संस्कार विहीन शिक्षा निरर्थक एवं संवेदनहीन।
On
किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा जितनी आवश्यक है उतनें ही आवश्यक संस्कार तथा संस्कृति भी हैl देश की आने वाली पीढ़ी को केवल शिक्षित करने तक ही सीमित नहीं रखना होगा उन्हें भारतीय संस्कार,संस्कृत की शिक्षा से भी अवगत कराना होगा अन्यथा विदेशी शिक्षा की तरह नौजवान शिक्षित तो होगा किंतु भावना हीन होकर एक निरंकुश नौकरशाह बनकर रह जाएगा।
भावनाओं के बगैर संवेदनाओं के बगैर जीवन अधूरा एवं असंतुष्ट होता है। और इसके लिए शिक्षा एवं संस्कार के अंतर के महत्व को समझना होगा यह तो सर्वविदित है कि केवल संस्कारों से ही जीवन यापन नहीं किया जा सकता इसी तरह केवल संस्कार विहीन शिक्षा से इंसान अच्छा एवं संवेदनशील परिपक्व एवं सफल व्यक्तित्व नहीं बन पाता है।
स्कूल महाविद्यालय और विश्वविद्यालय हर वर्ष लाखों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट बेरोजगार बनाने के लिए डिग्रियां वितरित कर रही है,जबकि आवश्यकता मूल रूप से बुनियादी शिक्षा में व्यवसायीकरण की है, बुनियादी शिक्षा से ही ऐसे पाठ्यक्रम शामिल किए जाएं जो परिणाम मूलक हो और युवाओं को रोजगार देने हेतु सक्षम हो। स्कूल के सिलेबस में ही व्यावसायिक शिक्षा को महत्व दिया जाना चाहिए जिससे आगे चलकर युवा अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करें बल्कि अपने कई साथी बेरोजगारों को रोजगार देने में पूरी तरह सक्षम बने।
बुनियादी, नैतिक शिक्षा किसी भी व्यक्ति समाज और राष्ट्र के नैतिक तथा आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैl शिक्षित सुसंस्कृत नागरिक देश की एक बड़ी धरोहर होते हैं lजिस राष्ट्र में शिक्षा,संस्कृति जितनी गहरी और समृद्ध हो वह राष्ट्र उतना ही विकसित,पुष्पित, पल्लवित होता है।
इसके साथ आर्थिक वैज्ञानिक सोच भी अत्यंत विचारणीय है।हर देश में राष्ट्र के प्रति और राष्ट्रहित के प्रति चिंतन करने वालों का समूह होना चाहिए,जो प्रजातांत्रिक, लोकतांत्रिक तथा राष्ट्रहित के विचारों और विकास के मूल मंत्र को नई ऊर्जा ताजा हवा और आगे बढ़ने की सच्चाई को इंगित कर सकेंl बिना संस्कृति ,संस्कार और वैचारिक क्षमता के कोई भी राष्ट्र वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय प्रगति करने की सोच भी नहीं सकताl वैचारिक और सैद्धांतिक अंतरधारा, सिद्धांतों को कुचला या नष्ट नहीं किया जा सकता। व्यक्तिगत वैचारिक अभिव्यक्ति भारत के संदर्भ में गणतंत्र की मूल आत्मा है।
विचार और सिद्धांत व्यक्ति की अंतःप्रज्ञा होती है। यह सिद्धांत तथा अंतः विचारधारा जनमानस तक पहुंचने से बाधित किया जाए तो अंतरात्मा को प्रभावित करती है। इसके गहरे प्रभाव से व्यक्ति वह सब कर सकता है, जो बिना मार्गदर्शन के व्यक्ति नहीं कर सकता। प्राचीन काल से अब तक मनीषियों के वैचारिक सिद्धांत और विचारधारा सदैव समाज के दिग्दर्शक मार्गदर्शक रहे हैं। इनकी भूमिका सदैव महत्वपूर्ण रही है।यदि यही सिद्धांत और अंतः प्रज्ञा जनमानस आत्मसात कर लेता है, तो इसका प्रभाव एक जन आंदोलन का रूप ले लेता है और यहीं से युग परिवर्तन की लहर उत्पादित होती है।
प्राचीन यूनान में एक बहुत ही कुरूप किंतु विद्वान व्यक्ति रहते थे,उनके विचारों में मौलिकता,नयापन जनजागृति की अद्भुत क्षमता थी। उनकी विद्वता के कारण आम जनमानस होने राजा से ज्यादा महत्व और बुद्धिमान मानते थे। राजकीय तानाशाही के चलते उनके विचारों के कारण उनको मृत्युदंड दे दिया गया। जहर का प्याला पीने के बाद भी विद्वान, चिंतक, सुकरात अमर हो गए, उनकी विचारधारा आज भी जीवित है, एवं लोग उसे अपनाकर अपना जीवन सुधारने में इसका उपयोग करते हैं।
अब्राहम लिंकन ने अमेरिकी स्वतंत्रता के बाद दास प्रथा के बारे में कहा था कि दास भी मनुष्य हैं, उन्हें भी उतना ही जीने का अधिकार है जितना स्वामी को है। अब्राहम लिंकन के आंदोलनकारी विचार से तत्कालीन समय में अमेरिका के लोग घबरा गए थे,और उनकी हत्या कर दी गई थी। पर अब्राहम लिंकन के विचारों ने दास प्रथा के उन्मूलन की अंतर आत्मा को जागृत कर दिया था, और जनमानस ने अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए दास प्रथा से मुक्ति पाई थी।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि हम जो सोचते हैं वही बन जाते हैं। विचार एवं सिद्धांत ही व्यक्ति का निर्माण करता है। वही दुष्ट होने या महान होने का निर्णायक है। और बिना विचारों सिद्धांतों के व्यक्त व्यक्ति का अस्तित्व ही नहीं । विवेकानंद जी के विचार सर्व कालीन प्रासंगिक है। उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके जीवित रहते हुए थे। आज हमारे बीच विवेकानंद जी स शरीर मौजूद नहीं है, पर उनके विचारों की महत्ता कायम है।
भौतिक शरीर के नष्ट हो जाने से और भौतिक विचार तथा सिद्धांत उतनी ही तीव्रता रखते हैं, वेग रखते हैं, जो एक समाज में परिवर्तन ला सकती है ।विचारों की यह अमरता तथा तीव्रता किसी भी तानाशाह के लिए इतनी खतरनाक है, जितनी की सुप्त शेर की गुफा में रहना। जनता के मध्य शुद्ध विचारधारा के जागृत होने पर क्रांति लाई जा सकती है। फिर चाहे वह फ्रांस के वर्साय के महल का विध्वंस हो अथवा भारत की स्वतंत्रता हेतु वृहद आंदोलन हो। व्यक्ति या व्यक्तियों के दबाव को दबाने के बाद विचारों की पीड़िता ने जनसामान्य को एक गरजते हुए सिंह में तब्दील कर दिया था।
यह शाश्वत सत्य है कि व्यक्ति को जरूर आप दबा सकते हैं,पर विचारधारा सिद्धांत अजर अमर होते हैं,और वही युग निर्माण में अपनी महती भूमिका निभाते हैं।विचारों के संदर्भ में कहा जाता है कि एक व्यक्ति का विचार तब तक उस व्यक्ति के पास है, जब तक वह अकेला है किंतु जैसे ही विचारधारा एवं सिद्धांत का प्रचार प्रसार होता है, तो वह व्यक्ति अकेला ना रह कर उस जैसे हजारों लाखों लोग उसके साथ हो जाते हैं। तब वह अकेला नहीं रह जाता। वह अपने विचारों के माध्यम से जन सामान्य को प्रभावित कर लोगों को उस लड़ाई में शामिल कर लेता है, जिस लड़ाई के वह कभी अकेले नहीं लड़ सकता था।
विचारों सिद्धांतों की तीव्रता आवेश तथा सघनता किसी भी क्रांतिकारी लक्ष्य की प्राप्ति में एक बड़ा साधक हो सकता है। विचार व सिद्धांत एक से दूसरे व्यक्ति तक स्थानांतरित होते रहते हैं। जिसमें विचारों को सघनता प्राप्त होती है। ताकि सत्ता के दमन के समय वैचारिक अमरता स्थाई बनी रहे। चीन उत्तर कोरिया जैसे राष्ट्रों में विचारों के इस स्वतंत्र का प्रवाह को बाधित नियंत्रित कर दिया गया। अभिव्यक्ति के तमाम माध्यमों को प्रतिबंधित कर दमन चक्र चलाया गया। वहां विचार और सिद्धांत विद्वान व्यक्ति तक ही सीमित रहे उसका फैलाव या विस्तार नहीं हो पाया। जो मानव समाज तथा मानव अधिकारों की संवेदना तथा धाराओं का उल्लंघन भी है।
किसी स्वस्थ स्वतंत्र राष्ट्र के लिए व्यक्ति समाज और राष्ट्र के विचारों की स्वतंत्रता नवीनता तथा उत्कृष्टता अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि विचारधारा और सिद्धांतों को रोक पाना किसी भी सत्ता या निरंकुश राजा के नियंत्रण में नहीं होता। विचारों और सिद्धांत अनादि काल से गतिशील है तथा अनंत तक जगत तक गतिशील रहेंगे,और उसका प्रतिपादक एवं अनुशीलन कर्ता विचारों के साथ अमर हो जाते हैं।
About The Author
स्वतंत्र प्रभात मीडिया परिवार को आपके सहयोग की आवश्यकता है ।
राष्ट्रीय हिंदी दैनिक स्वतंत्र प्रभात ऑनलाइन अख़बार
15 Dec 2025
15 Dec 2025
15 Dec 2025
Post Comment
आपका शहर
15 Dec 2025 22:00:19
Gold Silver Price: सोने–चांदी के दामों में आज 15 दिसंबर 2025, यानी सप्ताह के पहले दिन सोमवार को मामूली गिरावट...
अंतर्राष्ट्रीय
28 Nov 2025 18:35:50
International Desk तिब्बती बौद्ध समुदाय की स्वतंत्रता और दलाई लामा के उत्तराधिकार पर चीन के कथित हस्तक्षेप के बढ़ते विवाद...

Comment List