बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- आप किसी का घर कैसे गिरा सकते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 सितंबर) को अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने की मंशा जाहिर की, जिससे इस चिंता को दूर किया जा सके कि कई राज्यों में अधिकारी दंडात्मक कार्रवाई के तौर पर अपराध के आरोपी व्यक्तियों के घरों को गिराने का सहारा ले रहे हैं।

बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- आप किसी का घर कैसे गिरा सकते हैं?

प्रस्ताव सीनियर एडवोकेट नचिकेता जोशी को सौंपे जाने हैं जिन्हें उन्हें एकत्रित करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया है।पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करते हुए कहा,"हमें इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।"

ब्यूरो स्वतंत्र प्रभात।

विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्या कोई किसी का भी घर सिर्फ इसलिए तबाह कर सकता है, क्योंकि वह आरोपी है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आरोपी दोषी भी पाया जाता है तो उसका घर बिना तय कानून के तबाह नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 सितंबर) को अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने की मंशा जाहिर की, जिससे इस चिंता को दूर किया जा सके कि कई राज्यों में अधिकारी दंडात्मक कार्रवाई के तौर पर अपराध के आरोपी व्यक्तियों के घरों को गिराने का सहारा ले रहे हैं।जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने विभिन्न राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पक्षों से मसौदा सुझाव प्रस्तुत करने को कहा, जिन पर अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए न्यायालय द्वारा विचार किया जा सके।

जस्टिस बीआर गवई ने कहा, 'सिर्फ इसलिए घर कैसे गिराया जा सकता है कि वह आरोपी है? अगर वह दोषी है तो भी घर नहीं गिराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को बताने के बाद भी...हमें रवैये में कोई बदलाव नहीं दिख रहा।' याचिका पर सुनवाई कर रही पीठ में शामिल जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि 'किसी को भी कमियों का फायदा नहीं उठाना चाहिए। पिता का बेटा अड़ियल या आज्ञा मानने वाला हो सकता है, लेकिन अगर इस आधार पर घर गिराया जाता है, तो यह तरीका नहीं है।'

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सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि कानून का उल्लंघन होने पर घरों को गिराया जा रहा है। उन्होंने कहा, 'हम तभी कार्रवाई करते हैं जब कानून का उल्लंघन होता है।' इसके जवाब में पीठ ने कहा, 'लेकिन शिकायतों को देखते हुए, हमें लगता है कि उल्लंघन हुआ है।' न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने पूरे राज्य में अनधिकृत इमारतों को ध्वस्त करने के लिए एक दिशानिर्देश की आवश्यकता पर भी गौर किया। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, 'सुझाव आने दीजिए। हम अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी करेंगे'

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह किसी भी अवैध निर्माण को संरक्षण नहीं देगा। हम पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित करने पर विचार कर रहे हैं। मामले की सुनवाई 17 सितंबर को तय की गई। दरअसल, बुलडोजर एक्शन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की।

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प्रस्ताव सीनियर एडवोकेट नचिकेता जोशी को सौंपे जाने हैं जिन्हें उन्हें एकत्रित करके न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने को कहा गया है।पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करते हुए कहा,"हमें इस मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर सुलझाने का प्रयास करना चाहिए।"

जमीयत उलेमा--हिंद की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा कि अप्रैल 2022 में दंगों के तुरंत बाद दिल्ली के जहांगीरपुरी में कई लोगों के घरों को इस आरोप में ध्वस्त कर दिया गया कि उन्होंने दंगे भड़काए थे। सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने उदयपुर के मामले का हवाला दिया, जहां व्यक्ति का घर इसलिए ध्वस्त कर दिया गया, क्योंकि किराएदार के बेटे पर अपराध का आरोप था।

मामले से अलग होने से पहले न्यायालय ने भारतीय महिला राष्ट्रीय महासंघ द्वारा दायर हस्तक्षेप आवेदन को भी अनुमति दे दी। महासंघ का प्रतिनिधित्व एडवोकेट निज़ाम पाशा और रश्मि सिंह कर रहे हैं।

दिल्ली के जहांगीरपूरी में अप्रैल 2022 में निर्धारित विध्वंस अभियान से संबंधित 2022 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाओं का समूह दायर किया गया था। अभियान को अंततः रोक दिया गया था लेकिन याचिकाकर्ताओं ने यह घोषित करने के लिए प्रार्थना की थी कि अधिकारी दंड के रूप में बुलडोजर कार्रवाई का सहारा नहीं ले सकते।इनमें से एक याचिका पूर्व राज्यसभा सांसद और माकपा  नेता वृंदा करात द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अप्रैल में शोभा यात्रा जुलूसों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा के बाद जहांगीरपुरी क्षेत्र में तत्कालीन उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा किए गए विध्वंस को चुनौती दी गई।

सितंबर 2023 में जब मामले की सुनवाई हुई तो सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे (कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए) ने राज्य सरकारों द्वारा अपराध के आरोपी लोगों के घरों को ध्वस्त करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि घर का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है।उन्होंने यह भी आग्रह किया कि न्यायालय को ध्वस्त किए गए घरों के पुनर्निर्माण का आदेश देना चाहिए।

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