झुकेगी या तनेगी सरकार चलाने के लिए भाजपा?

झुकेगी या तनेगी सरकार चलाने के लिए भाजपा?

04 जून को जैसे ही लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आने आरंभ हुए वैसे ही यह तस्वीर साफ होने लगी था कि इस बार देश में गठबंधन की सरकार बनेगी। शाम होते होते भाजपाई नारा 400 पार हवा हो चुका था। भाजपा 241 पर आ कर रूक गई। कांग्रेस ने इन चुनावों में बेशक 99 सीटे ही जीती पर यह जीत उसके लिए संजीवनी बूटी की तरह थी। पिछले दो लोकसभा चुनावों से खत्म होती दिख रही कांग्रेस के लिए शतक से एक सीट कम भी जैकपोट की तरह थी। सभी सीटों के नतीजे आने के बाद भाजपा के लिए दो खबरे थी एक अच्छी और दूसरी बुरी, बुरी खबर यह थी की भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल नही कर पाई थी परन्तु दूसरी तरफ अच्छी खबर यह थी कि भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर 294 सीटे हासिल करने में कामयाब रहा था।
 
जिससे एक बात तो लगभग तय हो चुकी थी की देश की कमान लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में ही रहने वाली है और हुआ भी ऐसा ही गठबंधन के आंकड़े के दम पर एनडीए की ओर से एक बार फिर नरेंद्र मोदी ने 9 जून को बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले ली। मोदी मंत्रिमंडल भी पूरी तरह तैयार हो चुका है, विभागों का बंटवारा भी कर दिया गया है। एक बार देखने में तो यह लग रहा है कि पांच साल देश की सत्ता संभालने के लिए मोदी सरकार पूरी तरह तैयार है लेकिन जितना आसान यह इस समय लग रहा है चुनौतियां उससे कही ज्यादा है। देश पहले भी एक लम्बा दौर गठबंधन सरकारों का देख चुका है। गठबंधन सरकार में किसी एक दल के मनमर्जी नही चलती।ऐसे में कई चुनौतियों का सरकार के सामने आना निश्चित है।
 
फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है अपने कुनबे को जोड़कर एकजुट रखना। जो सरकार किसी जमाने में खुद को सब से मजबूत बताती थी अब उसे गठबंधन का धर्म निभाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। कोई भी दल अपना हाथ पीछे खींचेगा, सीधे-सीधे सरकार पर खतरा मंडराने लगेगा। ऐसे में किस तरह से सभी दलों को खुश रखकर देश के विकास को प्राथमिकता दी जाए, इसकी एक योजना तैयार करनी पड़ेगी। मोदी सरकार के लिए नितीश की जदयू और चंद्रबाबू की टीडीपी को साथ जोडे रखना सबसे बडी चुनौती साबित होने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी के किसी समय अगर दो सबसे बड़े विरोधी थे तो वे चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ही थे।
 
नितीश कुमार ने 2013 में एनडीए से 17 साल पुराना साथ भाजपा के मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कारने के कारण ही छोड़ा था। वो बात अलग है 2017 में नितीश बिहार में सरकार बनाने की मजबूरी के कारण एनडीए में लौट आए थे। इसके बाद भी वो एनडीए से बाहर और अंदर होते रहे। गौरतलब है कि इन चुनावों में मोदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बना आईएनडीआईए गठबंधन के गठन की शुरुआत भी नितीश कुमार ने ही की थी। वहीं यदि चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी की बात करें तो 2018 तक टीडीपी एनडीए का हिस्सा थी। एनडीए से अलग होने के बाद नायडू की टीडीपी ने मार्च 2018 में मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी पेश किया था पर ये प्रस्ताव गिर गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी और नायडू के बीच कई बार तीखी बयानबाजी भी हुई थी।
 
गठबंधन से अलग होने के कारए मोदी ने नायडू को यूटर्न बाबू कहा था। नायडू गुजरात दंगो के बाद से ही मोदी विरोधी रहे हैं। 2002 के गुजरात दंगों के बाद नायडू उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने सबसे पहले तत्कालीन गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगा था। । इन सबके ऊपर वर्तमान में भी दोनों दलों की ऐसी विचारधारा है जो कई मुद्दों को लेकर एक दूसरे से विपरीत बैठती है। नितीश के जदयू केंद्र में बीजेपी को समर्थन देने के साथ-साथ कुछ मुद्दों पर असहमति भरे स्वर दिखा जिसने बीजेपी की चिंता बढ़ाने की शुरुआत कर दी है। जदयू के वरिष्ठ नेता के.सी. त्यागी ने एक बयान में अग्निवीर योजना को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं जिसने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी।
 
दरअसल ये कोई पहला मौका नहीं है जब जदयू के एनडीए में रहने के बावजूद बीजेपी के कई मुद्दों पर असहमति जताई हो। इससे पहले भी कई ऐसे मुद्दे रहे हैं जब जेडीयू अपनी आवाज उठाता रहा है। अग्निवीर योजना  कितना अहम मुद्दा है यह इस बात से ही पता लग जाता कि इस बार के लोकसभा चुनाव सभी विरोधी दलों ने अग्निवीर योजना के विरोध में लड़ा था और लोकसभा के चुनाव परिणामों में विपक्ष को अच्छी सफलता भी मिली है। ऐसे में कहा जा रहा है कि जमीन पर इस योजना को लेकर काफी विरोध रहा है और इसी कारण बीजेपी का प्रदर्शन पहले से खराब हुआ है। अब इस मुद्दे को जदयू उठा रहा है। जदयू के लिए जातिगत जनगणा भी मुख्य मुद्दा है परन्तु भाजपा शुरू से इसके खिलाफ है। इनके अलावा सीएए और विशेष राज्य का दर्जा भी दोनो के बीच भविष्य में विरोध के मुख्य कारण बन सकते हैं।
 
जदयू से ज्यादा दिक्कत भाजपा को टीडीपी के साथ आ सकती है। टीडीपी  ने ताजा मांग एनडीए के संयोजक के पद के लिए की है। जिसने भाजपा में खलबली मचा रखी है। दोनो के बीच जो मुद्दा सबसे ज्यादा टक्कराव की स्थिति पैदा कर सकता है वो है मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनावों के कैंपेन के दौरान जिस तरह मुस्लिम आरक्षण को दलितों और ओबीसी के कोटे पर डाका बता रहे थे उसी दौरान तेलुगुदेशम पार्टी ने स्पष्ट कर दिया था कि वो राज्य में सरकार बनने पर मुस्लिम वर्गो को मिल रहे 4 प्रतिशत आरक्षण को खत्म नहीं करेगी। यही नहीं तेलुगुदेशम पार्टी ने मुस्लमानों के कल्याण के लिए और भी कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने का वादा किया है।
 
मुस्लिम को 5 लाख तक का लोन बिना गारंटी के देने का वायदा तेलुगदेशम पार्टी ने चुनावी घोषणा पत्र में किया है। चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए सरकार में शामिल होने की घोषणा के साथ अपनी बात को एक बार फिर दुहराया कि मुस्लिम जनता को मिल रहे 4 प्रतिशत आरक्षण को तेलुगुदेशम सरकार खत्म नहीं करेगी। टीडीपी एनडीए गठबंधन में सीटों के मामले में भाजपा के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। बेशक राज्य में सरकार बनाने में भी भाजपा उसकी सहयोगी है पर टीडीपी के पास आंध्रप्रदेश व‍िधानसभा में इतनी सीटें हैं की वो अकेले दम पर सरकार बना और चला सकती है। इनके अलावा अन्य दलों को भी खुश रखना और एकजुट रखना भाजपा की मजबूरी बनने वाली है। अब देखना होगा की भाजपा 5 साल तक सरकार चलाने के लिए सहयोगी दलों के सामने कितना झुकती है कितना तनती है।
 
(नीरज शर्मा'भरथल')
 

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