ब्रिटिश हुकूमत में गोला थाने पर 1942 में लहरा उठा तिरंगा झंडा
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गोलाबाज़ार गोरखपुर । 1942 में ब्रितानी हुकूमत में अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान गोला थाना पर तिरंगा फहराने वाले पण्डित राम लखन शुक्ल, लोगों की स्मृतियों में तो जीवन्त हैं। लेकिन आजाद भारत में थाने पर शासन- प्रशासन ने उन्हें शुरू से ही बिसार दिया। यही कारण है कि सीने पर पिस्तौल सटी होने के बाद भी अंग्रेजी हुकूमत में जिस गोला थाने पर उन्होंने तिरंगा फहराया, वहां उस ऐतिहासिक घटना का एक स्मृति पट्ट तक नहीं है।
गोला- कौड़ीराम मार्ग पर गोला से चार किमी उत्तर स्थित ग्राम ककरही में एक जमींदार परिवार में जन्मे पण्डित राम लखन शुक्ल जब इण्टर द्वितीय वर्ष के छात्र थे, तभी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। उन दिनों राष्ट्रीय चेतना का केन्द्र बिन्दु गोला थाना क्षेत्र का खोपापार गांव हुआ करता था। पण्डित राम लखन शुक्ल खोपापार राष्ट्रीय विद्यालय में अध्यापक नियुक्त हो गए। 1939 में इसी विद्यालय के प्रधानाचार्य बना दिए गए। 1940 में मित्र स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय केशभान राय द्वारा ककरही में स्थापित आनन्द विद्या पीठ इण्टर कॉलेज में अध्यापन करने लगे।
6 अप्रैल- 1941 में कांग्रेस की डिस्ट्रिक्ट कमेटी से आज्ञा लेकर राम लखन शुक्ल, रामबचन त्रिपाठी और सीताराम नायक ने विद्यालय के पीछे बागीचे में सत्याग्रह शुरू कर दिया। तीनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। तीनों वीर सपूतों को एक-एक वर्ष का सश्रम कारावास और 100 रुपए का जुर्माना सुनाया गया।
सीने पर पिस्तौल की नाल सटी होने पर भी नहीं डरे और थाने पर फहरा दिया तिरंगा।
गोला के थानेदार नुरुल होदा ने श्री शुक्ल, उनके साथियों रामबचन त्रिपाठी और सीताराम नायक के सीने पर पिस्तौल तान दिया। उन्होंने सीने पर पिस्तौल की नाल सटी होने के बाद भी जान की परवाह किए बिना थाने पर तिरंगा पहरा दिया। वह गिरफ्तार कर लिए गए। सभी के पैतृक निवास अंग्रेजों ने जला दिया। माता-पिता को यातनाएं दी गई। तीनों 1944-45 में रिहा कर दिए गए।
आजाद भारत में शुरू हुआ राजनैतिक सफर,1960 में बने गोला के प्रमुख
आजाद भारत में पण्डित रामलखन शुक्ल का राजनैतिक सफर शुरू हुआ लेकिन ओहदे से राजनीति की शुरुआत 1960 में गोला के प्रमुख चुने जाने से हुई। 1962-67 तक भौवापार विधान सभा के विधायक रहे। विधान सभा का नाम बदला तो कौड़ीराम विधान सभा से 1969- 74 तक कौड़ीराम के विधायक रहे। इस बीच तत्कालीन प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी ने उन्हें नैनीताल में 18 एकड़ भूमि दीं। इसे उन्होंने सरकार को दान कर दिया। 19 नवम्बर-1974 को इस वीर सपूत का देहावसान हो गया।
दर्द होता है उपेक्षा से, थाने पर नहीं है ऐतिहासिक क्षण की कोई स्मृति
देश को आजाद कराने के लिए कई बार जेल यात्रा करने वाले इस वीर सपूत की याद लोगों के दिलों में तो है लेकिन गोला थाना पर उनके द्वारा फहराए गए तिरंगे के ऐतिहासिक क्षण का गवाह कुछ नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की यह अनदेखी उनके परिवारीजनों को तो पीड़ा पहुंचाती ही है, क्षेत्र के लोग भी हुक्मरानों और राजनीतिकों की इस उपेक्षा से मर्माहत हैं।
पण्डित रामलखन शुक्ल के तीन पुत्र हुए। इनमें से एक चन्द्रशेखर शुक्ल धुरियापार के विधायक चुने गए। अब वह नहीं हैं। स्व चन्द्रशेखर शुक्ल के बड़े पुत्र सरोज रंजन शुक्ल आनन्द विद्यापीठ इण्टर कॉलेज- ककरही में प्रवक्ता हैं। कॉलेज के गेट के दाहिने तरफ प्रदेश के तत्कालीन काबीना मंत्री स्व मार्कण्डेय चन्द ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रामलखन शुक्ल व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी केशभान राय की आदम कद प्रतिमा स्थापित कराई है।
प्रतिमा स्थापित करने की मांग वर्षो बाद भी अधूरी
>स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित रामलखन शुक्ल के पौत्र सरोज रंजन शुक्ल बताते हैं कि नौसढ़ चौराहे पर पण्डित रामलखन शुक्ल की प्रतिमा स्थापित कराने के लिए 6 अगस्त- 2010 को शासन को पत्र भेजा था लेकिन अनदेखी कर दी गई।
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