प्रकृति और पर्यावरण का सबसे बडा शत्रु स्वयं मानव ,पर्यावरण के प्रति चेतना शून्य।

 (विश्व-पर्यावरण, दिवस 5 जून पर विशेष)

प्रकृति और पर्यावरण का सबसे बडा शत्रु स्वयं मानव ,पर्यावरण के प्रति चेतना शून्य।

अपने विकास की क्रमिक उन्नति में मनुष्य ने जितने भी अविष्कार और विकास के कार्य किए हैं सब के सब प्रकृति एवं पर्यावरण के विरोध में ही रहे हैं। प्लास्टिक तथा पॉलीथिन का अविष्कार मानव तथा जीव जंतुओं के लिए बेहद खतरनाक साबित हुआ है। पॉलीथिन ने मानव तथा जीव जंतुओं को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई है क्योंकि पॉलिथीन एक ऐसा पदार्थ है जो अत्यंत ज्वलनशील होने के साथ-साथ नष्ट ना होने वाला पदार्थ है जो मनुष्य के ।भोजन पकाने हेतु जंगल से लकड़ी काटकर धूंआ पैदा करने का काम भी मनुष्य ने ही किया है। इसी क्रम में सबसे बड़ा नुकसान पर्यावरण को औद्योगिकरण की नीति ने किया है,बड़े बड़े उद्योगों से निकलने वाले वैश्विक स्तर पर प्रदूषित वायु अपशिष्ट पदार्थों के साथ नदियों तथा समुंदर में विषैले अपशिष्ट को छोड़ने से शुद्ध जल विषैला होकर जीव जंतुओं को नष्ट करते आ रहा है। इसके पश्चात प्राकृतिक रूप से भी बाढ़, ज्वालामुखी ने प्रकृति तथा पर्यावरण को नष्ट करने का काम बखूबी किया है, पर मानव जाति ने अपने आराम तथा सुविधा के लिए स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार और परिवहन के लिए ट्रक और डीजल एवं कोयले से चलने वाली लोकोमोटिव ने प्रकृति तथा पर्यावरण को को नष्ट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

इसके अलावा घरों कार्यालयों और कारखानों में लगाए जाने वाले वातानुकूलित यंत्रों से निकलने वाले वायु प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग बहुत तेजी से बढ़ते जा रही है जो मानव जाति के लिए खुद नुकसानदेह है, किंतु मानव ही पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है।शुद्ध वायु, जल मनुष्य तथा पृथ्वी पर निवास कर रहे जीव जंतुओं तथा हमारी वनों से आच्छादित प्यारी धरती के लिए अत्यंत आवश्यक है। पर्यावरण की असुरक्षा से धरती असुरक्षित नदियां ,असुरक्षित और धरती, जलवायु की असुरक्षा होने से जीव जंतु और मानव जाति का जीवन भी असुरक्षित हो जाएगा,।हमें इन परिस्थितियों में पर्यावरण की सुरक्षा को प्राथमिक सुरक्षा मानकर इसकी हर संभव शुद्धता एवं परिष्करण पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा। पर्यावरण से आशय 'पर' यानी मतलब चारों तरफ, और वरण का मतलब ढका हुआ माना गया है।

पर्यावरण विदों के अनुसार पर्यावरण का मतलब उस अवस्था से है जो किसी जंतु, प्रकृति और मनुष्य को चारों ओर से ढक कर उसे अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। हम सदैव पर्यावरण को प्रकृति से जोड़कर ही देखते हैं। इसीलिए मानव जीव जंतु वृक्ष सभी को स्वस्थ जीवन देने के लिए एक परिष्कृत पर्यावरण के वातावरण की निरंतर महत्वपूर्ण उपस्थिति आवश्यक होती है,किंतु जब वायु ,जल तथा प्रकृति में प्राकृतिक अथवा मानवीय अवांछनीय कार्यों से कुछ ऐसे तत्व वातावरण में प्रवेश कर जाते हैं जिससे हमारी प्रकृति, हमारा पर्यावरण प्रदूषित होने लगता है और माननीय जीवन प्रकृति के साथ नष्ट होने की कगार पर खड़ा होने लगा है। प्रगति और वातावरण यानी की पर्यावरण ने हमें सब कुछ दिया है, स्वच्छ हवा से हमें ऊर्जा,स्वच्छ जल और नवजीवन की उत्प्रेरणा प्राप्त होती है।

भोपाल में मिक नामक गैस रिसाव से पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाने से हजारों लोगों की मृत्यु एवं उसके पश्चात शरीर में अनेक बीमारियों को जन्म दिया, जिस की विभीषिका आज भी भोपाल वासी झेल रहे हैं। इसके पश्चात मई 2020 को आंध्र प्रदेश के पॉलीमर कंपनी द्वारा स्टाइलिन नामक गैस का रिसाव हुआ एवं जून में असम गैस रिसाव से मानव जीवन को प्रभावित कर पूरे पर्यावरण को प्रदूषित कर मानव जाति तथा जीव जंतुओं के संपूर्ण जीवन को दांव पर लगा दिया था। पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो मानव जीवन भी सुरक्षित रह पाएगा। प्रदूषण को हमें सदैव वायु प्रदूषण यानी ज्वालामुखी विस्फोट, जंगल की आग, कोहरा, परागकण, उल्कापात आदि प्राकृतिक स्रोतों से उत्पन्न वायु प्रदूषण से नियंत्रण में रखकर उसका संरक्षण करने का प्रयास करना चाहिए।

मानवीय अवांछित क्रियाकलाप भी प्रकृति तथा वातावरण और पर्यावरण के लिए खतरा बनते जा रहे हैं, जिस तरह वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है मोटर वाहनों का बेतरतीब प्रयोग लकड़ी कोयला तथा अन्य पदार्थों के जलाने से उत्पन्न हुआ बेतहाशा कारखानों का निकलता धूंआ, ताप विद्युत गृह, खनन तथा रासायनिक पदार्थों के साथ आतिशबाजी द्वारा वायु प्रदूषण में बेतहाशा वृद्धि हो गई है। जिससे पर्यावरण अत्यंत असुरक्षित हो गया, इसके अलावा पर्यावरण की सुरक्षा तथा प्रकृति के साथ खिलवाड़ के कारण प्रकृति का तापमान भी अत्यधिक बढ़ गया है, फल स्वरूप जलवायु परिवर्तन की विभीषिका को हम बुरी तरह से झेल रहे हैं। हमें पेट्रोल की जगह गैस फ्यूल का उपयोग कर वातावरण को बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए। वातावरण में उपस्थित अवांछित गैसीय पदार्थों के कारण अंधापन ,त्वचा रोग तथा फेफड़ों की बीमारी से होने वाले दमा रोग में बढ़ोतरी हुई है।

विगत वर्षों में कोविड-19 के संक्रमण में पर्यावरण प्रदूषण के कारण लोगों को फेफड़ों में स्वच्छ ऑक्सीजन नहीं मिलने से लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हुए, यह एक पर्यावरण असंतुलन का सबसे बड़ा उदाहरण है ।रूस यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन में भारी बमबारी तथा गोलीबारी से वातावरण को तहस-नहस कर दिया, वहां कई किलोमीटर क्षेत्र में शहरों में वायु प्रदूषण के कारण हजारों लोग मृत्यु की कगार पर पहुंच गए हैं एवं लाखों लोगों ने वहां से पलायन भी किया, यह सब पर्यावरण प्रदूषण के एकदम ताजा उदाहरण है जो मानवीय जीवन के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे हैं। इसके अलावा प्राकृतिक आपदा भूकंप बाढ़ तथा औद्योगिक कचरे तथा विषाक्त कार्बनिक पदार्थों सहित अन्य उत्पादकों का जल स्रोतों में डाला जाना भी पर्यावरण प्रदूषण के लिए भारी खतरा बन गया है,

इसी तरह बंदरगहों में रिफाइनरी से पेट्रोलियम पदार्थ, तेल युक्त तरल पदार्थ को समुद्रों में बाहर जाना भी समुद्र में रह रहे जीव जंतुओं के लिए ज्यादा खतरनाक साबित हुए हैं। जल प्रदूषण से जल से फैलने वाली बीमारियां जैसे मलेरिया, हैजा, टाइफाइड, डेंगू पीलिया, पेचिश तथा उदर रोगों के लिए अत्यंत हानिकारक माना गया है। अन्य प्रदूषण में मृदा प्रदूषण ध्वनि प्रदूषण आदि वातावरण को प्रदूषित करते पृथ्वी तथा मानव जाति के लिए काल बन चुके हैं। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद पर्यावरण प्रदूषण को कम नहीं किया जा सका है। अंतर्राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार भारत की दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिनी जाने लगी है। और कोविड-19 के संक्रमण के दौरान यहां पर सबसे ज्यादा मौतें पर्यावरण प्रदूषण के कारण भी हुई है।

प्रदूषित वातावरण के कारण बच्चों तथा बुजुर्गों की जिंदगी को सबसे ज्यादा वैज्ञानिकों ने खतरा माना है और ईससे निजात पाने के लिए शुद्ध वातावरण की आवश्यकता पर जोर दिया है। पर्यावरण को सुरक्षित ना रख पाने की दो प्रमुख वजह प्राकृतिक तथा मानव निर्मित प्रदूषण ही हैं। यह तो तय है कि प्रकृति पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है अतः प्राकृतिक प्रदूषण को रोक पाना मानव जाति के लिए थोड़ा कठिन एवं कष्ट साध्य कार्य सोने के अलावा थोड़ा असंभव भी प्रतीत होता है, किंतु मानव जाति द्वारा फैलाए गए प्रदूषण को रोकने के प्रयास में हमें हर संभव मदद करने की आवश्यकता होगी। और यह तो सर्वविदित तथ्य है कि यदि हमें पर्यावरण प्रदूषण को पृथ्वी तथा प्रकृति से हटाना एवं मानव जीवन को सुरक्षित रखना है तो शासकीय प्रयासों के अलावा हर व्यक्ति को वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को सुरक्षित रखने पर जोर देना होगा अन्यथा ओजोन परत के क्षरण के कारण मानव तथा जीव जंतु तथा प्रकृति के प्रति संकट गहराता जाएगा एवं हम पर्यावरण प्रदूषण के सामने हाथ पर हाथ धरे रह जाएंगे।

संजीव ठाकुर,

(वर्ल्ड रिकार्ड धारक लेखक),स्तंभकार, चिंतक, लेखक,

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