व्यक्तित्व का डर
On
धूप में झरता हुआ आदमी
छाया में झूलस रहा है।
हवा में बहता हुआ आदमी
तूफानों से डर रहा है।
आग से पका हुआ आदमी
धूप में जल रहा है।
अपनी बातों से
जख्मी करने वाला आदमी
तलवार की नोक से डर रहा है।
इश्क को हवस
समझने वाला आदमी।
मोहब्बत के जख्मो से डर रहा है।
दिलबर को आम
समझने वाला आदमी
दिलकश अदाओं से डर रहा है।
डॉ.राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
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