इंडिया गठबंधन टूटा तो कौन होगा जिम्मेदार ?

इंडिया गठबंधन टूटा तो कौन होगा जिम्मेदार ?

विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन को एकता की जो ताक़त दिखानी थी वह दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आ रही है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को जो तल्खी बढ़ गई है वह शायद ही लोकसभा चुनाव तक शांत हो सकेगी। जहां एक ओर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कांग्रेस पार्टी पर हमलावर हैं तो वहीं कांग्रेस के नेता भी पीछे नहीं हैं और वह अखिलेश यादव की हर बात का जवाब दे रहे हैं। हालांकि अभी कांग्रेस हाईकमान चुप है लेकिन उसके मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के नेता चुपचाप नहीं बैठे और वह अखिलेश यादव की बातों का उत्तर जोरदारी से दे रहे हैं।
 
चूंकि जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं उनमें कांग्रेस का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से है लेकिन इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता कि समाजवादी पार्टी भी राजस्थान और मध्यप्रदेश में पहले से चुनाव लड़ती आई है और उसको कुछ सीटों पर कामयाबी हासिल होती रही है। विपक्षी गठबंधन के अन्य दलों को इन राज्यों के विधानसभा चुनाव से कोई मतलब नहीं है। और न ही वो इन राज्यों में अपने प्रत्याशी खड़े करतीं हैं। कांग्रेस को केवल सपा को साधना था लेकिन वह काम भी कांग्रेस ठीक ढंग से नहीं कर सकी। अब बात यह हो रही है कि दोनों पार्टियों के बीच इतनी तल्खी होने से यह गठबंधन 24 के लोकसभा चुनाव तक कैसे बच सकेगा।
 
और यदि गठबंधन टूटता है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा। इंडिया गठबंधन को बने अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है और उम्मीद की जा रही थी कि इस बार इंडिया गठबंधन एनडीए को अच्छी टक्कर दे सकता है बशर्ते इस गठबंधन की एकता 24 के चुनाव तक बरकरार रहे। और अब ऐसा होना बहुत ही कठिन लग रहा है। जहां एक ओर अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में अपने कार्यकर्ताओं से सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाने को बोल दिया था तो वहीं उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नये अध्यक्ष अजय राय ने भी आज उत्तर प्रदेश में अपने प्रत्याशियों को भी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने और उसकी तैयारी शुरू करने का आज ऐलान कर दिया गया है।
 
हालांकि कांग्रेस के इन नेताओं की आगे के गठबंधन के लिए रखने या न रखने की बातों का कोई खास असर नहीं पड़ेगा। फिर भी ये नेता यदि वक्तव्य दे रहे हैं तो इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस पार्टी  द्वारा इन नेताओं को कुछ न कुछ संदेश जरुर पहुंचा होगा। लेकिन कांग्रेस का आलाकमान अभी गठबंधन से इतर इन राज्यों के विधानसभा चुनावो पर पूरा ध्यान लगा रहा है। विपक्षी गठबंधन को लेकर अभी नीतीश कुमार ने भी कांग्रेस को घेरा है।
                         
दरअसल मुश्किल यह है कि कांग्रेस सहित विपक्ष के अन्य सहयोगी दल एक सफलता से इतना अतिउत्साहित हो जाते हैं कि वह आगे पीछे का सब भूल जाते हैं। यहां तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस टक्कर में है न कि जीत चुकी है। अभी भारतीय जनता पार्टी पार्टी के पास वह चुनावी हथियार हैं जो कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव में भारी पड़ सकते हैं। केन्द्र में पहुंचने के लिए उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन ज़रुरी होता है और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं है। यहां अगर भाजपा के मुकाबले में कोई पार्टी है तो वह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ही है लेकिन कांग्रेस को इस समय केवल विधानसभा चुनाव दिख रहे हैं।
 
जहां तमाम चुनावी पोल मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को बढ़त दिखा रहे हैं वहीं राजस्थान में कांटे की टक्कर दिखा रहे हैं। सत्ता से दूर रहते रहते कांग्रेस सत्ता में आना भूल गई है। उत्तर प्रदेश में भाजपा मजबूत होते हुए तमाम दलों को गठबंधन में साथ लेकर चल रही हैं। उन छोटे छोटे दलों का भी सम्मान कर रही है जो बार बार इधर उधर होते रहते हैं। भले ही उन दलों का अस्तित्व केवल दो - चार सीटों पर ही हो। लेकिन गठबंधन धर्म अच्छी तरह से निभा रही है। वहीं कांग्रेस जो केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी से काफी पीछे है। विपक्ष की स्थिति यह है कि उसमें गठबंधन तो सब करना चाहते हैं लेकिन वहां जहां वह कमजोर हों। लेकिन अभी रास्ते बंद नहीं हुए हैं।
 
विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति सामान्य भी हो सकती है। क्यों कि जब इंडिया गठबंधन बना था तब चर्चा लोकसभा चुनावों पर हुई थी। विधानसभा चुनावों पर कोई चर्चा नहीं हुई थी। और विपक्ष में ज्यादातर दल ऐसे हैं जो केवल एक राज्य तक सीमित हैं। आम आदमी पार्टी ने विधानसभा के चुनावों में गठबंधन का कोई प्रयास नहीं किया। बाकी के दल चाहे वह जद यू, आर जे डी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिव सेना उद्धव ठाकरे, सभी एक राज्य तक सीमित हैं। केवल सपा ही इन तीन राज्यों में उत्साहित है।
                         
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने अपने राज्य के नेताओं से लोकसभा चुनाव हेतु सभी 80 सीटों पर तैयार रहने को बोल दिया है। लेकिन अतिउत्साहित नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यह भूल गए कि वह तैयारी क्या करेंगे जब उत्तर प्रदेश में उनके पास ठीक-ठाक नेता तक नहीं हैं। पिछले कई दशकों से कांग्रेस का ग्राफ बिल्कुल नीचे आ गया है। उनके पास पहले जो कद्दावर नेता थे आज या तो वो हैं नहीं या फिर दूसरी पार्टियों में हैं। और डूबती नाव में कोई सबार नहीं होना चाहता है। यह केवल एक धमकी मात्र है और इस तरह की धमकियों से नैया पार नहीं हो सकती।
 
अगर चुनाव जीतना है तो उसके लिए ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। चूंकि इंडिया गठबंधन की बैठक में जो फार्मूला तय हुआ था वह यह था कि जिस राज्य में जो दल मजबूत हैं ज्यादातर सीटों पर वह ही चुनाव लड़ेगा। कुछ सीटों पर जिन पर पिछले चुनावों में दूसरा दल जो पहले या दूसरे स्थान पर रहा था। सभी पार्टियां उसका समर्थन करेंगी। कांग्रेस की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं दिख रही है। विधानसभा चुनावों में यदि कुछ सीटों को वह सपा के साथ शेयर कर लेते तो आज यह स्थिति नहीं बनती। विधानसभा चुनाव तो सम्पन्न हो जाएंगे लेकिन असली परीक्षा लोकसभा चुनाव में होगी। 
                       
समस्या हमेशा छोटी छोटी बातों से ही उत्पन्न होती है। और शायद कांग्रेस को यह आभास हो गया है कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव उनको ज्यादा तवज्जो नहीं देंगे। और इसीलिए लिए चर्चा यह भी निकल कर सामने आई थी। कि यदि गठबंधन टूटता है तो कांग्रेस बसपा में विकल्प ढूंढ रही है। और शायद बसपा भी सपा से कम जनाधार वाले दलों से ही गठबंधन की सोच विकसित कर रही है। लेकिन इससे इंडिया गठबंधन के जो ताने बाने बुने गए थे उसमें साफ दरार दिख रही है। कांग्रेस की समस्या यह है कि जिन राज्यों में उसका जनाधार खिसका है उन्हीं दलों से उसको गठबंधन करना पड़ रहा है और ऐसे राज्य जहां अभी तीसरे दल की इंट्री नहीं हो पाई है वहां वह फूंक फूंक कर कदम रख रही है।
 
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सफाया सपा बसपा ने दसकों पहले कर दिया था। पश्चिमी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का उदय भी कांग्रेस से टूट कर ही हुआ था। उधर महाराष्ट्र में एन सी पी भी कांग्रेस टूटकर ही बनी थी। जब कि अभी हाल ही में पहले दिल्ली फिर बाद में पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को हांसिए पर डाल दिया। यदि कांग्रेस को केवल राज्यों की राजनीति करनी है तो वह अकेले कर सकती है। लेकिन केन्द्र में बिना इन दलों के सहयोग से उसका सपना साकार होने वाला नहीं है। यदि लोकसभा चुनाव तक इंडिया गठबंधन टूटता है। 
 
तो इसका पूरा ठीकरा कांग्रेस पर ही फोड़ा जाएगा। क्यों कि इन सब में सबसे बड़े दल के रुप में कांग्रेस ही है और कई राज्यों में उसकी सरकार है। तथा केन्द्र में भी वह मुख्य विपक्षी दल है। लेकिन कांग्रेस के मन में क्या है वह विधानसभा चुनावों के बाद सामने आ जाएगा। फिलहाल वह पूरा ध्यान विधानसभा चुनाव पर ही लगाए है। इधर इंडिया गठबंधन को लेकर नीतीश कुमार भी कांग्रेस पर नाराज़ हैं। उनका कहना है कि वह केवल विधानसभा चुनावों में व्यस्त है और इंडिया गठबंधन को लेकर वह गंभीर नहीं दिखाई दे रही है।

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