निष्पक्ष मीडिया स्वस्थ लोकतंत्र की आवश्यकता
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मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। मीडिया का काम है लोगों की समस्याओ और जनता की आवाज को शासन तक पहुंचाना। जब तक पत्रकार शासक से लोगों के हित में सच्चे और कठोर प्रश्न निर्भीक एवंम निडर होकर पूछता रहता है तब तक शासक पर लोकहित के फैसले लेने का दबाब बना रहता है। मीडिया का निष्पक्ष और तटस्थ होना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए परम आवश्यक है परन्तु यदि आज के दौर के मीडिया की बात करें तो ज्यादातर पत्रकार पत्रकार कम सत्ताधारियों के प्रवक्ता ज्यादा लगने लगे हैं। संविधान का अनुच्छेद 19 वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य के अधिकार की गारंटी देता है और आमतौर पर यह सतारूढ दल के विरुद्ध ही इस्तेमाल होता है। हालाँकि संवैधानिक संरक्षण के बावजूद भारत में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
जिनमें राजनेताओं या अन्य द्वारा दिखाए जाना वाला डर और दिया जाना वाला लालच मुख्य चुनौतियां है। वैसे तो मीडिया का प्रमुख कर्तव्य सत्य, न्याय और समानता की तलाश के साथ लोकतंत्र को आगे बढ़ाना है परन्तु आज मीडिया या कहें पत्रिकारिता देश कल्याण का कार्य नही एक धंधा बनके रह गया है। ज्यादातर बड़े बड़े मीडिया हाउसिस को सतारूढ दलों से लाभ मिलता है तो वे भी उनके पक्ष की बात कर नमक का हक अदा करने में पीछे नही रहते। आज आप समाचार चैनलों पर होती अलग अलग दलों के प्रवक्ताओं की बहस सुनों तो उसमें प्रोग्राम होस्ट कर रहे पत्रकार जिसे एंकर भी कहते हैं को गोदी मीडिया, दलाल, चाटुकार आदि जैसे शब्दों से अलंकृत करते लोग आम ही दिखाई दे जाएगें। एकंर भी अपने फर्ज और मर्यादा को भूल कर हर तरह की गाली सहन कर गलत या सही का अंतर किए बिना अपने व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धी के लिए किसी राजनीतिक दल की हाथों की कठपुतली बना साफ दिखाई देता रहता है।
सत्तापक्ष के बड़े राजनेता से थोडा सा तीखा सवाल पूछना भी इन पत्रकारों के बूते की बात अब नही रह गई। इन गोदी पत्रकारों की हैसियत क्या है इसका अंदाजा टीवी चैनल आज तक के स्टार पत्रकार एवंम एंकर सुधीर चौधरी की केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की ली एक इंटरव्यू से अच्छे से हो जाता है। इस इंटरव्यू के दौरान पूछे महंगाई पर एक साधारण से सवाल पर स्मृति ईरानी ऐसे भड़की की इंटरव्यू ले रहे सुधीर चौधरी को बेइज्जत करते हुए उन्हे उनकी तिहाड जेल यात्रा याद करवा दी। आज मीडिया पर पूंजीपति और राजनेता किस कदर हावी हैं यह किसी से छुपा नही। आज के डिजिटल युग में तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य से उत्पन्न चुनौतियों से सफलतापूर्वक निपटने के लिये पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग में सटीकता, निष्पक्षता और उत्तरदायित्व के मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता है। एक समाचार चैनल की इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं के प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के पक्ष में न होने के अपने फैसले को सही ठहराते हुए दावा किया था कि मीडिया अब तटस्थ नहीं रहा और पत्रकार अपनी विचारधारा के चश्मे से घटनाओं को देखते हैं।
एक हिंदी समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में मोदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मीडिया का स्वरूप बदल गया है और यह अब वह तटस्थ इकाई नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। शायद यह पहली बार है कि प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर बात की है और इस तरह मीडिया हलकों में बहस छिड़ गई है। बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी मोदी से सहमत हैं लेकिन एक अलग कारण से। उनका मानना है कि मीडिया अब तटस्थ नहीं रहा और यह सत्तारूढ़ दल द्वारा टीवी चैनलों और अखबारों पर की गई अत्यधिक कवरेज से साबित होता है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य ने दो बातों को सीधे तौर पर साबित कर दिया कि मीडिया किसी ना किसी राजनीतिक दल के प्रभाव में काम करता है और दूसरा कि चाहे कोई कितना बड़ा नेता क्यों ना हो वो भी एक निष्पक्ष पत्रकार के सवालों से वो डरता है।
यह वक्तव्य पूरी तरह मीडिया की ताकत को दर्शाता है। हाल ही के दिनों मे मेनस्ट्रीम मीडिया के पक्षपात नीति के कारण ही सोशल मीडिया पर कई समाचार चैनलों का उदय हुआ है। जनता देश में क्या चल रहा है वो देखना और सुनना चाहती है पर मेनस्ट्रीम मीडिया चैनल उन्हें वो दिखाते और सुनाते चाहते हैं जो उनसे जुडे राजनीतिक दल चाहते हैं। कई प्रमुख पत्रकार और एंकर हैं जो अब विभिन्न टीवी चैनलों के साथ काम नहीं कर रहे हैं। उन्होंने अपने खुद के यूट्यूब चैनल खोल लिए हैं और उनके कार्यक्रम जनता में लोकप्रिय भी हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि वे हवा-हवाई मुद्दे नही जनता के मुद्दों की बात करते हैं। मेनस्ट्रीम मीडिया आज आम लोगों का विश्वास पूरी तरह खो चुका है। उनका व्यवहार एक उपासक का हो गया है। जिनका धर्म मात्र अपने भगवान का बचाव करना है।
चाहे किसान आंदोलन की बात करो, चाहे मणिपुर की बात करो, चाहे पहलवान बेटियों का मुद्दा हो या फिर नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए 2000 के नोट में चिप डालने का मामला हो या अन्य ऐसे बहुत से मामले हैं जहां मेनस्ट्रीम पूरी तरह सरकार की गोद में बैठी दिखाई दी। मीडिया को विपक्ष की आवाज कहा जाता है परन्तु इन खबरों की मण्डी में मीडिया हाउस या मीडिया कर्मी अब सरकारी भोंपू बन कर रह गया है। आम जनता से जुड़े मुद्दे उठाना आज के दिनों में मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए पाप हो गया है। यह सामाजिक व्यवस्था में बहुत अधिक प्रभाव डालता हुआ देखा गया है। यह एकता, शांति और विकास को बिगाड़ते दिखता रहा है साथ ही यह समाज में गंभीर सुरक्षा खतरा, संघर्ष, संकट और अन्य अवांछनीय स्थिति पैदा कर देता है। यह बताता है कि क्यों कुछ संचार विद्वान पत्रकारिता या जनसंचार को एक दोधारी तलवार के रूप में देखते हैं, जिसमें सामाजिक व्यवस्था को बनाने या नष्ट करने की क्षमता होती है।
मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और लोगों को जागरूक करने के लिए हो रही घटनाओं को प्रकाश में लाना उनका कर्तव्य है। मीडिया मुख्य कर्तव्य लोगों तक सही खबरों को पहुंचाना है ना कि उन खबरों पर अपने फैसले देना। जागरूकता फैलाना मीडिया के कामकाज का एक हिस्सा है। हालांकि हम जिस ध्रुवीकृत समाज में रह रहे हैं, उसमें विभिन्न वर्गों के बीच मतभेद तीखे हो गए हैं और इस प्रकार मीडिया स्पष्ट रूप से द्वंद में फंस गया है। यह राजनीतिक वर्ग के साथ-साथ मीडिया में शामिल लोगों की भी जिम्मेदारी है कि वे तटस्थता बनाए रखें और किसी एक विचारधारा से प्रभावित न हों। बुनियादी जरूरत यह है कि निष्पक्षता, सच्चाई और सटीकता पर जोर दिया जाना चाहिए।
(नीरज शर्मा'भरथल')
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