संजीव-नी।।
ईर्ष्या से कभी स्नेह का रिश्ता नही बनता ,
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ईर्ष्या से कभी स्नेह का रिश्ता नही बनता ,
ईर्ष्या से कभी स्नेह का रिश्ता नही बनता ,
लोभ से कभी सच्चा रिश्ता नही बनता।
जहां राग, द्वेष और दुश्मनी व्याप्त हो,
ऐसे में कोई निस्वार्थ रास्ता नही बनता।
कौन किसी का दुखड़ा सुनता है यहां,
ऐसे में किसी से किसी का वास्ता नही बनता।
शौहाद्र, आत्मा से कहाँ मिलता कोई,
दिलों से दिल का रिश्ता नहीं मिलता।
आज हर तरफ सन्नाटा,अकेलापन है,
भाई से भाई का आत्मीय रिश्ता नही बनता।
प्यार,आत्मीयता अब हवा हो गई ,
मधुर वाणी वाला वक्ता नही मिलता।
औपचारिक,छद्म रिश्ते बच गए अब,
दिलों से दिल का कोई वास्ता नही रखता।
प्यार,नाते, रिश्ते वाष्पित हो गए सब।
त्याग सा शब्द अब सस्ता नहीं मिलता।
बुजुर्ग तरसता सुनने बच्चों की किलकारियां,
मृत्यु तो अटल है,जिंदगी सा रास्ता नही मिलता।
संजीव ठाकुर,
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