीक्षणों को किया जाए। इसके साथ ही विभिन्न स्थानों पर रेल मार्गों पर ट्रेसपासिंग की घटनाओं पर चर्चा करते हुए महाप्रबंधक ने मंडलों को आवश्यक निर्देश दिए। महाप्रबंधकने विभिन्न निर्माण इकाईयो द्वारा क्रियांवित की जा रही परियोजनाओं में संरक्षा और रेलवे के स्थापित परिसंपत्तियों की सुरक्षा के दृष्टिगत बेहतर समन्वय और सघन मॉनिटरिंग की आवश्यकता पर बल दिया।
‌रेल मार्गों पर विभिन्न स्थानों पर निर्माणाधीन आरओबी और आरयूबी के निर्माण को भी तेज गति से करने पर भी महाप्रबंधक ने बल दिया।

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