संविधान पर हो रहा वैचारिक हमला- सोनिया गांधी का सरकार पर आरोप।
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि, 'आज संविधान घिरा हुआ है। भाजपा-आरएसएस, जिन्होंने न तो स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और न ही समानता का सिद्धांत अपनाया,
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स्वतंत्र प्रभात ।
ब्यूरो प्रयागराज ।
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शनिवार को आरोप लगाया कि देश का संविधान खतरे में है और भाजपा उसे खत्म करने की दिशा में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा एक आर्थिक और धार्मिक तानाशाही स्थापित करने के इरादे से संविधान की मूल भावना पर हमला कर रही है। सोनिया गांधी का यह संदेश दिल्ली में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय विधिक संगोष्ठी 'संवैधानिक चुनौतियां - दृष्टिकोण और मार्ग' में पढ़ा गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी हर मोर्चे पर संविधान की रक्षा करेगी - संसद में, अदालतों में और सड़कों पर भी।
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि, 'आज संविधान घिरा हुआ है। भाजपा-आरएसएस, जिन्होंने न तो स्वतंत्रता संग्राम लड़ा और न ही समानता का सिद्धांत अपनाया, अब वही लोग सत्तासीन होकर उस संविधान की नींव को खत्म कर रहे हैं जिसका वे हमेशा विरोध करते रहे।' उन्होंने कहा कि भाजपा और आरएसएस के विचारक मनुस्मृति का गुणगान करते हैं, तिरंगे को नकारते हैं और 'हिंदू राष्ट्र' की कल्पना करते हैं जहां लोकतंत्र कमजोर और भेदभाव ही कानून बन जाता है।
सोनिया गांधी ने कहा कि सत्ता में आने के बाद भाजपा ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया, असहमति को अपराध बना दिया, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया, और दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और गरीबों के साथ धोखा किया। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा अब संविधान से समाजवाद और पंथनिरपेक्षता जैसे शब्दों को हटाने की कोशिश कर रही है, जो बाबा साहेब आंबेडकर के समान नागरिकता के सपने की बुनियाद हैं। उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी और उनकी टीम को इस महत्वपूर्ण चर्चा को शुरू करने के लिए बधाई दी और कहा कि कांग्रेस का मिशन स्पष्ट है, गणराज्य की पुनर्रचना करना और हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा करना।
सोनिया गांधी ने कहा कि संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की नैतिक नींव है, जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित है। उन्होंने बताया कि संविधान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सोच और संघर्ष का परिणाम है। 1928 के नेहरू रिपोर्ट से लेकर 1934 में संविधान सभा की मांग तक, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने इसकी नींव रखी, और बाबा साहेब आंबेडकर ने इसे रूप दिया। 'आंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि अगर सामाजिक और आर्थिक न्याय नहीं मिला, तो राजनीतिक लोकतंत्र सिर्फ एक दिखावा बन जाएगा। कांग्रेस ने इसे समझा और उस पर अमल किया, अधिकार बढ़ाए, संस्थाएं मजबूत कीं और सम्मान और समावेशिता को बढ़ावा दिया।'
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