कितने सटीक होंगे एक्जिट पोल सर्वे
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लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण समाप्त हो गया। हर पार्टी के अपने अपने दावे हैं। भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि अबकी बार चार सौ पार जबकि इंडिया गठबंधन का कहना है कि वह कम से कम 350 सीटें जीतेंगे। खैर यह तो राजनीति है सबके अपने अलग-अलग दावे होते हैं लेकिन चुनाव संपन्न होते ही सबकी निगाहें एक्जिट पोल पर लग जातीं हैं। यह ट्रेंड इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने के बाद ही आया है। और लोग इसको जानने के लिए बहुत ही उत्साहित रहते हैं। जहां तक एक्जिट पोल का सवाल है तो यह उनकी अपनी तकनीक है कि वह किस तरह आंकड़े निकालते हैं और जनता के सामने रखते हैं। और पूरा देश उन आंकड़ों पर विश्वास करता है शिवाय उनके जिनको एक्जिट पोल पीछे दिखाता है। लेकिन यह सच है कि हम एक अनुमान तो लगा सकते हैं लेकिन डेढ़ अरब की आबादी में से 25-30 हजार सेंपल लेकर कैसे निर्णय निकाल सकते हैं। कहीं कहीं कोई एक्जिट पोल परिणाम के करीब तक पहुंच भी जाता है लेकिन ज्यादातर फेल ही होते हैं। दरअसल यह एक टीवी शो है जिसमें सभी अपनी राय रखते हैं। और जनता भी इतने लंबे चरण के चुनाव के बाद उत्सुक रहती है कि आखिरकार परिणाम क्या होगा। इस प्रोग्राम से टीवी चैनलों को टीआरपी भी अच्छी खासी मिलती है। इस बार मतदाता इतना शांत है कि उसके मन की बात बाहर निकाल पाना बहुत कठिन है। लेकिन अनुमान तो कोई भी लगा सकता है फिर वह चाहे सच निकले या झूठ।
शुरुआती दौर में एक्जिट पोल चुनाव शुरू होते ही शुरू कर दिए जाते थे और एक्जिट पोल वाले यह दिखाना शुरू कर देते थे कि कौन आगे चल रहा है और कौन पीछे और इससे चुनाव प्रभावित होने लगे थे। कई राजनीतिक दलों ने इसकी शिक़ायत चुनाव आयोग से की और तब चुनाव आयोग ने यह माना कि हां इससे चुनाव प्रभावित होता है क्योंकि भारत जैसी देश में आज भी 25 प्रतिशत जनता ऐसी है जो जीतने वाले को ही वोट देना चाहती है। क्यों कि उसके मन में यह धारणा होती है कि यदि हमने उस प्रत्याशी को वोट दे दिया जो हार रहा है तो हमारा वोट बेकार हो जाएगा। चुनाव आयोग जागा और एक्जिट पोल पर रोक लगा दी। लेकिन बाद में कुछ नर्मी बरतते हुए यह आदेश निकला के ठीक है आप एक्जिट पोल दिखा तो सकते हैं लेकिन अंतिम चरण के मतदान के आधा घंटे बाद। तब से जैसे ही अंतिम चरण के मतदान का समय समाप्त होता है वैसे ही टीवी पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के स्टूडियो एक्जिट पोल सर्वे लेकर सजा दिए जाते हैं और जनता भी टेलीविजन खोल कर बैठ जाती है। यहां हम एक्जिट पोल की प्रमाणिकता पर कोई प्रश्न नहीं उठा रहे हैं। लेकिन एक्जिट पोल सर्वे और जो राजनैतिक विश्लेषक का सर्वे करने का दायरा काफी सीमित होता है और भारतीय चुनाव एक बहुत बड़ी चुनाव व्यवस्था है जिसके परिणाम का आंकलन इतनी आसानी से नहीं किया जा सकता है।
देश में तमाम राजनैतिक विश्लेषक और एक्जिट पोल सर्वे कंपनियां हैं लेकिन उनके भी सर्वे और आंकलन भिन्न भिन्न होते हैं तो ऐसे में हम कैसे इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि यह एक्जिट पोल बिल्कुल सटीक है। देश के जाने-माने राजनैतिक विश्लेषक और एक्जिट पोल सर्वे कंपनियों के एक्सपर्ट भी मान रहे हैं कि इस बार मतदाता बहुत ही शांत है और ऐसे में सर्वे का कार्य करना और कठिन हो जाता है। जब किसी एक पार्टी की लहर चल रही होती हैं तो हमें अनुमान लगाने में देर नहीं लगती। लेकिन जब पार्टी के कार्यकर्ताओं ने ही सुस्त रवैया अपनाया हो तो यह बहुत मुश्किल है। अभी हाल ही में चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में कोई भी इस नतीजे पर नहीं पहुंच पाया था कि भारतीय जनता पार्टी को तीन राज्यों में इतनी बड़ी जीत मिलेगी। बल्कि मध्यप्रदेश में तो राजनैतिक विश्लेषकों का यह अनुमान था कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विरोध की लहर है क्योंकि वहां भारतीय जनता पार्टी लगातार बीस सालों से सत्ता पर काबिज है। लेकिन परिणाम चौंकाने वाले साबित हुए और भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जनादेश के सरकार बनाई। यही स्थिति इस चुनाव में भी देखने को मिल रही है। मतदाता इतना होशियार हो चुका है कि आप उसके मन को आसानी से नहीं पढ़ सकते। वैसे कुछ राजनैतिक विश्लेषक भारतीय जनता पार्टी को 250 से 272 सीटें दे रहे हैं और उनके सहयोगी दलों को भी 30 से 35 सीटें दे रहे हैं। तो इसको अगर सच मान भी लिया जाए तो सरकार तो भारतीय जनता पार्टी की ही बन रही है। लेकिन क्या भारतीय जनता पार्टी चार सौ का आंकड़ा पार कर सकती है इस पर अभी प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है।
योगेन्द्र यादव और राजीव सरदेसाई जैसे बड़े विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा भी हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी अकेले के दम पर 272 का आकड़ा भी नहीं छू पाए। पहली बात तो भारतीय जनता पार्टी अकेले चुनाव नहीं लड़ रही है वह एनडीए गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल है। तो यह कहना ग़लत है कि भारतीय जनता पार्टी अकेले दम पर ऐसा नहीं कर सकेगी। यदि इंडिया गठबंधन मिल कर चुनाव लड़ रहा है तो भारतीय जनता पार्टी का भी एनडीए गठबंधन है और नया नहीं है 2014 से चल रहा है। और सफल भी हो रहा है। यहां यह कहना उचित होगा कि विपक्ष पहले से ज्यादा मजबूत होकर उभरेगा। क्यों कि कुछ राज्यों में भाजपा के खिलाफ भी जनादेश है। अब भारतीय जनता पार्टी ने किस तरह से उसकी रणनीति बनाई यह चुनाव परिणाम ही बता सकते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि मोदी इफेक्ट कम हुआ है। लेकिन जिस तरह से विपक्षी नेता एक के बाद एक करके भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए हैं इस पर किसी की नजर नहीं जा रही है। यदि भारतीय जनता पार्टी ने यूपी, बिहार, महाराष्ट्र में अच्छा कर लिया तो भारतीय जनता पार्टी को अच्छा खासा बहुमत मिल सकता है। क्यों कि यह वह राज्य हैं जहां पिछले चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने गेन किया था। यदि हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो थोड़ा बहुत फेरबदल हो सकता है। पिछली बार जो दस सीटें बहुजन समाज पार्टी के खाते में गईं थीं वह कांग्रेस और सपा गठबंधन के खाते में जा सकती हैं। इसके अलावा दो चार सीटों पर और फेर बदल हो सकता है। इससे ज्यादा उत्तर प्रदेश में कुछ खास विपक्ष के लिए दिखाई नहीं दे रहा है। यह एक अनुमान है।
जितेन्द्र सिंह पत्रकार
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