एडीआर का सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा - आधार शामिल न करना बेतुका, मनमाना।

यह कहा गया कि जिन मतदाताओं ने सहायक दस्तावेजों के साथ गणना प्रपत्र जमा नहीं किए और जिनके नाम 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली मसौदा सूची में नहीं हैं,

एडीआर का सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा - आधार शामिल न करना बेतुका, मनमाना।

स्वतंत्र प्रभात।
ब्यूरो प्रयागराज ।
 
 
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर चुनाव आयोग को जवाब देते हुए कहा है कि बिहार में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया में आधार और राशन कार्ड जैसे व्यापक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों को स्वीकार न करने का चुनाव आयोग का फैसला "बेतुका" और "मनमाना" है।
 
प्रतिउत्तर के अनुसार, एड़ीआर  का दावा है कि वोटिंग लिस्ट को अपडेट करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मतदाताओं के गणना प्रपत्र, निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (इआरओ) द्वारा मतदाताओं की सहमति के बिना बड़े पैमाने पर अपलोड किए जा रहे हैं। एडीआर ने कहा कि यह प्रक्रिया लाखों वोटरों, विशेष रूप से गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों, जैसे मुसलमानों, दलितों और प्रवासी मजदूरों, के मताधिकार को छीन सकती है।
 
एडीआर ने अपनी याचिका में कहा कि चुनाव आयोग  ने आधार और राशन कार्ड को स्वीकार न करने का कोई ठोस कारण नहीं दिया है, जबकि ये दस्तावेज बिहार में सबसे आम पहचान पत्र हैं। याचिका में तर्क दिया गया कि आधार, जिसे स्थायी निवास प्रमाणपत्र, ओबीसी/एससी/एसटी प्रमाणपत्र और पासपोर्ट प्राप्त करने के लिए स्वीकार किया जाता है, को एसआईआर में शामिल न करना "निराधार" है। 
 
एडीआर ने यह भी बताया कि चुनाव आयोग  द्वारा स्वीकृत 11 दस्तावेज, जैसे पासपोर्ट, जन्म प्रमाणपत्र और मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, भी जाली दस्तावेजों के आधार पर बनाए जा सकते हैं। फिर आधार को क्यों खारिज किया गया?
 
यह कहा गया कि जिन मतदाताओं ने सहायक दस्तावेजों के साथ गणना प्रपत्र जमा नहीं किए और जिनके नाम 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली मसौदा सूची में नहीं हैं, उन्हें सूची से हटा दिया जाएगा, जब तक कि वे शामिल करने का दावा दायर नहीं करते।
 
शामिल करने का दावा दायर होने के बाद यदि इआरओ को किसी मतदाता की पात्रता के बारे में कोई संदेह है तो वह स्वतः संज्ञान लेकर जाँच शुरू कर सकता है और नोटिस जारी कर सकता है कि मतदाता का नाम क्यों न हटा दिया जाए। इआरओ के निर्णय के विरुद्ध जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के अंतर्गत धारा 24(क) के अंतर्गत जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष या धारा 24(ख) (द्वितीय अपील) के अंतर्गत मुख्य निर्वाचन अधिकारी के समक्ष अपील दायर की जा सकती है। 
 
एडीआर का तर्क है कि एक ही इआरओ को "3 लाख से अधिक व्यक्तियों" के गणना प्रपत्रों को संभालने का काम सौंपा गया, जिससे उनके लिए उचित परिश्रम करना या प्रक्रिया का उचित संचालन करना मानवीय रूप से असंभव हो गया। इसके अलावा, उनका आरोप है कि पूरी व्यवस्था अव्यावहारिक है, क्योंकि यह प्रभावित मतदाताओं को मतदाता सूची को अंतिम रूप देने से पहले उनकी अपीलों पर निर्णय लेने के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने में विफल रहती है।
 
एडीआर ने चेतावनी दी कि बिहार के करीब 3 करोड़  वोटर, विशेष रूप से वे जो 2003 की सूची में नहीं हैं या जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं हैं, मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। बिहार में केवल 2.5% लोगों के पास पासपोर्ट और 14% के पास मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट हैं। ऐसे में एसआईआर की प्रक्रिया गरीबों और कमजोर वर्गों के लिए "खतरनाक" साबित हो सकती है।
 
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को एसआईआर प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया, लेकिन चुनाव आयोग से आधार, राशन कार्ड और इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड (वोटर कार्ड) को स्वीकार करने पर विचार करने को कहा। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की पीठ ने टिप्पणी की कि यह मामला "लोकतंत्र की जड़ों" से जुड़ा है और वोट का अधिकार महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने चुनाव आयोग  से पूछा कि आखिर इतने कम समय में यह प्रक्रिया क्यों शुरू की गई, जब बिहार विधानसभा चुनाव नवंबर 2025 में होने हैं। अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। चुनाव आयोग अदालत के सवालों पर स्पष्ट बात नहीं कर रहा है।

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